प्रतियोगिता की पाँचवीं रचना एक गज़ल है, जिसके रचनाकार रोहित रुसिया हैं। अनियमित रूप से लिखने वाले रोहित की कविताएं अक्सर लंबे अंतराल के बाद आती हैं। इससे पहले उनकी पिछली कविता पिछले सितंबर माह मे प्रकाशित हुई थी।
पुरस्कृत रचना: गज़ल
इंसानियत की जद में, उजालों की आस में
ये सफर अच्छे से, बेहतर की तलाश में।
किरदार कैद हैं कई, पर्दों के दरमियाँ
फन उनके फिर से लायें, चलो हम उजास मे।
मिटटी के घरौदें हैं, महलों की ओट में
गिरवी रखी हैं खुशियाँ, महाजन के पास में।
संजीदा बहस होगी, दिल्ली में भूख पर
मुद्दा ये जिक्र में है, हर आमों-खास में।
गुलशन की हवाओं में ये, कैसा ज़हर घुला
तितली भी डर रही हैं, जाने को पास में।
मुद्दत से मौन ढूंढ रहा, क्या है ये हुजूम
खुशियों की चाह है या, सुकूं की तलाश में।
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पुरस्कार: हिंद-युग्म की ओर से पुस्तक।