हर माह के सोमवारों को हम माह के यूनिकवि की कविताओ का प्रकाशन करते हैं। इसी सिलसिले मे प्रस्तुत है अगस्त माह के यूनिकवि सुभाष राय की यह कविता।
अब सुनो तुम
सुबह का सूरज
तुम्हारे भाल पर
उगा रहता है अक्सर
मेरे ह्रदय तक
उजास किये हुए
मेरी सबसे सुन्दर
रचना भी कमजोर
लगने लगती है
जब देखता हूँ
तुम्हें सम्पूर्णता में
दिए की तरह जलते
तुम्हारे रक्ताभ नाख़ून
दो पंखडियों जैसे अधर
काले आसमान पर लाल
नदी बहती देखता हूँ मैं
सचमुच एक पूरा
आकाश होता है तुम्हारे होने में
जिसमें बिना पंख के
भी उड़ना संभव है
जिसमें उड़कर भी
उड़ान होती ही नहीं
क्योंकि चाहे जितनी दूर
चला जाऊं किसी भी ओर
पर होता वहीँ हूँ
जहाँ से भरी थी उड़ान
तुम नहीं होती तो
अपने भीतर की चिंगारी से
जलकर नष्ट हो गया होता
बह गया होता दहक कर
तुम चट्टान के बंद
कटोरे में संभाल कर
रखती हो मुझे
खुद सहती हुई
मेरा अनहद उत्ताप
जलकर भी शांत
रहती हो निरंतर
जो बंधता नहीं
कभी भी, कहीं भी
वह जाने कैसे बंध गया
कोमल कमल-नाल से
जो अनंत बाधाओं के आगे भी
रुकता नहीं, झुकता नहीं
कहीं भी ठहरता नहीं
वह फूलों की घाटी में
आकर भूल गया चलना
भूल गया कि कोई और भी
मंजिल है मधु के अलावा
सुन रही हो तुम
या सो गयी सुनते-सुनते
पहले तुम कहती थी
मैं सो जाता था
अब मैं कह रहा हूँ
पर तुम सो चुकी हो
उठो, जागो और सुनो
मुझे आगे भी जाना है.
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
यूनिकवि बनने के लिए ढेर सारी बधाइयाँ।
..सचमुच एक पूरा
आकाश होता है तुम्हारे होने में
जिसमें बिना पंख के
भी उड़ना संभव है
जिसमें उड़कर भी
उड़ान होती ही नहीं..
..बहुत सुंदर पंक्तियाँ। आगे य़ह लिखकर नहीं समझाया जाता तो भी काम चल जाता..
क्योंकि चाहे जितनी दूर
चला जाऊं किसी भी ओर
पर होता वहीँ हूँ
जहाँ से भरी थी उड़ान
..
यूनिकवि बनने के लिए ढेर सारी बधाइयाँ।
कविता मे गहराई और सच्चाई है I बहुत बढिया
मंजरी
manjarisblog.blogspot.com
meregeet-manjari.blogspot.com
बहुत ही सुन्दर प्रणय गीत !!!
भावों को बड़े मनोहारी ढंग से शब्दों में बाँधा है आपने...
पहले तुम कहती थी
मैं सो जाता था
अब मैं कह रहा हूँ
पर तुम सो चुकी हो
उठो, जागो और सुनो
मुझे आगे भी जाना है.
भावमय प्रस्तुति ।
कविता के कथ्य में नवीनता झलक रही है...बहुत बढ़िया,बधाई।
rai sahab bahut achhi kavta hai ,bahut khoobsoorati ke sath bahut kuchh kah diya hai ,jo dil ko chhoota hai aur bahut kareeb mahsoos hota hai
..सचमुच एक पूरा
आकाश होता है तुम्हारे होने में
जिसमें बिना पंख के
भी उड़ना संभव है
जिसमें उड़कर भी
उड़ान होती ही नहीं..
bahut hi achchhhi lagi ye panktiyan...
sunder abhivyakti.
badhai..
..सचमुच एक पूरा
आकाश होता है तुम्हारे होने में
जिसमें बिना पंख के
भी उड़ना संभव है
जिसमें उड़कर भी
उड़ान होती ही नहीं..
bahut hi achchhhi lagi ye panktiyan...
sunder abhivyakti.
badhai..
..सचमुच एक पूरा
आकाश होता है तुम्हारे होने में
जिसमें बिना पंख के
भी उड़ना संभव है
जिसमें उड़कर भी
उड़ान होती ही नहीं..
khoob likha hai
rachana
“सुन रही हो तुम
या सो गयी सुनते-सुनते
पहले तुम कहती थी
मैं सो जाता था
अब मैं कह रहा हूँ
पर तुम सो चुकी हो
उठो, जागो और सुनो
मुझे आगे भी जाना है.” अत्यंत भावपूर्ण कृति है ये. पढते पढते मुझे भी लगा कि मैं कुछ सोने लगा हूँ मगर आपके शब्दों “उठो, जागो और सुनो...मुझे आगे भी जाना है.” सुन कर जैसे उठ गया. ऐसी सुन्दर कविता के लिए आपको बहुत बहुत साधुवाद. अश्विनी कुमार रॉय
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