दोहे
1
मन् लोभी मन लालची,मन चंचल मन चोर
मन के हाथ सभी बिके,मन पर किस का जोर
2
तेरे मन ने जब कही,मेरे मन् की बात
हरे-हरे सब हो गये,साजन पीले पात
3
जिसका मन अधीर हुआ,सुनकर मेरी पीर
वो है मेरा राँझना, मैं हूँ उसकी हीर
4
तेरे मन पहुंची नहीं,मेरे मन की बात
नाहक हमने थे लिये,साजन फ़ेरे सात्
5
मनवा जब समझा नहीं,प्रीत प्रेम का राग
संबंधों घोड़े जा चढ़ा ,तभी बैरी दिमाग
6
वो बैरी पूछै नहीं ,अब तो मेरी जात
जिसके कारण थे हुए,सारे ही उत्पात
7
सुनले साजन आज तू,एक पते की बात
प्यार कभी देखे नहीं.दीन-धरम या जात
8
मन की मन ने जब सुनी. सुन साजन झनकार
छनक् उठी पायल तभी,खनके कंगन हजार
9
मन फकीर है दोस्तो,मन ही साहूकार
कठिन इसका समझना,मन् ऐसा फनकार
10
मन की मन से जब हुई,साजन थी तकरार
जीत सका तू भी नहीं,गई तभी मैं हार
11
मन की करनी देखकर.बौरा गया दिमाग
संबंधों में लगी तभी,बैरन कैसी आग ?
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
14 कविताप्रेमियों का कहना है :
मन मोहक दोहे रचे सभी एक से एक
श्याम सखा श्याम जी रखते माल अनेक
--पांचवे दोहे में 'था' खटक रहा है।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
माननीय,
सभी दोहे एक से बढ़ा कर एक है |
देवेन्द्र जी की परम्परा को ही आगे बढ़ाना सही है |
.
मन मन्दिर में मौज उठी , साधे नए आयाम |
गजले संवरी श्याम रंग, दोहे अभिनव श्याम ||
बधाई |
क्षमा सहित मेरे भाव पिरो रहा हूँ |
.
मन फ़कीर है दोस्तों, मन ही साहूकार |
मुझ में रह उनका हुआ,छलिया कुटिल मक्कार |
.
सादर,
विनय
मुझ में रह उनका हुआ,छलिया कुटिल मक्कार |
विनय जी ,आपके इस सुंदर परिवर्तन हेतु आभार |श्याम
तेरे मन पहुंची नहीं,मेरे मन की बात
नाहक हमने थे लिये,साजन फ़ेरे सात
वाह...! बहुत गहरी बात।
सभी दोहे अच्छे लगे श्याम जी, बस पांचवा कुछ खटक रहा है। एक अच्छी गजल का इंतजार है।
मन की मन से जब हुई,साजन थी तकरार
जीत सका तू भी नहीं,गई तभी मैं हार
वाह!
सभी दोहे अच्छे लगे, ये सबसे अधिक पसंद आया
सुमित भारद्वाज
सुनले साजन आज तू,एक पते की बात
प्यार कभी देखे नहीं.दीन-धरम या जात
बहुत खूब लिखा है
dohon ko padhkar achha laga.
ALOK SINGH "SAHIL"
तेरे मन पहुंची नहीं,मेरे मन की बात
नाहक हमने थे लिये,साजन फ़ेरे सात्
ये पसंद आया
पांचवे दोहे में 'था' खटक रहा है।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
लीजिये देवेंदेर्जी ,हकीर जी
पांचवें दोहे से था गायब हुआ ,अब भिथीक न लगे तो फिर कोशिस करूँगा , आप सभी कीप्रबुद्धता से मैं साहित्य भविष्य के बारे में आश्वस्त हुआ सखा श्याम
मन की मन से जब हुई,साजन थी तकरार
जीत सका तू भी नहीं,गई तभी मैं हार
प्यार की सुंदर हार जीत
तेरे मन पहुंची नहीं,मेरे मन की बात
नाहक हमने थे लिये,साजन फ़ेरे सात
मर्म को सुंदर तरीके से कहा है आप ने
बहुत खूब
सादर
रचना
श्याम जी!
५ और ८ को छोड़कर बाकी सारे मुझे बेहतरीन लगे।
बधाई स्वीकारें\
दोहे दोहन कर मिले बहुविधि राँझा हीर ।
श्याम सखा की लेखनी अहो मेरी तकदीर ।
Doha teeja panchawan liye hue kuchh dosh;
krapaya inhen sudhariye karana mat priya rosh.
Baki dohe achchhe hain badhai.
Chandrabhan Bhardwaj.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)