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Monday, November 24, 2008

यूनिकवि की दो छोटी कवितायें


आज सोमवार है और यूनिकवि की कविता का भी दिन है। इसलिये हम यहाँ डॉ॰ मनीष मिश्रा की दो कवितायें प्रकाशित कर रहे हैं।



तुम

मैं देखता हूँ तुम्हारे हाथ
चटख नीली नसों से भरे
और
उंगलियों में भरी हुई उड़ान
मैं सोचता हूँ
तुम्हारी अनवरत देह की सफ़ेद धूप
और उसकी गर्म आंचश
मैं जीत्ताता हूँ तुमको
तुम्हारे व्याकरण और
नारीत्व की शर्तो के साथ
मैं हारता हूँ
एक पूरी उम्र
तुम्हारे एवज में!



कठिन समय में

हमें कठिन क्षणों में भी गुनगुनाना चाहिए अपना मौन
बुननी चाहिए उधड़ते हुए रिश्तो की सीवन
लिखनी चाहिए प्रेम कविताये
निहारना चाहिए चाँद के आलोक में लिप्त आकाश
रखना चाहिए एक स्मृति फूल किताब के भीतर
और लौटना चाहिए पुराने दोस्त दिनों में
हमें कठिन समय में भी
अपने आदि मंत्र की तरह
सहेजकर रखनी चाहिए
बची खुची
जीवन क्र प्रति अपनी
कोमल जिजीविषा!

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20 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

गागर में सागर कैसे भरा जाता है कोई मनीष जी से पूछे चाँद पंक्तियाँ और जीवन का निचोड़ .सुंदर शब्द कोमल भावनाएं
बहुत खूब
रचना

manu का कहना है कि -

आधुनिक कविता की खामियों से बहूत दूर,सुंदर भावः लिए सुंदर रचनाएं

manu का कहना है कि -

अरे वाह!! अब तो मैं हिन्दी में भी टिपण्णी कर पा रहा हूँ . शुक्रिया मनीष जी

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

मनीष जी बहुत खूबसूरत

सुन्दर सुन्दर अत्यधिक गहरी कविताएं पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद..

हरकीरत ' हीर' का कहना है कि -

बहुत बढि़या डाक्‍टर मनीष जी, इस बार दोनों कवितायें बढि़या हैं, अच्‍छी लगीं...बधाई। कुछेक व्‍याकरण की
गल्‍तियाँ हैं जिन्‍हें सुधार लें- पहली कविता में,'मैं हारता हूँ/एक पुरी उम्र' यहाँ पुरी बहुत बढि़या डाक्‍टर मनीष जी, इस बार दोनों कवितायें बढि़या हैं, अच्‍छी लगीं...बधाई। कुछेक व्‍याकरण की
गल्‍तियाँ हैं जिन्‍हें सुधार लें- पहली कविता में,'मैं हारता हूँ/एक पुरी उम्रको पूरी कर लें दूसरी कविता में
'सीवन' शब्‍द चूँकि स्‍त्रीलिंग है अत: 'बुनना' नहीं 'बुननी' होना चाहिए। आपने बिन्‍दू
को भी महत्‍व नहीं दिया रिश्‍तो और कविताये शब्‍दों में...! कृपया अन्‍यथा न लें, त्रुटियों से कविता का
सौंदर्यकम हो जाता है बस इसलिए...

सीमा सचदेव का कहना है कि -

हमें कठिन समय में भी
अपने आदि मंत्र की तरह
सहेजकर रखनी चाहिए
बची खुची
जीवन क्र प्रति अपनी
कोमल जिजीविषा!
अच्छा विचार है | मूल मन्त्र बता दिया आपने कठिनाई का समय काटने का .....सीमा सचदेव

Unknown का कहना है कि -

पहली कविता के भाव मै समझ नही पाया
लेकिन दूसरी कविता अच्छी लगी

सुमित भारद्वाज

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

आप ऐसा ही लिखते रहें...

neelam का कहना है कि -

मैं देखता हूँ तुम्हारे हाथ
चटख नीली नसों से भरे
और
उंगलियों में भरी हुई उड़ान
मैं सोचता हूँ
तुम्हारी अनवरत देह की सफ़ेद धूप
और उसकी गर्म आंचश
मैं जीत्ताता हूँ तुमको
तुम्हारे व्याकरण और
नारीत्व की शर्तो के साथ
मैं हारता हूँ
एक पूरी उम्र
तुम्हारे एवज में!

neelam का कहना है कि -

behad pasand aayi vaakaran ki seema hume pata nahi ,kavita behad
prabhaavi hai.

विश्व दीपक का कहना है कि -

मनीष जी , दोनों लघु-कविताएँ पसंद आईं।
पहली में मुझे टंकण की अशुद्धियाँ जान पड़ीं। पता नहीं, कितना सही हूँ। मसलन-
मेरे अनुसार अनवरत की जगह अनावृत होना चाहिए था, आंचश= आँच , जीत्ताता = जीताता ।

गौर करेंगे!!!

हरकीरत ' हीर' का कहना है कि -

बहुत खूब पहचाना 'तन्‍हा' जी आपने, 'अनावृत' शब्‍द लग जाए तो कविता का अर्थ निकलता है। 'आँचश'
शब्‍द हालाँकि हिन्‍दी में नहीं है पर कवियों थोडी़ छूट होती है कि वो कविता के अनुसार शब्‍द को
तोड-मरोड़ लें । 'जीताता' टंकण की गलती हो सकती है। यहाँ मैं रचना जी के लिए एक बात कहना
चाहूँगी पाठकों को इसी तरह अपनी राय देनी चाहिए अगर आप गल्‍तियाँ नहीं निकालोगे तो हम सीखेगें
कैसे..?

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

दूसरी कविमा बेहतरीन है। पहली की समीक्षा भी अच्छी लगी।
-देवेन्द्र पाण्डेय।

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

मैं हारता हूँ
एक पूरी उम्र
तुम्हारे एवज में!....

आखिर की इन पंक्तियों में ही कविता समाई हुई है... बहुत खूब...

daanish का कहना है कि -

(TUM) body.chemistry bhaampnaa to kuchh aasaan hai, magar byaan karna bahot mushkil, magar aap to ... kamaal...aapka haarna aapki jeet se ho kr guzra hai...?!?!
---MUFLIS---

Anonymous का कहना है कि -

bahut bahut achchhi
jitni chhoti utna hi badhiya
sunilkumarsonus@yahoo.com

sunil kumar sonu

Ria Sharma का कहना है कि -

कठिन समय मैं ,बहुत खूब लिखा है मनीषजी
गुनगुनाना चाहिए अपना मौन ..
बुननी चाहिए उधड़ते हुवे रिश्तो की सीवन ..
लिखनी चाहिए प्रेम कवितायें.. निहारना चाहिए चाँद के अलोक मैं लिप्त आकाश ..
रखना चाहिए एक स्मृति फूल किताब के भीतर..
और लौटना चाहिए पुराने दोस्त दिनों मैं. ..
गहराई लिए हुए सरल शब्दों मैं निकले उदगार
बहुत खूब !!!!

Anonymous का कहना है कि -

हरकीरत जी आप ने जो मुझसे कहा है वो ठीक है पर जो शब्दों की गलती है वो मेरे ख्याल से इस लिए की हिन्दी में कंप्यूटर पे लिखने का बहुत अभ्यास नही होता है .मेरे आलावा और भी बहुत लोगों ने कविता की तारीफ की है .
और हाँ फ़िर कहूँगी में अच्छाई लिखती हूँ और वही देखती हूँ .
सादर
रचना

हरकीरत ' हीर' का कहना है कि -

रचना जी, आपका ई-मेल भी मिला मुझे मै फिर कहना चाहूँगी कि इन दोनों कविताओं की तारीफ
मैंने भी की है दोनों ही कवितायें अच्‍छी हैं अगर आपका ये कहना है कि यह टंकण की गलती थी तो मनीष
जी को एक स्‍पष्‍टिकरण दे देना चाहिए था...रही गल्‍तियाँ निकालने की बात तो मैं नियंत्रक महोदय
और पाठकों से जानना चाहती हूँ कि क्‍या पाठकों इस तरह की टिप्‍पणी नहीं करनी चाहिए ? मैंने कविता
में जो अच्‍छा-बुरा देखा उसे ही दृष्‍टिपात किया है रचना जी, भले ही मनीष जी कितने ही बडे साहित्‍यकार हों...
बडे हैं तो सादर नमन है मेरा पर मेरी टिप्‍पणी तो फिर भी यही रहेगी...!

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

तुम और कठिन समय मे..दोनो भाव से भरी पूर्ण रचना है..
शब्दों का अत्यन्त सुंदर प्रयोग,
बधाई..

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