प्रतियोगिता की सातवीं कविता के रूप में हम संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी की कविता प्रकाशित कर रहे हैं। संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी विगत ६ महीनों से हिन्द-युग्म पर आ रहे हैं, पढ़ रहे हैं और हर प्रकार से सहयोग कर हमारा प्रोत्साहन करते रहे हैं। इनका जन्म अभावों व संघर्षों के बीच उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के एक छोटे से गाव गढ़ी अहवरन (ननिहाल) में सन् 3 अप्रैल 1971 को हुआ। इनकी प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षा अभावों के कारण अत्यन्त अव्यवस्थित रही। इन्होंने सन् 1987-88 में जबकि ये स्नातक में ही थे, अपनी लेखनी चलाना प्रारंभ किया। इनका पहला काव्य-संग्रह जिसमें 77 कविताए संग्रहीत हैं `मौत से जिजीविषा´ है। दूसरे काव्य संग्रह `बता देंगे जमाने को´ में 56 कविताए हैं और तीसरा काव्य संग्रह है- `समर्पण´। समर्पण में 101 कविताए संकलित हैं। काव्य संग्रहों के अलावा विभिन्न स्थानीय, क्षेत्रीय व राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में 400 से अधिक कविताए प्रकाशत हो चुकी हैं। अनेकों सम्मानों से नवाज़े जा चुके हैं। आप वर्तमान में जवाहर नवोदय विद्यालय, कुचामन शहर, राजस्थान मे हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कार्यरत हैं।
पुरस्कृत कविता- विपुल कोश
विपुल कोष है, दिव्य प्रेम का, पल-पल इसे लुटाएंगे।
कोई साथ चले न चले, हम आगे बढ़ते जाएंगे।।
स्वार्थ को लेकर नहीं चलेंगे,
ईर्ष्या, द्वेष भी नहीं फलेंगे।
सुविधाओं की चाह न हमको,
हम सबसे मिलाते हाथ चलेंगे।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे, हम चलकर दिखलायेंगे।
विपुल कोष है, दिव्य प्रेम का, पल-पल इसे लुटाएंगे।।
कौन है अपना? कौन पराया?
हमने सबको गले लगाया।
हमको तो बस आस जगानी,
जो भी चेहरा है मुरझाया।
हम नगण्य हैं, क्या कर सकते? हँसेगें और हँसायेंगे।
विपुल कोष है, दिव्य प्रेम का, पल-पल इसे लुटाएँगे।।
शिक्षा ही शक्ति है अपनी,
हमें न धर्म की माला जपनी।
पद, धन, यश, संबन्धों में फंस,
हमें न किसी की खुशी हड़पनी।
संघर्ष ही है जीवन अपना, कर्म करें, मर जायेंगे।
विपुल कोष है, दिव्य प्रेम का, पल-पल इसे लुटाएंगे।।
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰७५, २, ५॰५, ६॰७५
औसत अंक- ५॰५
स्थान- तेरहवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ५, ५॰५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰५
स्थान- सातवाँ
पुरस्कार- कवयित्री पूर्णिमा वर्मन की काव्य-पुस्तक 'वक़्त के साथ' की एक प्रति।
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
संतोष जी सातवें स्थान के लिए बधाई! कविता की आखिरी पंक्तियाँ-शिक्षा ही शक्ति है अपनी.....पल-पल इसे lutayege. बहुत अच्छी लगी!
बहुत खूब! संतोष जी की कवितायें पहले भी पढता रहा हूँ. इनकी प्रस्तुति प्रभावशाली रहती है.
शिक्षा ही शक्ति है अपनी,
हमें न धर्म की माला जपनी।
पद, धन, यश, संबन्धों में फंस,
हमें न किसी की खुशी हड़पनी।
संघर्ष ही है जीवन अपना, कर्म करें, मर जायेंगे।
विपुल कोष है, दिव्य प्रेम का, पल-पल इसे लुटाएंगे।
सच कहा है हम सभी की मूल शक्ति शिक्षा ही है
घर्म जो बैर सिखाये उसका क्या करना
सुंदर
सादर
रचना
भाव और प्रस्तुतीकरण दोनो अच्छे हैं। बधाई।
सुंदर रचना के लिए बधाई |
-- अवनीश तिवारी
अच्ची कविता है...
शिक्षा ही शक्ति है अपनी,
हमें न धर्म की माला जपनी।
पद, धन, यश, संबन्धों में फंस,
हमें न किसी की खुशी हड़पनी।
संघर्ष ही है जीवन अपना, कर्म करें, मर जायेंगे।
विपुल कोष है, दिव्य प्रेम का, पल-पल इसे लुटाएंगे।।
बहुत अच्छा लेखन
बधाई
अच्छे भावः सुंदर
प्रस्तुतीकरण
सातवें स्थान के लिए बधाई
कौन है अपना? कौन पराया?
हमने सबको गले लगाया।
हमको तो बस आस जगानी,
जो भी चेहरा है मुरझाया।
कविता पसंद आयी
सुमित भारद्वाज
विपुल कोष है, दिव्य प्रेम का, पल-पल इसे लुटाएंगे।।
जीवन में अगर हम यह नेक कार्य कर पायें तो जीवन सफल हो जाए |....बहुत-बहुत बधाई
कविता का भाव अच्छा लगा.
धन्यवाद.
कौन है अपना? कौन पराया?
हमने सबको गले लगाया।
हमको तो बस आस जगानी,
जो भी चेहरा है मुरझाया।
आज के युग में भी इतनी सच्चाई मौजूद है ,कवि महोदय की सरल शैली ,काव्यात्मकता ,और सहदयता सभी कुछ बेहद प्रसंशनीय है |
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