प्रतियोगिता की आगे की कविताओं की ओर बढ़ते हैं। अब तक पाँच कविताएँ आप पढ़ चुके हैं। छठवें स्थान की कविता के तौर पर हम दिव्य प्रकाश दुबे की रचना 'मन होता है मेरा भी' का प्रकाशन कर रहे हैं।
पुरस्कृत कविता- मन होता है मेरा भी
मन होता है मेरा भी
सूरज को शाम में पिघलते हुए देखूँ,
तुम्हारे साथ, हाथों में लेकर हाथ...
मन होता है मेरा भी
साथ तुम्हारे बाज़ार जाऊँ
हमारे घर को सजाने का सामान लाऊँ...
मन होता है मेरा भी
जब सुबह उठूँ तो पहला चेहरा तेरा देखूं
ऑफिस जाने से पहले, तुझसे जल्दी आने का वादा कर लूँ...
मन होता है मेरा भी
रात में ठहर कर
चांदनी को तुझमें मचलते हुए देखूं ...
तेरे होठों को पलकों पे रखकर तेरी जुल्फों में उलझ कर देखूँ .........
मन होता है मेरा भी
वक़्त को तुम्हारे साथ बहता हुआ देखूँ
और तारीखों को तेजी से चलता हुआ देखूँ...
मन होता है मेरा भी
रात-रात भर तुझसे बात करूँ वही फिर-फिर
और रात को रंग बदलते हुए देखूँ...
तारों को शर्माकर सुबह की किरणों में ढलते हुए देखूँ ...
मन होता है मेरा भी
जी भर तुझको आँखों में भरकर
अपनी छोटी सी दुनिया के रंगों संग छलक कर देखूँ...
मन होता है मेरा भी
क्या मन होता है तेरा भी ................?
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰५, ५, ५॰५, ५॰४
औसत अंक- ५॰८५
स्थान- चौथा
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ५, ५॰८५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰६२
स्थान- छठवाँ
पुरस्कार- कवयित्री पूर्णिमा वर्मन की काव्य-पुस्तक 'वक़्त के साथ' की एक प्रति।
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
अच्छा लिखा है।
छठवें स्थान के लिए बधाई!
बेहतर लिखी जा सकती थी...
अच्छी कोशिश...
मन होता है मेरा भी
सूरज को शाम में पिघलते हुए देखूँ,
तुम्हारे साथ, हाथों में लेकर हाथ...
मन होता है मेरा भी
छठवेम स्थान के लिये बधाई...
Mai pehlee baar is blogpe aayee hun...kaafee kuchh padh daalaa...mujhe "man hota hai merabhee" bohothee achhee lagee...bhaavaarth a behad achhe lage....mai chhand ya kavya rachnayonke anya rang dhang nahee jantee, so uspe apnaa mat nahee pradarshit kar saktee...lekin jo padha wo bohothee achhaa laga...ek seedha, atmeey sapna...
बहुत बहुत धन्यवाद शोभा जी ,नीति जी और तपन भाई , आप सबका .....तपन भाई मैं कोशिश करूँगा की बेहतर लिखूं ...और विशेष ,रूप से धन्यवाद शमा जी का कि आप पहली बार हिंद युग्म पे आयीं और आपको अच्छा लगा .... आप आगे भी हिंद युग्म पढ़ते रहिये ...
सादर
दिव्य प्रकाश दुबे
"मन होता है मेरा भी
सूरज को शाम में पिघलते हुए देखूँ,
तुम्हारे साथ, हाथों में लेकर हाथ...
मन होता है मेरा भी"
अच्छी कविता....हिन्दयुग्म के अच्छे कवियों की जमात में आप भी शामिल हो गए....
अच्छा प्रयास, पुरस्कार के लिए बधाई!
दिव्य प्रकाश जी !!
कही पर तुमको कही पर तेरा शब्दों का उपयोग कुछ समझ से परे था.
पर कविता का भाव बहुत सुंदर है .
धन्यवाद
जब सुबह उठूँ तो पहला चेहरा तेरा देखूं
ऑफिस जाने से पहले, तुझसे जल्दी आने का वादा कर लूँ...
खूबसूरत और मासूम पंक्तियाँ
सुंदर कविता
सादर
रचना
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