अब न
मचलता दिल मेरा
अब न
धड़कता दिल मेरा ,
एक निशा झोली में डाले
भोर से पहले विदा हुए
क्षितिज पथ, अनहद प्रतीक्षा
नयन सावन एक हुए
साँस आखरी, वंदे मातरम
उल्लासित मन
क्षत विक्षित तन
रक्त श्वेद श्रृंगार धरे ,
धूल धरा तुम एक हुए
आज गर्व से मस्तक ऊँचा
पर नही शेष कुछ जीने में
जिस पत्थर से चूड़ी तोडी
उसे रख लिया सीने में
अब न
धड़कता दिल मेरा
अब न
मचलता दिल मेरा
.
विनय के जोशी
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
vinay ji,bahut hi laajwab likha hai aapne.visheshkar ye pankti khasi janchi-
आज गर्व से मस्तक ऊँचा
पर नही शेष कुछ जीने में
bahut bahut dhanywaad itni sundar kavita padhwaane ke liye.
ALOK SINGH "SAHIL"
आज गर्व से मस्तक ऊँचा
पर नही शेष कुछ जीने में
जिस पत्थर से चूड़ी तोडी
उसे रख लिया सीने में
हाँ कभी सीने पे पत्थर रखना पड़ता है पर जब मन में वंदे मातरम हो तो गर्व से मस्तक ऊँचा होही जाता है
सुंदर लिखा
सादर
रचना
आज गर्व से मस्तक ऊँचा
पर नही शेष कुछ जीने में
जिस पत्थर से चूड़ी तोडी
उसे रख लिया सीने में
इससे आगे कहने को कोई शब्द ही नही है .......सीमा सचदेव
शब्दों का चयन खूबसूरत रहा
धन्यवाद
एक निशा झोली में डाले
भोर से पहले विदा हुए
क्षितिज पथ, अनहद प्रतीक्षा
रक्त श्वेद श्रृंगार धरे ,
धूल धरा तुम एक हुए
आज गर्व से मस्तक ऊँचा
पर नही शेष कुछ जीने में
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vinay ji..bahut sahi likha hai aapne...badhai!!
simply awesome....selection of words...n its use is nice...
keep it up!!
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randhir kumar..
www.randhirraj.blogspot.com
विनय जी एक सुन्दर करुण कविता के लिये बहुत बहुत साधूवाद...
जय हिन्द जय हिन्दी
IS SHAHAADAT KO APNA BHI SALAAM........!!!.
vinayji,
acche shabon me ek acchi kavitaa
lekin vikshit hota hai yaa vikshat,
kshat vikshit ko koi aur matalab hota hai to samjhaye
sasneh,
RAASBIHARI
रासबिहारी जी,
आपने गहराई से कविता पढ़ी आभार,
क्षत विक्षत ही होता है परन्तु यहाँ विक्षित ही लिखा गया है
विक्षित यानी अवलोकित |
सादर,
विनय के जोशी
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अब न
मचलता दिल मेरा
अब न
धड़कता दिल मेरा ,
एक निशा झोली में डाले
भोर से पहले विदा हुए
क्षितिज पथ, अनहद प्रतीक्षा
नयन सावन एक हुए
साँस आखरी, वंदे मातरम
बहुत सुंदर.
आज गर्व से मस्तक ऊँचा
पर नही शेष कुछ जीने में
जिस पत्थर से चूड़ी तोडी
उसे रख लिया सीने में
अब न
धड़कता दिल मेरा
अब न
मचलता दिल मेरा
अच्छी कविता
सुमित भारद्वाज
उल्लासित मन
क्षत विक्षित तन
रक्त श्वेद श्रृंगार धरे ,
धूल धरा तुम एक हुए
आज गर्व से मस्तक ऊँचा
एकदम अलग तरह की बात, बधाई!
vinay joshi ji
sab kuchh thik-thak rahte hue bhi dil nahi dharka akhir mamla kya he ji.
khair maja aa gaya padh ke
Your blog keeps getting better and better! Your older articles are not as good as newer ones you have a lot more creativity and originality now keep it up!
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