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Wednesday, November 18, 2009

सितारों की बज्म सो रही है


रात है,
अन्धेरा है
अन्धेरा सो रहा है
दीवारों बाम सो रहे हैं
खासो आम सो रहे हैं
दरवाजे
सिमिट कर बंद हो गए हैं
रोशनदान सो गए हैं
खुली
खिड़की से
बाहर की रात झांकती है
मेरे मन में
जाग रही बात आंकती है
सितारों की बज्म
सो रही है
चान्दनी की नज्म सो रही है
सूरज
औन्धा पड़ा है
पीपल बेहोश खड़ा है
मेरे
भीतर एक दर्द गड़ा है।
दर्द
धड़कता है
जरा सी आहट पर चौंकता है
हवा की
सरसराहट से
जगकर गली का कुत्ता भोंकता है,
फिर
गरदन पलट कर सो जाता है
त पर टंगा
पंखा चल रहा है
मेरे भीतर
एक सवाल जल रहा है
कि जब
मौत का एक दिन मुअइयन है गालिब
तो नींद क्यों
रात भर आती नहीं?
अन्धेरा है
सो रहा है
पर धीरे धीरे
अपनी पहचान खो रहा है
सूरज उठेगा
मुंह धोएगा
काम पर जाएगा
नहीं तो
धूप को क्या खिलाएगा
थका मांदा सा
गोधूलि को लौटेगा
औन्धे मुंह सो जाएगा
लेकिन
मुझे फिर भी
धर्म निभाना होगा
जागते
जाना होगा
क्योंकि
सवाल अभी बाकी है
कि
नींद क्यों नहीं आती
नींद
का भी
अपना इतिहास है
कि जब
नहीं आनी चाहिए
तो आती है
और
जब जरूरत पड़ती है
तो
आवश्यक वस्तुओं सी
गायब हो जाती है
नींद
आती है
तो
सपने आते हैं
सपनों में
पराए हो गए
वे अपने आते हैं
यादों
का सिलसिला रहता है
और
अधिक गोली मत खाओ
मेरा
डाक्टर कहता है
पर
क्या वह जानता है
नींद न आने का दंश
उपजे पूत कमाल
बूड़ो कबीर को वंश
कबीर
की भली कही
तब भला नींद की गोली थी
अपनी चुप्पी
से कर दें पागल, ऐसी बोली थी
खैर वे तो पुरानी बात है
फकीरों की क्या कोई जात है?
जमात है?
सब अकेले हैं
अलमस्त हैं
सब खुद ही दूल्हे हैं
खुद ही बारात हैं
रात है
अन्धेरा हैं
अपनी जगह ढूंढता सवेरा हैं
पर न
मैं किसी का हूं
न कोई मेरा है
रात है
अन्धेरा है।

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7 कविताप्रेमियों का कहना है :

पी.सी.गोदियाल "परचेत" का कहना है कि -

सुन्दर कविता श्याम जी ! सभी कुछ सोया पडा है, ऐसा न होता तो दाउद गिलानी उर्फ़ हेडली २६/११ के बाद भी इस तरह देश में घूम पाता !

Anonymous का कहना है कि -

रात है
अन्धेरा हैं
अपनी जगह ढूंढता सवेरा हैं
बहुत सुन्दर कविता भाव के लिए बधाई !

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

अपना इतिहास है
कि जब
नहीं आनी चाहिए
तो आती है
और
जब जरूरत पड़ती है
तो
आवश्यक वस्तुओं सी
गायब हो जाती है

bahut hi badhiya badhiya vichar prstut kiya aapne ek kavita ke madhyam se...badhiya laga...dhanywaad

राकेश कौशिक का कहना है कि -

भावनाओं और संदेशों से पूर्ण एक सशक्त रचना.

डा श्याम गुप्त का कहना है कि -

बस एक बचकानी तुकबन्दी---बकवास कविता ।

Anonymous का कहना है कि -

बंदर क्या जाने अदर्क का स्वाद श्याम सखा जी इन्हेमाफ़ ही करें

डा. श्याम गुप्त का कहना है कि -

बस एक बचकानी तुकबन्दी---बकवास कविता ।

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

श्याम जी,
हमेशा की तरह बहुत अच्छा लिखा है आपने. ख्यालों को कितनी आसानी से आप नये-नये तरीकों से शब्दों में पिरो देते हैं. यह बहुत तारीफ़ की बात है.

खुद ही दूल्हे हैं
खुद ही बारात हैं.

वाह!

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