अगली कविता के रूप में प्रतियोगिता से ही एक कविता का चुनाव किया है। इस कविता के रचयिता तपन शर्मा कई बार शीर्ष १० में जगह बना चुके हैं।
पुरस्कृत कविता- क्षणिकाएँ
समय
कितना कहा
रूका ही नहीं
आज शायद
किसी दुश्मन ने
आवाज़ दी होगी!!
दर्द
इसकी भी आदत
पड़ ही जायेगी
ये दर्द अभी नया जो है...
चेहरे
कितना घूमा..
पर मुखौटे ही देखने को मिले
चेहरे कहीं खो गये हैं क्या?
आज आइना भी
मुझसे यही कह रहा है!!
मिलावट
मिलावट का दौर
जारी है
आज तो मैं भी
इससे अछूता नहीं रहा...
माँ
माँ रात को सोती ही नहीं
जब से पैदा हुआ हूँ
तभी से है उसे
ये लाइलाज बीमारी!!
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७, ३॰५, ५॰५, ७॰२
औसत अंक- ५॰८
स्थान- छठवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५, ५, ५॰८ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰२७
स्थान- नौवाँ
पुरस्कार- कवयित्री पूर्णिमा वर्मन की काव्य-पुस्तक 'वक़्त के साथ' की एक प्रति।
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
माँ रात को सोती ही नहीं
जब से पैदा हुआ हूँ
तभी से है उसे
ये लाइलाज बीमारी!!
सही बात, माँ तो होती ही ऐसे है
तपन भैया,
सारी क्षणीकाए बहुत अच्छी लगी।
बहुत
सुंदर लिखा है ,अर्थपूर्ण
धन्यवाद
माँ रात को सोती ही नहीं
जब से पैदा हुआ हूँ
तभी से है उसे
ये लाइलाज बीमारी!!
इन पंक्तियों को पढ़ कर तो कोई भी रो पड़ेगा ........सीमा सचदेव
कितना घूमा..
पर मुखौटे ही देखने को मिले
चेहरे कहीं खो गये हैं क्या?
आज आइना भी
मुझसे यही कह रहा है!!..
सही कहा है बिलकुल ...
अब यहाँ हर कोई मुखोटा पहने है...ख़ुद हम चाह कर भी इस नकलीपन से बच नही पाए ....
इस भीड़ में असली और नकली में फर्क कर पाना बहुत कठिन है......
बहुत सही.....
अच्छी बनी है | इस सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई |
अवनीश तिवारी
सच नया दर्द दुःख देता है पर आदत तो पड़ ही जाती है
माँ रात को सोती ही नहीं
जब से पैदा हुआ हूँ
तभी से है उसे
ये लाइलाज बीमारी!!
सुंदर कहा है
सादर
रचना
माँ रात को सोती ही नहीं
जब से पैदा हुआ हूँ
तभी से है उसे
ये लाइलाज बीमारी!!
माँ के प्रति कुछ हमारे दायित्व भी हैं ,यही अहसास दिलाती हैं ये पंक्तियाँ
इसके आगे कुछ भी नही है कहने के लिए
समय
कितना कहा
रूका ही नहीं
आज शायद
किसी दुश्मन ने
आवाज़ दी होगी!!
माँ
माँ रात को सोती ही नहीं
जब से पैदा हुआ हूँ
तभी से है उसे
ये लाइलाज बीमारी!!
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Tapan ji....
bahut sundar...
sundar aur satk likha hai....sadharan sabdon ka prayog karke bahut hi gehri baatein kahin hai.....
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randhir kumar
http://randhirraj.blogspot.com/
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