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ये सफर अच्छे से बेहतर की तलाश में



प्रतियोगिता की पाँचवीं रचना एक गज़ल है, जिसके रचनाकार रोहित रुसिया हैं। अनियमित रूप से लिखने वाले रोहित की कविताएं अक्सर लंबे अंतराल के बाद आती हैं। इससे पहले उनकी पिछली कविता पिछले सितंबर माह मे प्रकाशित हुई थी।

पुरस्कृत रचना:  गज़ल


इंसानियत की जद में, उजालों की आस में
ये सफर अच्छे  से, बेहतर की  तलाश में।

किरदार  कैद  हैं  कई, पर्दों के दरमियाँ
फन उनके फिर से लायें, चलो हम उजास मे।

मिटटी  के घरौदें  हैं, महलों  की  ओट में
गिरवी रखी हैं खुशियाँ, महाजन के पास में।

संजीदा  बहस  होगी, दिल्ली  में भूख पर
मुद्दा  ये  जिक्र  में है, हर आमों-खास  में।

गुलशन की हवाओं में ये, कैसा ज़हर घुला
तितली भी  डर रही हैं, जाने को पास में।

मुद्दत से मौन ढूंढ रहा, क्या है ये हुजूम
खुशियों की चाह है या, सुकूं की तलाश में।
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पुरस्कार: हिंद-युग्म की ओर से पुस्तक।


तुम्हारी याद तो आई बहुत है


प्रतियोगिता की सातवीं कविता के रचयिता रोहित रुसिया हिंद-युग्म पर लगभग दो वर्ष के अंतराल के बाद प्रकाशित हो रहे हैं। 1973 मे जन्मे रोहित रुसिया छिंदवाड़ा (म.प्र.) मे रहते हैं। विभिन्न राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में पहले भी इनकी कविताएं एवं लेख प्रकाशित हो चुके हैं और प्रलेसं, इप्टा आदि अनेकों साहित्यिक संस्थाओं मे भी सक्रिय भागीदार रहे हैं। इनका रुझान संगीत मे भी रहा है, फ़लतः जैन-भजनों की दो ऑडियो सीडीज्‌ के लिये अपनी आवाज देने के अलावा अक्सर राज्य स्तरीय मंचों पर भी गायन प्रस्तुति देते रहे हैं। संप्रति आयुर्वेदिक दवा निर्माण संस्थान मे निदेशक के पद पर कार्यरत रोहित जी की हिंद-युग्म पर इससे पहले एक कविता प्रकाशित हो चुकी है।
पता: पता: 588, पंचषील नगर, छिंदवाड़ा (म.प्र.) 480 001
दूरभाष: 09425871600


पुरस्कृत कविता:  गीत

तुम्हारी याद तो आई बहुत है ।

जहां हर द्वार, दरबानों के पहरे
चमकती गाड़ियां, बंगले सुनहरे
वहां रिश्तों में, 
तनहाई बहुत है...................।

नदी चुप है, और सागर बोलते हैं
सभी दौलत से, सपने तौलते हैं
हाँ, मंजिल भी, 
तमाशाई बहुत है.................।

नकाबों से ढँके हैं सारे चेहरे
छुपा रक्खे हैं सबने राज गहरे
है इंसा एक, 
परछाई बहुत हैं...............।

दिखाने के बचे सब, रिश्ते-नाते
जुबां पर हो, भले ही मीठी बातें
यूँ संबंधों में तो,
खाई बहुत है....................।

जुबां है मौन, मंजर बोलते हैं
यहां इमाँ जरा में डोलते हैं
सच की राहों पे तो,
काई बहुत है..................।

तुम्हारी याद तो आई बहुत है ।
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पुरस्कार: विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।  

मुस्कान चलो बांट दे कुछ इस जहां में हम


प्रतियोगिता की पाँचवी प्रस्तुति हिन्द-युग्म में पहली बार शिरकत कर रहे रोहित रूसिया है। 26 अक्टूबर 1973 को जन्मे रोहित की रूचि मूल रूप से नई कविता, नव गीत और ग़जलों में है। विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित भी हो चुकी हैं। वर्तमान में मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन जिला इकाई छिंदवाड़ा में प्रबंध मंत्री हैं और दवा व्यवसाय में विगत 15 वर्षों से संलग्न हैं।

पुरस्कृत कविता

सपने खुली आंखों के सपने नहीं होते
दिल जिनमें दरीचें ना हो अपने नहीं होते

बचपन का मेरा ख्वाब कहीं खो गया ऐसे
कुछ सीपियों में ज्यों कभी मोती नहीं होते

खुशियों के कारोबार पे करता है जो यकीं
ये झूठ है कि गम उसे सहने नहीं होते

हर शख्स जहां भीड़ में तन्हा सा रहता है
बेशक वो मकां होंगे कभी घर नहीं होते

मुस्कान चलो बांट दे कुछ इस जहां में हम
सजदे को खुदा-बुत ही जरूरी नहीं होते



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ८, ३, ६, ५॰५
औसत अंक- ५॰६२५
स्थान- दसवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४, ७॰५, ५॰६२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰७१
स्थान- पाँचवाँ


पुरस्कार- कवयित्री पूर्णिमा वर्मन की काव्य-पुस्तक 'वक़्त के साथ' की एक प्रति।