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Tuesday, November 17, 2009

दोहा गाथा सनातन: ४३, गीतिका छंद: एक परिचय.


दोहा गाथा सनातन: ४३

गीतिका छंद: एक परिचय.

संजीव 'सलिल'

गीतिका एक सम-मात्रिक छंद है. इसके प्रत्येक चरण में १४-१२ की यति में २६ मात्राएँ होती हैं. पदांत में लघु-गुरु होना अनिवार्य है. इसके हर चरण की तीसरी, दसवीं, सत्रहवीं और चौबीसवीं मात्राएँ हमेशा लघु होती हैं. छन्द के अंत में रगण = राजभा = गुरु लघु गुरु छन्द को अधिक श्रुति मधुर बना देता है.

उदाहरण:

१.
धर्म के मग में अधर्मी से कभी डरना नहीं.
चेत कर चलना कुमारग में कदम धरना नहीं..
शुद्ध भावों से भयानक भावना भरना नहीं.
बोधवर्धक लेख लिखने में कमी करना नहीं..

२.
हे प्रभो आनंददाता! ज्ञान हमको दीजिये.
शीघ्र सारे दुर्गुणों से दूर हमको कीजिये.
लीजिये हमको चरण में हम सदाचारी बनें.
ब्रम्हचारी धर्मरक्षक वीर, व्रतधारी बनें.....

३.
यत्न कर कुछ देश के हित, अंत करिए भीति का.
क्यों निहारे धाम धन जन, पंथ तज अनरीति का.
कष्ट सहके जो पराये काम में नित आएगा.
प्राप्त कर फल जन्म का वह, वह नाम कुछ कर जायेगा..

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

Sundar chand jnyan...
rachanon ko sawarane ke liye ek aur nayi jaankari badhane ke liye aapka bahut bahut aabhar salil ji

gazalkbahane का कहना है कि -

हिन्द युग्म आर्कीव हेतु अच्छी सामग्री

राकेश कौशिक का कहना है कि -

हमेशा की तरह उदहारण के साथ शिक्षाप्रद पंक्तियाँ जो मेरे लिए तो विशेष रुचिकर और लाभप्रद होंगीं.

Divya Narmada का कहना है कि -

इस लेखमाला में रूचि लेकर इसे सफल बनानेवाले सभी पाठकों व रचनाकारों का आभार व्यक्त करते हुए यह सूचित करना है की ३० दिसंबर २००९ को इस लेखमाला की ५० वीं किस्त के साथ इसका समापन किया जायेगा. किसी पाठक की कोई विशेष जिज्ञासा हो अथवा किसी खास छंद के बारे में जानना हो तो वे सादर आमंत्रित हैं.

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

आदरणीय गुरु जी,
वन्देमातरम!
इस नये गीतिका छंद के बारे में भी जानना बहुत अच्छा लगा किन्तु आजकल समयाभाव के कारण इस बार मैं कुछ न लिख पायी हूँ....इसके लिए क्षमा चाहती हूँ. आपकी कक्षा में आना एक इत्तफाक था और जो भी आज तक दोहों के बारे में आपसे सीखा उसकी याद मेरे जीवन में बहुत ही खास रहेगी. मैं आपकी बहुत ही आभारी हूँ. आपके दर्शन तो ना हो सके किन्तु आपके ज्ञान से इतना प्रभावित हूँ की बता नहीं सकती. अब कुछ दिनों के लिये मुझे भ्रमण पर जाना है इसलिए अगली आने वाली कक्षाओं में उपस्थिति ना हो सकूँगी. इसका अफ़सोस रहेगा. वापस आने पर उन कक्षाओं को देखकर कुछ सीखने की कोशिश करूँगी. बस आपका आशीर्वाद चाहती हूँ.

Divya Narmada का कहना है कि -

शन्नो जी!

वन्दे मातरम.

सुखद-शांतिमय हो करें, भ्रमण-पर्यटन आप.
जो देखें अनुभूत हो, सके काव्य में व्याप.
पढ़कर कविता आपकी, हम सब लें आनंद.
कण-कण में देखें नवल, आप गूंजते छंद..

श्याम जी!

केवल संग्रह है नहीं, अपना लक्ष्य-प्रयास.
सृजन कर्म में सहायक, यह सामग्री खास.
बेहतर ढंग से कर सकें, कवि खुद को अभिव्यक्त.
ऊब न पाठक दूर हों, कथ्य न हो परित्यक्त.
मिला आपसे हौसला, जुड़े रहे हैं आप.
सफल हुई है या नहीं, कोशिश कहिये माप..

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

आचार्य जी
विगत एक सप्‍ताह से बाहर गयी हुई थी। आज ही कक्षा में आयी हूँ। गीतिका छंद के बारे में नवीन जानकारी मिली। मात्राओं का अनुशासन कुछ कठिन है लेकिन मैं शीघ्र ही प्रयास करके प्रस्‍तुत करूँगी।

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