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Friday, August 14, 2009

कहने को ये मेरा घर है


प्रतियोगिता के पाँचवें स्थान की कविता के रचनाकार सजीवन मयंक हिन्द-युग्म में पहली बार अपनी हाज़िरी लगा रहे हैं। 21 अक्टूबर 1943 को जन्मे मयंक रसायन विज्ञान में एम॰एस॰सी॰ और हिन्दी-संस्कृत विशारद हैं। साठ के दशक से लेखन प्रारंभ करने वाले और वर्ष 1962 में अखिल रंग भारतीय काव्य प्रतियोगिता में पुरस्कृत सजीवन की रचनाएँ धर्मयुग, सारिका, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, कादम्बिनी, भारती, मधुमति, रंग-चकल्लस, इंगित, सरिता, मुक्ता, योजना, आरोग्य संदेश इत्यादि में प्रकाशित हैं। आकाशवाणी, इंदौर और भोपाल से नियमित काव्यपाठ करने वाले कवि सजीवन गज़ल, गीत, क्षणिकाएं, मुक्तक, साक्षरता, गीत,व्यंग्य-जल आदि विधाओं में अपनी कलम चलाते हैं।
संकलनः- गाते चलें पढ़ाते चलें, उजाले की कसम, माटी चंदन है, फागुन आने वाला है, दिन अभी ढला नहीं, किसकी तलाश है।
वर्तमान में साहित्य सृजन एवं सामाजिक कार्य में संलग्न हैं और होशंगाबाद (म.प्र.) में निवास कर रहे हैं।

पुरस्कृत कविता

ऐसे सभी मकान बने हैं।
दीवारों में कान बने हैं।।

मेरे दोष जमाने भर में।
मेरी अब पहचान बने हैं।।

कहने को ये मेरा घर है।
जिसमें हम मेहमान बने हैं।।

दुश्मन है जाना पहिचाना।
क्यों हम सब अनजान बने हैं।।

घर आंगन में है अंधियारा।
कैसे रोशनदान बने हैं।।

कौन चला दुर्गम राहों पर।
जिसके यहां निशान बने हैं।।

इंसानों में अंतर क्यों है।
दिल तो एक समान बने हैं।।

छुटपुट गर्म हवा के झोंके।
मिलजुलकर तूफान बने हैं।।


प्रथम चरण मिला स्थान- तीसरा


द्वितीय चरण मिला स्थान- पाँचवाँ


पुरस्कार और सम्मान- सुशील कुमार की ओर से इनके पहले कविता-संग्रह 'कितनी रात उन घावों को सहा है' की एक प्रति।

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

मकान और अपने ही मकान मे मेहमान..
मयंक जी बेहतरीन रचना है..

उत्तम भाव..शब्द गहरे है..और कविता सुंदर..

बधाई..

Arun Mittal "Adbhut" का कहना है कि -

बहुत अच्छी गजल है ....... कुछ शेर बहुत पसंद आये जैसे:

ऐसे सभी मकान बने हैं।
दीवारों में कान बने हैं।।


मेरे दोष जमाने भर में।
मेरी अब पहचान बने हैं।।

बाकी अशआर भी अच्छे हैं एक जगह थोडा व्याकरण खटका जैसे:

कहने को ये मेरा घर है।
जिसमें हम मेहमान बने हैं।।

दरअसल एक शेर में दो तरह का संबोधन नहीं होना चाहिए पहले मिसरे में यदि "मेरा" शब्द है तो दुसरे मिसरे में उसी व्यक्ति को "मैं" शब्द से संबोधित किया जाना चाहिए "हम" नहीं.

सादर

अरुण 'अद्भुत'

Anonymous का कहना है कि -

सूना है हिन्दी युग्म जान भुझ कर लोगो को मेल से कुछ हट कर लिखने और भेजने को कहता है....


एक ऐसे व्यक्ति ने मेल भेजा है, जिन्हें देखना है अपना आई दी यहाँ


दे

anonymous no. 2 का कहना है कि -

probably this is gazal. maybe this has some kind of mathematical meter too. right . But where are thoughts?? if there are any, they are worn out hackneyed kind. and where is melody?? almost absent.

Unknown का कहना है कि -

बहुत खूब सूरत रचना है मयंक जी,,
बहुत ही प्यारी लगी
बधाई हो..

दिपाली "आब" का कहना है कि -

ऐसे सभी मकान बने हैं।
दीवारों में कान बने हैं।।

"makaan" aur "kaan" ko matle mein bataur kafiya lete hi kaan radeef mein tabdeel ho jaayega. jis se aap use bataur kafiya istemaal nahi kar sakte.. yeh shayri ke aibo.n mein se ek hai. jahan tak main jaanti hun, sher mein bhi koi khaas dum nahi hai. aksar makaano.n mein kamre ek duje se judkar hi bante hain unke beech kewal ek deewar hi hoti hai.

मेरे दोष जमाने भर में।
मेरी अब पहचान बने हैं।।
khoobsurat sher kaha hai

कहने को ये मेरा घर है।
जिसमें हम मेहमान बने हैं।।
baat spasht ho kar bhi nahi ho paa rahi, mera aur hum aap ek sher mein saath nahi le sakte

दुश्मन है जाना पहिचाना।
क्यों हम सब अनजान बने हैं।।
dushman hamesha dosti se hi panapte hain, sach kaha, khoobsurat sher.

घर आंगन में है अंधियारा।
कैसे रोशनदान बने हैं।।
koi khaas baat nazar nahi aayi is sher mein bhi.

कौन चला दुर्गम राहों पर।
जिसके यहां निशान बने हैं।।

again koi khaas baat nahi

इंसानों में अंतर क्यों है।
दिल तो एक समान बने हैं।।
khoobsurat sher

छुटपुट गर्म हवा के झोंके।
मिलजुलकर तूफान बने हैं।।

again koi khaas baat nahi hai is sher mein bhi

kul milakar 8 shero.n ki is rachna mein ( gazal is liye nahi ki yeh matle se hi khaariz ho jaati hai) kewal 3 sher acche hain. so hum keh sakte hain accha prayaas hai . badhai

अमिता का कहना है कि -

बहुत सुंदर रचना है

मेरे दोष जमाने भर में।
मेरी अब पहचान बने हैं।।

घर आंगन में है अंधियारा।
कैसे रोशनदान बने हैं।।

इंसानों में अंतर क्यों है।
दिल तो एक समान बने हैं।।
बहुत

अच्छा लिखा है बधाई
सादर
अमिता

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@Anonymous ji

aap jo bhi hai, pehle yeh baat clear kar dun, hind yugm kisi ko bhi leek se hat kar kuch bhi kehne ko nahi kehta, yahan kewal ek pratiyogita hai jo ki aapko prerit karti hai ki aap apna best apni kalam ko de sakein taaki aapki kalam shabdon ke jariye jaadu jaga sake. Kavita kehna kewal ek kala nahi hai yeh ek jaadu hai, agar aap apne shabdon mein koi bhaavna nahi jaga paayein to wo kavita nahi kehlaayegi.
khair yeh aapki personal rai hai, main chahungi aap wo mail yahan khule aam sabhi ke saath baatein.
ya fir main yahan apna id de deti hun aap mujhe bhejein main yahan sabke saath use share karungi, aur agar aap yahan par likhein bhi to un janaab ka naam jarur likhein.

RegardS
Deep

सदा का कहना है कि -

कौन चला दुर्गम राहों पर।
जिसके यहां निशान बने हैं।
बहुत ही गहरे भावों क साथ सुन्‍दर रचना ।

Manju Gupta का कहना है कि -

कम शब्दों में गहरी बात कह दी बधाई

Shamikh Faraz का कहना है कि -

शे'र पसंद आया/

कहने को ये मेरा घर है।
जिसमें हम मेहमान बने हैं।।

इसके साथ ही दीप जी की समीक्षा भी. मैं इस बार ठीक से समीक्षा नहीं कर पा रहा हूँ. कुछ वक़्त की दिक्क़त चल रही है.

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