प्रतियोगिता की सातवीं कविता के रचयिता रोहित रुसिया हिंद-युग्म पर लगभग दो वर्ष के अंतराल के बाद प्रकाशित हो रहे हैं। 1973 मे जन्मे रोहित रुसिया छिंदवाड़ा (म.प्र.) मे रहते हैं। विभिन्न राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में पहले भी इनकी कविताएं एवं लेख प्रकाशित हो चुके हैं और प्रलेसं, इप्टा आदि अनेकों साहित्यिक संस्थाओं मे भी सक्रिय भागीदार रहे हैं। इनका रुझान संगीत मे भी रहा है, फ़लतः जैन-भजनों की दो ऑडियो सीडीज् के लिये अपनी आवाज देने के अलावा अक्सर राज्य स्तरीय मंचों पर भी गायन प्रस्तुति देते रहे हैं। संप्रति आयुर्वेदिक दवा निर्माण संस्थान मे निदेशक के पद पर कार्यरत रोहित जी की हिंद-युग्म पर इससे पहले एक कविता प्रकाशित हो चुकी है।
पता: पता: 588, पंचषील नगर, छिंदवाड़ा (म.प्र.) 480 001
दूरभाष: 09425871600
पुरस्कृत कविता: गीत
तुम्हारी याद तो आई बहुत है ।
जहां हर द्वार, दरबानों के पहरे
चमकती गाड़ियां, बंगले सुनहरे
वहां रिश्तों में,
तनहाई बहुत है...................।
नदी चुप है, और सागर बोलते हैं
सभी दौलत से, सपने तौलते हैं
हाँ, मंजिल भी,
तमाशाई बहुत है.................।
नकाबों से ढँके हैं सारे चेहरे
छुपा रक्खे हैं सबने राज गहरे
है इंसा एक,
परछाई बहुत हैं...............।
दिखाने के बचे सब, रिश्ते-नाते
जुबां पर हो, भले ही मीठी बातें
यूँ संबंधों में तो,
खाई बहुत है....................।
जुबां है मौन, मंजर बोलते हैं
यहां इमाँ जरा में डोलते हैं
सच की राहों पे तो,
काई बहुत है..................।
तुम्हारी याद तो आई बहुत है ।
___________________________________________________________________
पुरस्कार: विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
10 कविताप्रेमियों का कहना है :
वाह...मनोरम मुग्धकारी अतिसुन्दर गीत...
भाव प्रवाह और शिल्प ,सब अतिप्रभावशाली..!!!
इस प्रतिम रचना को पढवाने के लिए बहुत बहुत आभार !!!
सच की राहों पे तो,
काई बहुत है..................।
दिल को छू गयी कविता रोहित जी को बधाई।
वहां रिश्तों में,
तनहाई बहुत है
बेहद खूबसूरत है यह रचना .. प्रभावशाली
rohit ji..
aapne likhaa ...
aur bas...
majaa aa gayaa......
sach mein..bahut pyaaraa likha hai...
kabhi aapse phone par baat kareinge.....
रोहित जी बहुत अच्छा लिखा आपने. बहुत सरल, सहज और सच. पहली बार लगा किसी की कविता मेरी कविताओं से मिलती जुलती है. मै ये नहीं कह रही की मै आप जितना अच्छा लिखती हूँ लेकिन शायद इतना ही सरलता और सहजता है मेरी कविताओं में भी.. कभी मेरे ब्लॉग पर भी आइये ranjanathepoet.blogspot.com
सच की राहों पे तो,
काई बहुत है....!!
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
बहुत सही लिखा आपने... यथार्थपरक कविता ... बधाई।
बहुत अच्छी गजल लिखी आपने..बहुत ही प्रभावशाली.. ऐसे हि लिखते रहिये ..हमारी शुभकामनाएं
bahut bahut sacchi or acchi rachna ke liye bandhai ....:)
“नकाबों से ढँके हैं सारे चेहरे
छुपा रक्खे हैं सबने राज गहरे
है इंसा एक,
परछाई बहुत हैं. तुम्हारी याद तो आई बहुत है।“ सचमुच सब चेहरों पर नकाब लगे हैं. यहाँ असली नकली कि कोई पहचान नहीं. आपने राज़ की बात को आसानी से खोल कर रख दिया इस कविता में. एक अनूठा प्रयास है सीधे सादे शब्दों में. बहुत बहुत साधुवाद आपको ! अश्विनी कुमार रॉय
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)