दीवाने तेरे हुस्न के मारों में खड़े हैं
तपते हुए पैरों से शरारों में खड़े हैं
चल-चल के कदम रुकते हैं अचरज में अचानक
कुछ सूखे शजर कैसे बहारों में खड़े हैं
सहरा में किसे होती नहीं अब्र की चाहत
यह सोच के प्यासों की कतारों में खड़े हैं
तारों से फरोज़ां किये दुल्हन तेरी चूनर
हम डोली उठाए हैं, कहारों में खड़े हैं
मज़हब के सबब आप की है हम से अदावत
जैसे कि हम अल्लाह के प्यारों में खड़े हैं
जिन लोगों ने राहों से बनाए थे मरासिम
मंज़िल पे वही लोग, सितारों में खड़े हैं
तालीम पे इस अह्द में इक आप का हक है
इस मुल्क में हम कब से गंवारों में खड़े हैं
महसूस जिन्होंने भी किया दर्द हमारा
वो लोग तेरे मेरे सहारों में खड़े हैं
मंदिर हो या मस्जिद वहाँ ये जंग छिड़ी है
हिंदू ओ' मुसलमान कतारों में खड़े हैं
सूरज लिये फिरते हैं हथेली पे जो पैहम
हम आज उन्हीं रंगे सियारों में खड़े हैं
(बह्र - मफऊल मफाईल मफाईल फ़ऊलुन)
प्रेमचंद सहजवाला
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
वाह ! बहुत उम्दा .... सुबह सुबह बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल पढवाने का शुक्रिया !!
तालीम पे इस अह्द में इक आप का हक है
इस मुल्क में हम कब से गंवारों में खड़े हैं
बहुत खूब..... बहुत खूब.....बहुत खूब.....
आलोक उपाध्याय "नज़र"
shaandaar gazal kahi hai uncle ji
चल-चल के कदम रुकते हैं अचरज में अचानक
कुछ सूखे शजर कैसे बहारों में खड़े हैं
सहरा में किसे होती नहीं अब्र की चाहत
यह सोच के प्यासों की कतारों में खड़े हैं
beautiful.
ऐसी ग़ज़ल पढ़ने को मिलेगी तो मुंह से वाह..वाह तो निकलेगी ही...बहुत सुंदर रचना।
सहरा में किसे होती नहीं अब्र की चाहत
यह सोच के प्यासों की कतारों में खड़े हैं
kitni sunder baat
तालीम पे इस अह्द में इक आप का हक है
इस मुल्क में हम कब से गंवारों में खड़े हैं
kya baat hai
achchhi gazal
saader
rachana
महसूस जिन्होंने भी किया दर्द हमारा
वो लोग तेरे मेरे सहारों में खde hain
kyaa baat hai sir..!
sach mein...laajawaab....
जिन लोगों ने राहों से बनाए थे मरासिम
मंज़िल पे वही लोग, सितारों में खड़े हैं
बहुत खूबसूरत गज़ल .. हर शेर लाजवाब
सहरा में किसे होती नहीं अब्र की चाहत
यह सोच के प्यासों की कतारों में खड़े हैं ।
बहुत ही सुन्दर शब्द, गहरे भावों के साथ्ा बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
bauuuuuuuuuuuuuuuuut khooob
“सूरज लिये फिरते हैं हथेली पे जो पैहम
हम आज उन्हीं रंगे सियारों में खड़े हैं”
शुक्रिया मेहरबानी जनाब लाजवाब है कविता आपकी
क्योंकि हम भी इसे पढकर आपके कद्रदानों में खड़े हैं. इस निहायत खूबसूरत तखलीक के लिए आपको मुबारकबाद. अश्विनी कुमार रॉय
“जिन लोगों ने राहों से बनाए थे मरासिम
मंज़िल पे वही लोग, सितारों में खड़े हैं
तालीम पे इस अह्द में इक आप का हक है
इस मुल्क में हम कब से गंवारों में खड़े हैं” बहुत अच्छी शेरो शायरी की है आपने ! आपके शे’रों में कमाल का वज़न है. बेहद गहराई है. आपका तसव्वुरो-ख़याल बेमिसाल है जनाब. काबिले तारीफ है. अश्विनी कुमार रॉय
BAHOT HI UMDA GHAZAL... HAR SHER LAAZAWAAB...
bahut badhiya hai
by
Hindi Sahitya
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