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Friday, April 29, 2011

दु:ख के सब रास्ते एक से ही होते होंगे


हिन्द-युग्म ने विगत वर्ष से अपना प्रकाशन आरम्भ किया है। अब तक 20 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन पुस्तकों में से भी कुछ चुनिंदा रचनाओं को अपने पाठकों के समक्ष रखने का हमने निश्चय किया है। आज हम इस शृंखला की शुरूआत मनीष मिश्र के कविता संग्रह 'शोर के पड़ोस में चुप-सी नदी' से कर रहे हैं। हिन्द-युग्म पर प्रकाशित मनीष मिश्र की सभी कविताएँ भी इस संग्रह में संग्रहित हैं।

प्रेम में समय

प्रेम में बीत जाता है समय
समय के साथ धीरे-धीरे बीतता है प्रेम।

बीतता हुआ प्रेम
चुनना चाहता है
तेजी से सरकते कालखंड में ठिठके स्पर्श
स्मृतियों के धुँधले पड़ रहे पोर्ट्रेट
अंतर्मन में कौंधते फ्लैश बैक।

प्रेम के क्षणों में तेजी से फिसलता है समय
समय के साथ हाथों से फिसल जाता है प्रेम।


आज हम

आज हम ओढ़ लेंगे
बातों की चादर को
सिंवइयों जैसी
छोटी-छोटी साँसों के साथ।

आज हम जायेंगे
नदी के किनारे नहीं
तो साँसों के झुरमुट में
एकांत पहाड़ों में नहीं
तो देह के अकेलेपन में।

आज हम बुनेंगे
स्वेटर के साथ सर्दियाँ
स्नेह को छोटे-छोटे फन्दों में उलझाये।

आज हम सोचेंगे
बचपन के अधपके दिन
अनाम प्रेम कथाएँ
छोटे-छोटे गरीब सपने
और बहुत मुलायम सुख।

आज हम कुछ नहीं कहेंगे
फेंक देंगे नदी में शब्दों का ढेर
उतार फेंकेंगे भाषा की केंचुल
और बैठ जायेंगे चुप के नीचे।


दु:ख के रास्ते

दु:ख के सब रास्ते एक से ही होते होंगे
उन पर नहीं पड़ती होगी वृक्षों की दोस्त-छाया
नहीं पड़ता होगा सडक़ों के पड़ोस में किसी पुराने मित्र का नया मकान
नहीं होती होगी कोने में दुबकी उधार देने वाली कृपालु गुमटी
नहीं आता होगा उस रास्ते बृहस्पति को उपवास रखवाने वाले देवता का मंदिर

वहा आ कर सुस्ताती होगी-
रोजमर्रा से झींक कर आई जिंदगी
वहाँ गप्पे लगते होंगे-
दुनिया भर से धकियाये हुए जवान सपने
वहा टहलते होंगे-
अपनी ही दुनिया से ख़ारिज हो चुके स्मृतिजीवी बुजुर्ग

दु:ख के रास्तों का भूगोल सीधा मगर कठिन होता होगा इतिहास
दु:ख के रास्तों पर फलते-फूलते होंगे भटकटैया
दु:ख के रास्ते पड़ते होंगे निर्जर वनप्रांतर, पुराने जीर्ण शैव मंदिर
और रास्ता भटक आये प्रेमी युगल

दु:ख के रास्ते जहाँ से गुजरते होंगे
उनके रास्ते आते होंगे मंदिर, मस्जिद और गुरद्वारे
लेकिन उनके रास्ते में कभी नहीं आते होंगे
विद्यालय, पुस्तकालय और विचार के धधकते प्रायद्वीप।


शोर के पड़ोस में चुप सी नदी
कविता-संग्रह । कवि- मनीष मिश्र


ISBN- 978-81-909767-1-8
प्रकाशन वर्ष- 2010
प्रकार- हार्डबाइंड (सजिल्द)
विधा- कविता
लेखक- मनीष मिश्र
पृष्ठ- 76
मूल्य- रु 100

संग्रह से हिन्द-युग्म पर प्रकाशित कविताएँ-
1. उम्र का चालीसवाँ वसंत
2. उम्र का पचासवाँ वर्ष
3. किताबें
4. कविताएँ
5. सब कुछ नहीं होता समाप्त
6. बेटी-1
7. बेटी-2
8. तुम
9. प्रेम में समय
10. आज हम
11. ऐसे गुजारता हूँ दिन
12. कठिन समय में
13. दुःख के रास्ते
14. हमें चाहिए खिलखिलाहटों की दो चार जड़ें

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5 कविताप्रेमियों का कहना है :

rachana का कहना है कि -

आज हम ओढ़ लेंगे
बातों की चादर को
सिंवइयों जैसी
छोटी-छोटी साँसों के साथ।

आज हम जायेंगे
नदी के किनारे नहीं
तो साँसों के झुरमुट में
एकांत पहाड़ों में नहीं
तो देह के अकेलेपन में।
maneesh ji aapki lekhni shbdon se khelti hai kabhi unko dularti hai kabhi yadhart ke dharatal pr khada kar deti hai har kavita ek moti hai
mene puri kitab padhi hai
rachana

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र का कहना है कि -

इस सत्य को इससे ज्यादा सुंदर रुप में व्यक्त नहीं किया जा सकता।
प्रेम के क्षणों में तेजी से फिसलता है समय
समय के साथ हाथों से फिसल जाता है प्रेम।
मनीष जी को बहुत बहुत बधाई।

Disha का कहना है कि -

bahut hi khoobsoorat v hrydaysprashi rachnayein..........

शारदा अरोरा का कहना है कि -

bahut apni si baaten lagi...ek chup hajaar baaten bol rahi hai ...

SoniaPeters का कहना है कि -

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