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Friday, November 14, 2008

मुस्कान चलो बांट दे कुछ इस जहां में हम


प्रतियोगिता की पाँचवी प्रस्तुति हिन्द-युग्म में पहली बार शिरकत कर रहे रोहित रूसिया है। 26 अक्टूबर 1973 को जन्मे रोहित की रूचि मूल रूप से नई कविता, नव गीत और ग़जलों में है। विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित भी हो चुकी हैं। वर्तमान में मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन जिला इकाई छिंदवाड़ा में प्रबंध मंत्री हैं और दवा व्यवसाय में विगत 15 वर्षों से संलग्न हैं।

पुरस्कृत कविता

सपने खुली आंखों के सपने नहीं होते
दिल जिनमें दरीचें ना हो अपने नहीं होते

बचपन का मेरा ख्वाब कहीं खो गया ऐसे
कुछ सीपियों में ज्यों कभी मोती नहीं होते

खुशियों के कारोबार पे करता है जो यकीं
ये झूठ है कि गम उसे सहने नहीं होते

हर शख्स जहां भीड़ में तन्हा सा रहता है
बेशक वो मकां होंगे कभी घर नहीं होते

मुस्कान चलो बांट दे कुछ इस जहां में हम
सजदे को खुदा-बुत ही जरूरी नहीं होते



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ८, ३, ६, ५॰५
औसत अंक- ५॰६२५
स्थान- दसवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४, ७॰५, ५॰६२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰७१
स्थान- पाँचवाँ


पुरस्कार- कवयित्री पूर्णिमा वर्मन की काव्य-पुस्तक 'वक़्त के साथ' की एक प्रति।

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20 कविताप्रेमियों का कहना है :

Jimmy का कहना है कि -

kiyaa baat hai dear bouth aacha post hai


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Anonymous का कहना है कि -

कविता का एक शेर --हर शख्स जहाँ भीड़ में तन्हा है,बेशक वो मकां होगे कभी घर नही होगे बहुत अच्छा लगा. बधाई!

mehek का कहना है कि -

bahut sundar

सुनीता शानू का कहना है कि -

खुशियों के कारोबार पे करता है जो यकीं
ये झूठ है कि गम उसे सहने नहीं होते
बहुत सुन्दर!
सत्यता को दर्शाती निम्न पंक्तियाँ बेहद पसंद आई...

हरकीरत ' हीर' का कहना है कि -

बचपन का मेरा ख्वाब कहीं खो गया ऐसे
कुछ सीपियों में ज्यों कभी मोती नहीं होते
ये शे'र कहीं पढा़-पढा़ सा लगा यूँ सारे अशआर अच्‍छे बन पडे़ हैं, बधाई पाँचवें स्‍थान के लिए।

Riya Sharma का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
Riya Sharma का कहना है कि -

बधाई पाँचवे स्थान के लिए
कवित बहुत ही अर्थपूर्ण है और बहुत प्रभावित करती है
धन्यवाद

Anonymous का कहना है कि -

मुस्कान चलो बांट दे कुछ इस जहां में हम
सजदे को खुदा-बुत ही जरूरी नहीं होते
सरल शब्द सुंदर भाव मनोरम ग़ज़ल
सादर
रचना

शोभा का कहना है कि -

मुस्कान चलो बांट दे कुछ इस जहां में हम
सजदे को खुदा-बुत ही जरूरी नहीं होते
वाह! बहुत खूब लिखा है.

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

अच्छी गज़ल है।
-देवेन्द्र पाण्डेय।

दीपाली का कहना है कि -

हर एक शेर बहुत खुबसूरत है...
अच्छा लगा..

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

मुस्कान चलो बांट दे कुछ इस जहां में हम
सजदे को खुदा-बुत ही जरूरी नहीं होते

बहुत उम्दा शे’र रोहित जी..
बधाई...

neelam का कहना है कि -

खुशियों के कारोबार पे करता है जो यकीं
ये झूठ है कि गम उसे सहने नहीं होते

sabse jyaada yahi pasand aaya hume

Unknown का कहना है कि -

खुशियों के कारोबार पे करता है जो यकीं
ये झूठ है कि गम उसे सहने नहीं होते

वाह क्या लिखा है

सुमित भारद्वाज

दिगम्बर नासवा का कहना है कि -

बचपन का मेरा ख्वाब कहीं खो गया ऐसे
कुछ सीपियों में ज्यों कभी मोती नहीं होते

आपके लेखन का कायल हो गया
उम्दा शेर, आस पास बिखरी हुई बातों से निकले हुवे

Nikhil का कहना है कि -

पहली बार हिन्दयुग्म पर आने की बधाई....ग़ज़ल की रफ्तार बड़ी प्यारी है...

Nikhil का कहना है कि -

पहली बार हिन्दयुग्म पर आने की बधाई....ग़ज़ल की रफ्तार बड़ी प्यारी है...

Smart Indian का कहना है कि -

सहज और प्रवाहमय, पुरस्कार के लिए बधाई!

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

वाह ! सरलता से कही बात है |
यह ग़ज़ल बिकुल सरल और संतुलित लगी |
बधाई |

-- अवनीश तिवारी

Unknown का कहना है कि -

मुस्कान चलो बांट दे कुछ इस जहां में हम....वाह बहुत खूब!

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