पिछले सप्ताह अक्टूबर माह के यूनिकवि की दूसरी कविता पर अनामी जी की प्रतिक्रिया से हमें पता चला कि विजय कुमार सप्पत्ती की वह कविता ऊनके ब्लॉग पर पहले से ही प्रकाशित है। इसके बाद जब हमने उनके ब्लॉग को खँगाला तो पाया कि प्रथम स्थान की कविता भी उनके ब्लॉग पर प्रकाशित है। उनके ब्लॉग के अतिरिक्त और बहुत सी जगहों पर भी प्रकाशित है। इसलिए शर्तानुसार हम यह विजय कुमार सप्पत्ती को दिया जाने वाले पुरस्कार और सम्मान को हम रद्द करते हैं और द्वितीय स्थान के कवि डॉ॰ मनीष मिश्रा को अक्टूबर माह का यूनिकवि घोषित करते हैं। विजय कुमार सप्पत्ती का आग्रह है कि उनकी कविताएँ हटाई न जायें, तो हम नहीं हटा रहे हैं। हम इन्हें गलती के उदाहरण के तौर पर भी संजोकर रखना चाह रहे हैं। आज चूँकि सोमवार है, और आज वर्तमान यूनिकवि का वार होता है, अतः डॉ॰ मनीष मिश्रा की कविताएँ आपके समक्ष प्रस्तुत हैं।
कवितायें
डायरी के फाड़ दिए गए पन्नों में भी
साँस ले रही होती हैं अधबनी कवितायें
फड़फड़ाते हैं कई शब्द और उपमायें!
विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ
सूख नहीं पाते सारे जलाशय
शब्दों और प्रेम के बावजूद
बन नहीं पाती सारी कवितायें!
डायरी के फटे पन्नों में
प्रतीक्षा करती है कवितायें
संज्ञा की, प्रतीक की, विशेषण की नहीं
दुःख की उस जमीन की
जिस पर वो अक्सर पनपती हैं!
किताबें
हमारे सूखे दरकते जीवनकाश को
गीला भीगा करती हैं किताबें
वे संजोती हैं इतिहास की सूख गई बेल
सुंदर उपमायें और
अंतहीन सपनों के प्रायदीप!
वे चुनती बटोरती हैं
आदि मंत्रो के स्वर विन्यास
और हरीतिमा में भीगी रागिनी!
एक ऐसे समय में
जब सूख चुकी है हस्तलिपियाँ
और संवेदनायें
रंगों गंधों की सूक्ष्म विवेचनायें!
ऐसे हाँफते, काँपते समय में
किताबे हमें
फिर-फिर लौटाती हैं
जोड़ती-गाँठती हैं
बिसरा दिए गए अक्षरों से
लिपि से
भाषा से
एक अदभुत जीवन से!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
20 कविताप्रेमियों का कहना है :
bouth he aacha samjiyaa aapne ki jo aache kavitye hai vo kabe khatem nahi ho sakti kitabe fat jate hai per vo dil mein yaad rehte hai nice post keep it up
visit my site shyari,recipes,jokes and much more vice plz
http://www.discobhangra.com/recipes/
http://www.discobhangra.com/shayari/
वाह! क्या खूब कहा आपने वाकई कवितायें दुःख की ज़मीन पर ही पनपती है! बहुत खूब किताबें भी ठीक लगी! कवितायें के लिए विशेष बधाई!
बधाई डा. मिश्रा जी,दोनों कविताएं अच्छी हैं पर दिल को छू नहीं पायीं हालाँकि भाव अच्छे हैं
पर मुझे लगाकि अभी सुधार की जरूरत थी। पहली कविता में ,'सूख नहीं पाते सारे जलाशय ' की जगह
'सूख नहीं पाती यादों की स्याही' होता तो शायद बेहतर होता दूसरी कविता में भी 'भीगा गीला' शब्द जँच
नहीं रहा, तीसरी पंक्ति में भी 'संजोती' शब्द की जगह 'सिंचती' होता तो शायद सौंदर्य और बढ जाता।
बधाई |
पहली रचना बहुत ही सुंदर है |
दूसरी में कुछ सुधार है जो हरिकृतजी ने बताये |
गीला भीगा ,
रंगों गंधों,
हाँफते, काँपते
इन सबको एक बार पुनः देख लें | कुछ और सही तरीके से प्रस्तुत हो सकते है |
-- अवनीश तिवारी
नियंत्रक महोदय का निर्णय सराहनीय एवं प्रशंसनीय है। यहाँ हर कोई नियम-कानून से बंधा हुआ है। इससे भावी यूनिकवियों को भी सबक मिलेगी।
नए यूनिकवि मनीष जी को उनकी रचना के लिए ढेरों बधाईयाँ। ये दो रचनाएँ भी बेहतरीन हैं।
विजय जी से निवेदन है कि वे इस निर्णय को जाती तौर पर न लें और आगे भी इस प्रतियोगिता के प्रतिभागी बनें। हाँ, प्रतियोगिता में भेजी जानी वाली कविता के चुनाव में थोड़ा गंभीर हो जाएँ!
-विश्व दीपक ’तन्हा’
दोनो कविता अच्छी लगी
सुमित भारद्वाज
डायरी के फाड़ दिए गए पन्नों में भी
साँस ले रही होती हैं अधबनी कवितायें
बहुत खूब लिखा है
अक्सर ऐसा ही होता है, पर कवित तो वो होती है जो ऐसे ही शब्दों को काव्य मैं पिरो ले
'तन्हा' जी ने सही कहा है विजय जी, हमें अगली बार आपकी कविता का इंतजार रहेगा।
pahli wali kavita to bahut hi behatarin ban padi hai,han dusari utna anand nahin de payi.par achhi hai.
ALOK SINGH "SAHIL"
"kvitaaeiN"...aapki lekhan pratibha aur kushaltaa ka spasht udaaharn hai. dono kvitaaoN mei sahitya ke prati aapka smarpan.bhaav prativimbit ho rahaa hai.. "aise haaNfte-kaampte samay" ka bahot hi achha upyog kiya hai...badhaaee sweekaareiN.
क्यूँ फाड़ दी डायरी भाई....
दुःख की वो ज़मीन बंजर न होने दें....
हिन्दयुग्म पर स्वागत.....
निखिल
what you have done with vijay sahatti is not justified. It is humiliating and insulting act. You people are notorious.
Amrit T.S.S, Hyderabad
कविता पढ़ के कुछ खास आनंद नही आया बोझिल सी लगी .
में हरकीरत जी की बातों से सहमत हूँ
आशा है आगे और अच्छी कवितायें पढने को मिलेंगी
mahesh
दोस्तों,
पहले तो मैं आप सब के प्यार के लिए आप का धन्यवाद् करता हूँ .
कल मेरा जन्मदिन था , मैंने यूँ ही ये blog खोला और ये सब पढ़ा. सच में मेरा मन ख़राब हो गया. कल के दिन दो और पत्रिकाओं ने मेरी कविताओं को छापने का निर्णय लिया और हिन्दयुग्म पर देखा तो ये हाल है .
मैं usually बहुत खामोश रहता हूँ. और unproductive discussions /arguments में हिस्सा नही लेता हूँ. पर आज मैंने सोचा की इस किस्से को ख़तम कर दिया जाए.
मुझसे दो गलतियां हुई. [ १] मैंने हिन्दयुग्म पर अपनी कवितायें भेजी . [ २] मैं अपने senior position के job के चलते इनके email पर ध्यान नही दे पाया. [ जिसमें इन्होने लिखा था की कहीं और नही छापना चाहिए ]
मैं अपनी सारी गज़लें ,नज्में ,कवितायें या मेरे मन की कोई और बात हो उसे अपने ब्लॉग पर डाल देता हूँ , एक तरह से मेरा वो ब्लॉग मेरा counter xerox है. मैंने कुछ दिन पहले ही blogging शुरू की है जिसकी वजह से मैं अपने आप को अनाडी मानता हूँ.
मैंने ये सोचा था की हम writers की दुनिया में दिल की बातें ज्यादा मानी जाती है , पर यहाँ हिन्दयुग्म पर मैंने पाया की दिमाग को ज्यादा importance दिया गया है . मैंने तो ये सोचा कि, कवि, उसकी कविता और कविता कि भावना ही सर्वोपरि है .पर यहाँ इस मंच पर ये बात ग़लत साबित हो गई. यहाँ नियंत्रक team ने register पर लिखे गए rules को ज्यादा महत्व दिया . [ मैं उन्हें दोष नही दे रहा हूँ, लेकिन मेरा इतना मानना है कि इस issue को बहुत ज्यादा drag किया गया ,जो कि स्वस्थ mindset नही है ]
मैं पुरस्कार और सम्मान के लिए नही लिखता हूँ,मैं अपने मन के लिए लिखता हूँ ,और मुझ पर ये खुदा कि मेहर है कि मेरी नज्मों में आप सब को अपना अक्स ,अपने जज़्बात , अपनी छवि नज़र आती है .
मैं करीब १५-२० सालों से लिख रहा हूँ , पर कभी, कहीं पर publish नही किया . मेरी नज्मों की तारीफ , श्री हिमांशु जोशी, श्रीमती अमृता प्रीतम ,इत्यादि ने किया है पर मेरे career के देमंड्स ने मेरे लेखन पर एक बंदिश बनाये रखी , और अब जब मैं थोड़ा अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हुआ हूँ , तो blogging और publishing etc. में दिलचस्पी ले रहा हूँ .
मेरा पहला प्रयास हिन्दयुग्म था और उसकी ये गति हुई. मैं basically बहुत संवेदनशील इंसान हूँ और मेरी पूरी ज़िन्दगी सिर्फ़ और सिर्फ़ emotions के base पर ही है . और ये पूरा वाकया दिल को दर्द पहूँचाने वाला है .
मैं तहे दिल से हिन्दयुग्म टीम का शुक्रगुजार हूँ कि उन्होंने मुझे ये मौका और ये मंच दिया . मैं आनामी जी का भी धन्यवाद् अदा करता हूँ कि उन्होंने इस सपनो कि दुनिया में negativity डाल कर ये साबित कर दिया कि, दुनिया अभी पूरी तरह से अच्छी नही बनी है [ मेरे भाई , एक बात याद रखियेगा , यदि किसी का भला नही कर सको तो बुरा भी न करो ]
मैं इस मंच से विदा ले रहा हूँ और अपनी आइन्दा ज़िन्दगी में कोशिश करूँगा कि इस पर कभी भी न आऊं. [ वो कहते है न " बड़े बेआबुरु " होकर हम तेरे दर से चले. ]
मेरे दोस्तों , आप सभी का मेरे blog पर स्वागत है , जब भी आप सब का जी चाहे की सपनो की दुनिया में जाया जाएँ , या अपनों की दुनिया में जाया जाए तो click करिए : www.poemsofvijay.blogspot.com , वहां मैं और मेरी नज्में आपका स्वागत करेंगी .
जय हिंद
आप सबका
विजय कुमार,
Hyderabad.
M : 09849746500
E : vksappatti@rediffmail.com और vksappatti@gmail.com
विजय जी!
कोई भी प्रयास नियम-कानून के बिना फ़िजूल साबित होता है।इस मंच पर नियम-कानून से केवल प्रतिभा्गी हीं नहीं बँधे वरन नियमित कवि भी इसका पालन करते हैं। इस मंच के मौजूदा कवि भी उन कविताओं का प्रकाशन नहीं करते, जो पहले कवि प्रकाशित हो चुकी है।
मुझे यह जानकर बहुत बुरा लगा कि आपने इस निर्णय को व्यक्तिगत तौर पर ले लिया और युग्म को अलविदा कहने की बात कर दी। वैसे कलम आपकी, मत आपका ,आपको जो अच्छा लगे करें। लेकिन मेरा आग्रह है कि आप अपने निर्णय पर पुन:विचार करें क्योंकि तलवार केवल आपके लिए हीं नहीं गढी गई है, सारे कवि इस तलवार के नोंक से होकर गुजरते हैं।
आपका-
विश्व दीपक ’तन्हा’
विजय जी, कवि संवेदनशील होते हैं इसलिए आपको चोट पहुँचनी स्वभाविक है पर मान लिजिए
हिन्द- युग्म आप चला रहे होते और फैसला आपको करना होता तो क्या करते...? एक कवि को
छूट देना मतलब सभी को छूट देना। इस तरह से संस्थायें नहीं चलती। सख्ती बरतनी पड़ती है।
आप इस बात को जाति तौर पे मत लें 'तन्हा' जी का कहना सही है। अगर आपकी जगह कोई और होता
उसके साथ भी यही होता वो कल मैं भी हो सकती हूँ। हमें हिन्द-युग्म पर आपकी कविताओं का इंतजार
रहेगा।
Every thing has its proper way. Humiliation and public insult is not justified.
Amrit T.S.S, Hyderabad
...sabhi panchoN ki raae amoolya hai, maanya hai..honi bhi chahiye, baat ko bahot pehle hi khatm kr dena chahiye tha, ek hi baat ko baar.baar kehna/sun`na bhi dukh pahunchata hai. jb Niyantrak Mahodyaa ne EK BAAR nirnaya le liya... khair aur kya kahooN.. ek sher yaad aa raha hai...
"qdr.daaN qeemqt.e.bazaar se aage n barhe , fn ki dehleez pe fn.kaar ne dm torh diya.." SABHI KE LIYE SHUBHKAAMNAAEI ---MUFLIS---
...aur ek guzaarish..ye Dr Mishra ki kavita ki jagah hai.. chaliye paathk.gan ko unnki kavita pr bhi izhaar.e.raae kr lene deiN... Mishraji ! namaskaar !!
achhi soch hai .......bahut andar tak mahsoos kia hai aapne.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)