आज से लगभग 1 वर्ष पहले हमने लखनऊ के मनीष मिश्रा को यूनिकवि चुना था और इनकी कविता 'उम्र के चालीसवें बसंत' में प्रकाशित की थी। आज हम इनकी एक कविता 'उम्र के पचासवाँ वर्ष' प्रकाशित कर रहे हैं।
उम्र का पचासवाँ वर्ष
उम्र का पचासवाँ वसंत आता है अचानक
और साथ लाता है-
घुटनों में हल्का सा दर्द
बालों में मुट्ठी भर चाँदी
आँखों में धुँधले से बादल
और कमर की बेल्ट में एक और काज।
उम्र का पचासवाँ पड़ाव
चुपचाप लाता है
जीतने की अदम्य चाहत
हारने का लरजता आक्रोश
अनुभवी की सम्हाल कर रखी कतरनें
और अधेड़ लालसायें।
उम्र के पचासवें वसंत में
दूर खड़ा दिखता है बचपन
धुँधली सी मगर दिखती है अपनी मृत्यू।
बस बचा रह जाता है
बीत गये क्षणों का अफसोस
और अपने होने का अचरज।
कवि- मनीष मिश्रा
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
जीवन के पचास बसंत देख लेने के बाद भविष्य की चिंता और भूत की यादों की तरफ इशारा करती छोटी सी प्यारी सी रचना.
उम्र के पचासवें बसंत का अच्छा चित्रण
बाकी सब ठीक रहा तो ऐसा ही होगा
पचासवाँ बसंत।
४५ के बाद ही ऐसी स्थिति आ जाती है, कभी-कभी तो ४० के बाद,
बहुत सही चित्रण, बहुत ही सहज भावनाएं............पर मृत्यु के पास भी बचपन सजग होकर साथ रहता है !
बस बचा रह जाता है
बीत गये क्षणों का अफसोस
और अपने होने का अचरज।
बहुत अच्छा चित्रण है --- भावपूर्ण
उम्र का पचासवाँ वसंत आता है अचानक
और साथ लाता है-
घुटनों में हल्का सा दर्द
बालों में मुट्ठी भर चाँदी
आँखों में धुँधले से बादल
और कमर की बेल्ट में एक और काज।
एक खूबसूरत एहसास बुनती हुई बेहद सुंदर कविता..बधाई मनीष जी
उम्र का पचासवाँ पड़ाव किसी के लिये भी बहुत महत्वपूर्ण होता है..जितनी कि यह कविता हिंद-युग्म के लिये..
..पचासवें साल मे दिखने वाले शारीरिक परिवर्तनों का जितना बखूबी चित्रण किया आपने उतना ही उस समय पर होने वाले मानसिक परिवर्तनों के बारे मे कहा है..
खूबसूरत बिम्ब काव्यपक्ष को और सशक्त करते हैं..जैसे कि
अनुभवी की सम्हाल कर रखी कतरनें
और अधेड़ लालसायें।
..हाँ आज के महानगरीय सुविधा्भोगी जीवन मे यह लक्षण अब उम्र के पचासवें वर्ष के आगमन का इंतजार नही करते....
..संक्षेप मे...एक बेहद सशक्त कविता..इतने कम शब्दों मे..बल्कि मेरे द्वारा हिंद-युग्म पर पिछले कुछ समय मे पढ़ी गयी सबसे बेहतरीन कविताओं मे से एक...
घुटनों में हल्का सा ही दर्द है, फिर तो आप फिट हैं। पर ये समझ में नहीं आया कि पिछले साल चालीसवां बसंत था तो इस साल उम्र का पचासवां वर्ष कैसै हो गया।
50 के पास ऐसी स्थिति हो जाती है ..अच्छा किया बता दिया ...!!
जी जीवन के हारे पक्ष का अच्छा सजीव चित्रण है।मगर और भी पहलू हैं इस उम्र के।
nice one -
बस बचा रह जाता है
बीत गये क्षणों का अफसोस
और अपने होने का अचरज।
sundar
Avaneesh
मनीष
तुम्हारी कविता शैली बरबस ही बांधती चली जाती है और मैं उम्र के चालीस, पचास और जानने कितने ही पड़ाव यूँ ही पार कर लेता हूँ.
अगली कविता की प्रतीक्षा रहेगी-
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