और क्या करते भला, मुस्कुराते रह गए,
बेलिबासों की गली में सर झुकाते रह गए...
जिससे जितना बन पडा,फासला रखता रहा,
और हम उनकी तरफ़ बाहें बढाते रह गए...
चाँद, तारे, ख्वाब, रातें, हर जगह जो शख्स था,
जब वो आया सामने, हम छटपटाते रह गए....
राम फ़िर बनवास पर हैं, औ' खुदा भी लापता,
आप मस्जिद तोड़ते, मन्दिर बनाते रह गए....
आई दीवाली तो घर की रौनकें खामोश थीं,
शहर के सारे मकां, जगमगाते रह गए.....
निखिल आनंद गिरि
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23 कविताप्रेमियों का कहना है :
हर शे'र उम्दा है बहोत खूब लिखा है आपने .........बहोत खूब ढेरो बधाई ..
बहुत ख़ूब. कुछ शेर तो लाजवाब हैं. बधाई आप को.
बहुत बढ़िया निखिल भाई हर बार की तरह इस बार भी लाजवाब ...
भई निखिल,
हम तो तुम्हारे फैन हो गए. लगातार इतनी सुंदर, गहरी, मर्म से भरी और फ़िर भी इतनी सरल और सहज शब्दों में कही गयी कवितायें पढ़ना अच्छा लगता है. न भारी भरकम शब्द और न ही ज़बरदस्ती बिठाए गए तुकबंदी या ग़ज़ल के नियम - बस सहज, सुंदर काव्य! बहुत खूब, जारी रखिये!
राम फ़िर बनवास पर हैं, औ' खुदा भी लापता,
आप मस्जिद तोड़ते, मन्दिर बनाते रह गए....
वाह!
--वाह!
--देवेन्द्र पाण्डेय।
गज़ल नुमा रचना पसंद आयी, हर शे'र अच्छा लगा
सुमित भारद्वाज
निखिल जी,
यदि आप हर शे'र के बाद एक पंक्ति छोडते तो पढने मे और मजा आता
बेहतरीन
जब वो सामने, हम छटपटाते रह गए....
में पहला भाग कुछ छोटा लगा ?
शेष सब सुंदर है | बधाई |
-- अवनीश तिवारी
जिससे जितना बन पडा,फासला रखता रहा,
और हम उनकी तरफ़ बाहें बढाते रह ए...
लाजवाब शेर, ग़ज़ल पड़ कर मजा अ गया
यूँ तो सारे शे'र असरदार हैं बस इस पंक्ति ऐसा लगता है जैसे कुछ छूट गया है-
जब वो सामने, हम छटपटाते रह गए....
सभी आदेश मान लिए गए हैं....
शेरों के बीच की दूरी बढ़ा दी गई है....
"जब वो सामने..." वाला शेर भी सुधार दिया है....
"चाँद, तारे, ख्वाब,रातें, हर जगह जो शख्स था,
जब वो आया सामन,हम छटपटाते रह गए...."
इसे ऐसे पढ़ें...
हौसला देने वालों का शुक्रिया....
निखिल
राम फ़िर बनवास पर हैं, औ' खुदा भी लापता,
आप मस्जिद तोड़ते, मन्दिर बनाते रह गए....
आई दीवाली तो घर की रौनकें खामोश थीं,
शहर के सारे मकां, जगमगाते रह गए.....
वाह! क्या बात है. बहुत खूब.
इस के हर शेर लाजवाब है
राम फ़िर बनवास पर हैं, औ' खुदा भी लापता,
आप मस्जिद तोड़ते, मन्दिर बनाते रह गए...
इस को पढ़ के तो बस मजा ही आगया
सादर
रचना
वाह भई वाह..
पूरी हुई एक और चाह..
क्या गजल लिखी है..
एक एक शे'र जबर है
या यूँ कहो कि शेर बबर है
बहुत ही शानदार गजल..
निखिल जी!
अगर आपने जरूरी परिवर्त्तन नहीं किये होते तो बहर की तलवार थामकर मैं मैदान-ए-जंग में कूद गया होता।
अब आप विजेता हैं :)
बधाई स्वीकारें।
बहुत खूब |
.
बधाई |
.
विनय
आई दीवाली तो घर की रौनकें खामोश थीं,
शहर के सारे मकां, जगमगाते रह गए.....
wllaaaaaaaaaaaaaaah
dil par ghar kar gaya aapka ek ek sher...
baar baar padhene ka man kiya
tahe dil se shukriya itni achhi shayari padhane ke liye..
shailesh
SHAYAD aajtak aapki padhi sabhi rachnaaon mein,behatar.jordaar sheron se gunthi hui behatarin gajal.
ALOK SINGH "SAHIL"
राम फ़िर बनवास पर हैं, औ' खुदा भी लापता,
आप मस्जिद तोड़ते, मन्दिर बनाते रह गए....
excellent nikhil
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