प्रतियोगिता की चौथी रचना शोभना मित्तल की है। हिन्द-युग्म में पहली पार भाग ले रहीं, मेरठ विश्वविद्यालय से एम ए हिंदी, शोभना की कविताएँ, लेख, कहानियाँ आदि विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। मेरठ विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार| विभिन्न काव्य संग्रहों में कविताएँ संगृहीत| आकाशवाणी से कविता प्रकाशित|
सम्प्रति: यूनिवर्सल पब्लिक स्कूल में वरिष्ठ कला अध्यापिका|
पुरस्कृत कविता
मैंने अपने घर पर एक छोटा सा
'गैटटूगेदर' रखा था
दरअसल मेरा नन्हा सा धैर्य
और छोटी सी सहिष्णुता
अपने कुछ बिछुड़े साथियों से
मिलना चाहते थे,
सच्चाई, सौहाद्र, सहयोग, कृतज्ञता
संयम, स्नेह, ईमानदारी और उदारता,
सम्वेदना, सदभावना, सहृदयता और भी कई।
मैंने सोचा इनको बुलाऊँ,
जलपान कराऊँ और थोड़ा सम्मान दूं,
नहीं तो उन बेचारों को आजकल कौन पूछता है!
कोई ग़लती से इनका साथ पकड़ता तो
हर जगह पिटता है!
पर मुझे क्या मालूम था,
बुलाना तो क्या, इन्हें ढूंढ़ना मुश्किल होगा।
सच्चाई का दरवाज़ा खटखटाया
तो अन्दर से कपट बोला!
सोहार्द की 'बैल' बजाई तो
दरवाज़ा ईर्ष्या ने खोला!
सद्भावना के नाम का कोरिअर
कुटिलता के हस्ताक्षर के साथ लौट आया!
कृतज्ञता का तो फ़ोन भी नहीं लग पाया!
ईमानदारी के टूटे फूटे घर को तोड़ कर,
बेईमानी ने बड़ा सुन्दर भवन बनाया है!
सहयोग के प्लॉट पर धोखे का फ्लैट उग आया है!
संयम के मकान की लोभ ने करा दी है कुर्की!
द्वेष ने स्नेह की कर दी है छुट्टी!
सहृदयता के बारे में पता चला
फटेहाल बेचारी यहीं कहीं मरी मरी फिरती थी!
सब दुत्कारते थे, फिर भी उफ़ न करती थी.
अब तो कई दिन से वह भी लापता है।
मैं तो पूरी तरह से निराश हो चली हूँ।
मेरा धैर्य भी मायूस है,
पर सहिष्णुता को अब भी आस है।
अगर आप को पता चले, प्लीज़ मुझे ज़रूर बताएं
सवाब का काम है, हाथ बँटाएं।
पुरस्कार- रामदास अकेला की ओर से इनके ही कविता-संग्रह 'आईने बोलते हैं' की एक प्रति।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
19 कविताप्रेमियों का कहना है :
Bilkul sahi baat kahi aapne aaj ke daur me achchi guno ki avhelana ho ti ja rahi hai...ek sundar sandesh deti kavita..dhanywaad
जबरदस्त सच्चाई के साथ प्रखर अभिव्यक्ति..
सद्भावना के नाम का कोरिअर
कुटिलता के हस्ताक्षर के साथ लौट आया!
सच्चाई से रूबरू करवाती रचना
भावपूर्ण
कथ्य सुन्दर है | बधाई
| वर्तनी की त्रुटियाँ हैं कहीं कहीं |
अवनीश
लिखती रहें......
hamko to behad pasand aai......ye jo anootha conversation hai aapka.....lajawaab hai
बहुत खूब ....
लोग इस बस्ती के रहते मेल से हैं इस तरह
शोर जब जब भी उठा तो बंद दरवाजे हुए
बहुत अच्छी रचना।
"सच्चाई, सौहाद्र, सहयोग, कृतज्ञता
संयम, स्नेह, ईमानदारी और उदारता,
सम्वेदना, सदभावना, सहृदयता और भी कई।
बुलाना तो क्या, इन्हें ढूंढ़ना मुश्किल होगा।"
सच्ची और अच्छी सोच के साथ एक सार्थक रचना.
बधाई और शुभकानाएं.
शोभना जी अगर आपको कही दिखाएँ तो मुझे भी बताना.
अच्छा प्रयोग
सशक्त शब्दों में सुंदर कविता
-वैसे आप जिन्हें ढूँढ रही हैं उनके
हिन्द-युग्म में मिलने की संभावना प्रबल है।
बहुत सुन्दर रचना .. हमारे समय में जीवनमूल्यों के क्षरण को सटीकता के साथ रेखांकित करती हुई
सच्चाई का दरवाज़ा खटखटाया
तो अन्दर से कपट बोला!
सोहार्द की 'बैल' बजाई तो
दरवाज़ा ईर्ष्या ने खोला!
vah!
नये -पुराने बिम्बो का अच्छा प्रयोग
बहुत सलीके से जीवन की सच्चाईयों को प्रतिबिंबित किया है। एक नए रुप में रचना के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई !
बहुत ही अच्छी शब्द रचना, जज्बातों की प्रस्तुति का सजीव चित्रण इस कविता में बन पड़ा है जो कि बेहद सराहनीय है, शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
बहुत सशक्त प्रस्तुति, सामयिक आवश्यकता की रचना---धेरों बधाइयां ।
Soch kafi achhi hai, shabdo ka sankalan bhi achha hai, par lagta hai ki shabdo ke jaal me kavita ki atma kahi kahi chhut jati hai. Waise kavita dil ko chhu leti hai
kya udan hai kavita mein. vah!
mAIN TO KAHTA HUN NAI KAVITA MEIN DIL KI GAHARAIYON MEIN UTAR JANE KI POORI KSHAMTA HAI. aapk bahut bahut mubarakbad.
ramdas akela
varanasi
Akela ji Abb hmare bhic nahee rahee.
she is our art teacher in ups.in 8 class.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)