कहने लगीं अब बूढ़ी दादियाँ
बच्चों के हाथों में डोर है।
शहरों की आबादी जब बढ़ी
खेतों में पत्थर के घर उगे।
कमरों में सरसों के फूल हैं
चिड़ियों को उड़ने से डर लगे॥
कटने लगीं आमों की डालियाँ
पिंजड़े में कोयल है मोर है।
प्लास्टिक के पौधे हैं, लॉन हैं
अम्बर को छूते मकान हैं।
मिटा दे हमें जो इक पल में
ऐसे भी बनते सामान हैं॥
उड़ने लगीं धरती की चीटियाँ
पंखों में सासों की डोर है।
सूरज पकड़ने की कोशिश ने
इंसाँ को पागल ही कर दिया।
अपनी ही मुट्ठी को बंद कर
कहता है धूप को पकड़ लिया॥
दिखने लगीं जब अपनी झुर्रियाँ
कहता है ये कोई और है।
--देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
bouth he pyari baat liki aapne post mein aacha laga nice work sir
Shyari Is Here Visit Plz Ji
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अच्छी रचना-कमरों में सरसों के फूल है,चिडियों को उड़ने से डर लगे....बहुत खूब
कृपया अंतिम पंक्ति में ----------
दिखने लगी जब अपन झुर्रियाँ ---में अपन की जगह --अपनी----पढ़ने का कष्ट करें।
--देवेन्द्र पाण्डेय
सूरज पकड़ने की कोशिश ने
इंसाँ को पागल ही कर दिया।
अपनी ही मुट्ठी को बंद कर
कहता है धूप को पकड़ लिया॥
ये इंसान इतना पागल क्योँ है ???????
सूरज पकड़ने की कोशिश ने
इंसाँ को पागल ही कर दिया।
अपनी ही मुट्ठी को बंद कर
कहता है धूप को पकड़ लिया॥
अच्छा लिखा
सुमित भारद्वाज
सूरज पकड़ने की कोशिश ने
इंसाँ को पागल ही कर दिया।
अपनी ही मुट्ठी को बंद कर
कहता है धूप को पकड़ लिया॥
पूरी कविता अच्छी है देवेंद्र जी।
सूरज पकड़ने की कोशिश ने
इंसाँ को पागल ही कर दिया।
अपनी ही मुट्ठी को बंद कर
कहता है धूप को पकड़ लिया॥
आपके यथार्त लेखन का कायल हो गया
बेहतरीन कविता
चिड़ियों को उड़ने से डर लगे॥
.
सच कहा !
,
विनय
विषय अच्छा है, शिल्प पर और म्हणत की जा सकती थी....
वैसे, आपको मैं क्या समझाऊं.....
bahut sundar chitaran hai,devender ji.badhyee shyam.skha shyam
अच्छे भाव हैं, बधाई. निखिल जी से सहमत हूँ, चित्रण को बेहतर किया जा सकता है. इस बार hygene का ध्यान रखने के लिए धन्यवाद!
आप की कविता पढ़ के बस वाह निकला मुंह से
अपनी ही मुट्ठी को बंद कर
कहता है धूप को पकड़ लिया
कितना सुंदर लिखा है
चिड़ियों को उड़ने से डर लगे
इस एक लाइन में सारा मर्म है
बहुत सुंदर
सादर
रचना
शिल्प और भाव दोनों को संभाल कर लिखना मुश्किल लगता है कभी कभार |
आपका प्रयास इस दिशा में सराहनीय लगता है |
-- अवनीश तिवारी
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