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Thursday, November 20, 2008

अकेला चना ही भाड़ फोड़े


प्रतियोगिता की दसवीं रचना २१ वर्षीय सुनील कुमार 'सोनू' की है, जो अपने आपको मात्र ३ साल का कवि मानते हैं, क्योंकि इन्होंने महज़ ३ सालों से लिखना शुरू किया है। हिन्द-युग्म पर इनकी यह पहली कविता है।

पुरस्कृत कविता- अकेला चना ही भाड़ फोड़े

हर जुबां से सुना मैंने
अकेला चना भाड़ क्या फोड़े?
पर इतिहास बताता यही
अकेला चना ही भार फोड़े
दुष्ट रावण पर गुस्साकर
जलाया सोने की लंका
वह वानर हनुमान अकेला था
प्रलय की लहर थी जब
हाहाकार-त्राहिमाम गूंज रही तब
वेदों संतो को जिसने बचाया
वह मनु महाप्राण अकेला था
गर्त में जा रही थी दुनिया
मृत हो रही थी अखियाँ
आँखों में पानी भरने
जीवन में रवानी भरने
उद्धार किया धर्म-कर्म जिन्होंने
वह संत बुद्ध-महावीर अकेला था

राम-राम का रट लगाते
तोते की तरह जहाँ
राजा--रंक -- फ़कीर
दुनिया माने, जिनको पाना है
पत्थर की लकीर
हजारो-हज़ार जिनको देखने को उत्सुक
खम्भे से ईश्वर को निकलवाकर
कण-कण में है भगवान
दिया जो इसका प्रमाण
वह हठी बालक प्रह्लाद भी अकेला था
चक्रव्यूह में लड़ता बालक
कौरवों को परास्त करता बालक
अदम्य साहस का परिचय देता बालक
खून से लथपथ
अधर में अटकी सांसे
फिर भी कंपा रही थी विपक्षी को
वीर बहादुर अभिमन्यु की आंखे
अद्भुत इतिहास रचा वो महासमर में
वह अर्जुन औलाद भी तो अकेला था
मौत का खौफ खाकर जहाँ
लोग करते है अन्याय स्वीकार
अकेली औरत होकर भी वहां
रानी खींच ली तलवार
आखिरी दम तक आजाद रही वो
समक्ष गोरों के, न मानी अपनी हार
है कितने युगपुरूष, महापुरुष
कहाँ तक नाम गिनाऊं
उन सबकी अमर अनुपम गाथा को
कहाँ तक तुम्हें सुनाऊं
निष्कर्ष यही इतिहास का
अकेला मानव ही
अमरत्व की किताबों में
एक और पन्ना जोड़े
अब गांठ बाँध ले तू
अकेला चना ही भाड़ फोड़े
हाँ, अकेला चना ही भाड़ फोड़े



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰२५, ३, ६, ६
औसत अंक- ५॰५६२५
स्थान- ग्यारहवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७, ३, ५॰५६२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰१९
स्थान- दसवाँ


पुरस्कार- कवयित्री पूर्णिमा वर्मन की काव्य-पुस्तक 'वक़्त के साथ' की एक प्रति।

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

manu का कहना है कि -

BAHUT ACHHE.AKELA HI FOD SAKTA HAI. JYAADA MEIN TO KITNE LAFDE HAIN.

Anonymous का कहना है कि -

badhai ji,
ALOK SINGH "SAHIL"

Anonymous का कहना है कि -

सोचने का ये नया दृष्टिकोण बहुत पसंद आया .लिखते रहें
सादर
रचना

Anonymous का कहना है कि -

itani jor se aankhen kyo fade ho bhai? kavita hai ya bhasan?

Anonymous का कहना है कि -

बहुत अच्छी रचना बधाई!आशा करती हूँ आगे भी आपकी रचना पढने को मिले!आपकी रचना पढ़ कर नई स्फूर्ति आ गई वाह!..........

Ria Sharma का कहना है कि -

वाह !!!
सोच का अतुलित संसार
बहुत सुंदर विषय चुना ,अलग हट कर
बधाई और लिखते रहे.

Bhuwan का कहना है कि -

बहुत सुंदर रचना... बधाई हो

Smart Indian का कहना है कि -

बहुत खूब. अकेले चनों ने बहुत अब तक भाड़ फोडे हैं

महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma का कहना है कि -

सुनील जी की यह कविता मैंने पहले पढ़ी है. सुनील जी ने मुझे मेल से यह कविता भेजकर मेरा विचार माँगा था. मैंने अपना विचार दिया भी था. पर उस समय सुनील जी ने मुझे यह नहीं बताया था कि वे इसी कविता को यूनिकवि प्रतियोगिता में भेज रहे हैं. पर आज मैं यह समझ गया कि उस समय सुनील जी ने इस कविता को यूनिकवि प्रतियोगिता में भेजने के उद्देश्य से ही मुझसे कविता पर विचार माँगा था.

खैर, यह कविता बहुत ही अच्छी व प्रेरणाप्रद है. सुनील जी को बधाई हो. आगे भी वे अच्छी व प्रेरणाप्रद कविता की रचना करें व इस क्षेत्र में आगे बढें. इन्हीं शुभकामनाओं के साथ
आपका
महेश

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

जहाँ तक मुझे याद है----ऐसे ही विचार स्व० विद्या निवास मिश्र जी के एक निबंध में पढ़ चुका हूँ। उस निबंध में स्व० मिश्र जी ने ऐसे ही उदाहरण देकर युवाओं का उत्साहवर्धन किया है। संभवतः यह निबंध सी०बी०एस०ई० बोर्ड की कक्षा ९ की पाठ्यपुस्तक में उपलब्ध है।

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

झलक रही है इस कविता में नाहर की सी दहाड़
अपनी पर आ जये तो फोडे एक चना भी भाड़

सुन्दर कविता है साब...

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