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Thursday, September 23, 2010

कविता मे धरती, गगन और मिलन


यूनिप्रतियोगिता के माध्यम से हर माह नये कवि भी हिंद-युग्म से जुड़ते रहते हैं। इसी श्रंखला मे इस बार हमसे जुड़ी हैं प्रतियोगिता की पाँचवें स्थान की कविता की कवियत्री स्नेह ’पीयूष’। 1975 मे सतना (मध्य प्रदेश) मे जन्मी स्नेह ने विज्ञान मे स्नातक, हिंदी साहित्य मे परास्नातक व संगीत मे विशारद की शिक्षा प्राप्त की है। कविता के प्रति अपने स्नेह के बारे मे उनका स्वयं कहना है- "मन की बात कहने के लिये कविता से बेहतर कुछ भी नहीं है। बहुत थोड़े से शब्दों से बड़ी से बड़ी पीड़ा और आनंद को व्यक्त किया जा सकता है इसलिये जीवन के हर खट्टे मीठे अनुभव को कविता बनाकर कागज पर सहेज लिया।  इन पंक्तियों में कभी मैं स्वयं थी और कभी दूसरों के सुख दुःख थे। इन छोटी बड़ी बातों को महसूस करते-करते दो-चार कविताओं का संग्रह कब सैकड़ों में बदल गया, पता ही नहीं चला। पहली कविता दसवीं कक्षा में नेहरू जन्म-शताब्दी समारोह के अवसर पर आयोजित स्वरचित काव्य-पाठ प्रतियोगिता के लिये लिखी थी और प्रथम स्थान प्राप्त किया था । जिसका प्रसारण आकाशवाणी रीवा के द्वारा किया गया। स्कूल-कालेज में बहुत सी प्रतियोगितायें जीतीं । स्थानीय समाचार पत्रों में कुछ रचनायें प्रकाशित हुई । उसके बाद कभी प्रयास नहीं किया, तो ये सफर रुक सा गया और मनपसंद लेखक और कवियों को पढने तक ही सीमित रह गया। फिर अमेरिका प्रवास के दौरान हिन्दी साहित्य की कमी खूब अखरी तो हिन्द युग्म देखा । इंटरनेट पर हिन्दी को देखना और पढ़ना बहुत सुखद लगा, तो खूब पढा भी और दोबारा अपनी कवितायें देखने का लालच हो आया।"

पुरस्कृत कविता: धरती, गगन और मिलन....

आज बना वर व्योम प्रिय
तुरही बजाते बने मेघ बराती,
प्रेयसी वसुंधरा वधू बनी
निहार निज सौंदर्य़ लजाती ।।

सजती स्वयं हरी चूनर में
पग सतरंगी महावर लगा रही,
भाँति भाँति के पुष्पों से धऱती
आज अपना श्रँगार करा रही।।

गगन सजन अवनी सजनी से
मिलने भेंट मेघ की लाये ,
हिला कर गुलमोहर की शाख
हवा धरती पर चौक पुराये ।।

व्याकुल हैं दोनो आज मिलन को
धीर कोई  भी न रखने पाये
मिलने को अपनी धरा प्रिया से
अंबर आज झुक-झुक आये ।।

चला आकाश लरजता-गरजता
काँप उठा संसार में कण-कण
घनघोर तूफानो की डोली ले
बारात बढ़ रही थी क्षण क्षण ।।

सहसा रुक गया ये विलय
सोचने लगे दो तृषित हृदय
लाने वाले थे क्या हम-तुम
इस अबोध सृष्टि में प्रलय ।।

तड़प उठा नभ जानते ही
निकल पड़ी उच्छ्वास से दामिनि
कैसे मोह से छूट गई धरा
जो बनी थी अब तक सुख कामिनी ।।

कर रहा हूँ युगों से प्रतीक्षा मैं
ठुकराओ न मेरा निवेदन प्रिये
अब ये विछोह स्वीकार नहीं
अनुभूत करो ये संवेदन प्रिये ।।

बोली पृथ्वी मेरे आकाश
करके सफल अपने प्रणय को
स्वयं मिटाकर अपने जग को
क्या दिखा सकूंगी मुख तुमको ।।

इसलिये लौट जाओ तुम प्रिय
फेर लो मुख मेरी व्यथा से
देखें एक दूजे को दूर दूर से
नियति हमारी यही सदा से ।।

भरे-भरे नयनों से नभ
लौट चला कुछ क्षण रुक कर
रहो भूमि तुम हरी-भरी
करे नमन ये सृष्टि झुककर ।।
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पुरस्कार: विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।        

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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

M VERMA का कहना है कि -

बोली पृथ्वी मेरे आकाश
करके सफल अपने प्रणय को
स्वयं मिटाकर अपने जग को
क्या दिखा सकूंगी मुख तुमको ।।
अद्भुत है यह प्रणय निवेदन और सम्वाद.
प्रकृति का मानवीकरण .. मानो सजीव हो उठी है समस्त प्रकृति

रंजना का कहना है कि -

वाह...वाह...वाह...
क्या भाव है और क्या बिम्ब विधान....वाह !!!

मन मुग्ध कर लिया इस अप्रतिम रचना ने...

महेन्‍द्र वर्मा का कहना है कि -

धरती और गगन के प्रणय की अनोखी कल्पना...वाह...अति सुंदर रचना।

rachana का कहना है कि -

bimb pradha rachna sunder bhav ke sath
badhai
rachana

सदा का कहना है कि -

बहुत ही सुन्‍दर एवं भावमय प्रस्‍तुति ।

गिरधारी खंकरियाल का कहना है कि -

प्रवास में, अमेरिका जैसे देश में रहते हुए हिंदी को लिखना , पढना और इतनी सुंदर काव्य रचना करना श्रेयष्कर है आपकी कविता पढ़ कर तो प्रसाद , पन्त , निराला और महादेवी ( कवि चतुष्टय ) की झलक प्रतीत होती है .अति सुन्सेर रचना है छायावाद की .
Samaya mile to mere blog par bhi aye http://gaonwasi.blogspot.co

निर्मला कपिला का कहना है कि -

भरे-भरे नयनों से नभ
लौट चला कुछ क्षण रुक कर
रहो भूमि तुम हरी-भरी
करे नमन ये सृष्टि झुककर ।।
बहुत सुन्दर भाव मय बोध कविता। बधाई की पात्र हैं लेखिका। आभार।

Sneh 'Peeyush' का कहना है कि -

इतनी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिये आप सभी का ह्रदय से आभार

मौन का कहना है कि -

ek sundar rachna ke liye sadhuvad

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