प्रतियोगिता मे 11वें स्थान की कविता सनी कुमार की है। इससे पहले इनकी एक कविता जून माह मे भी 11वें स्थान पर रही थी। प्रस्तुत कविता हमारे राजनैतिक-सामाजिक तंत्र मे मौजूद खतरनाक प्रवृत्ति की ओर इशारा करती है और उसके मूल की पड़ताल करने की कोशिश करती है।
कविता: मुआवज़े
मुआवजा ...
हाँ ठीक सुना तुमने
मुझे मुआवजा चाहिए
मुझे मुआवजा दो...
म्में...म्में...
मैं चीख़ रहा हूँ
चिल्ला रहा हूँ
हाँ.. हाँ मैं चिल्ला रहा हूँ
चीख़ रहा हूँ
मेरे गले की नसें
चटख कर
ढीली पड़ने से पहले तक
मैं चीखता रहूँगा
मेरी आँखों में उतर आया
ख़ून
बहने
टपकने
क्यों न लगे
मैं उसके बाद तलक चिल्लाता रहूँगा ...
मुआवजा बांटने का
बड़ा शौक़ है न तुम्हे
अब देते क्यों नही मुझे मुआवजा...!
रेल या बस दुर्घटना...
सड़क या कोई और दुर्घटना..
या किसी फर्जी मुठभेड़ में..
किसी जहरीले गैस काण्ड में...
नहीं...नहीं..शायद किसी
आतंकी या नक्सली हमले में..
या फिर किसी अंधी भीड़ ने ही..
पता नहीं ..?
मुझे ठीक से याद भी नहीं
इसलिए कि वक़्त मुझे बूढ़ा करके गुज़र गया...
लेकिन, अपनी लिजलिजी और झुर्रीदार
छाती ठोक कर कहता हूँ ..
मेरे बेटे की मौत मुआवज़े लायक है
इनमें से किसी एक में मेरा बेटा मर-खप गया..
दे दो हरामखोरों...
जिससे अपनी बेटी की शादी करा सकूं..
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
ओह्ह्ह....क्या कहूँ !!!!
मार्मिक अभिव्यक्ति। धन्यवाद।
हृदयस्पर्शी रचना... मस्तिष्क में कई चित्र कौंध गए।
बहुत मार्मिक रचना ... और फिर तंत्र की पोल भी तो खोल रही है
sach...
आत्मा को झकझोर देते शब्द, भावमय करूणात्मक प्रस्तुति।
ऐ कविता तेरे अंज़ाम पॅ रोना आया …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
सन्नी तुम्हारे चांटे की गूँज..
कानो में गूँज रही है...
ज़रा धीरे मारा करो यार..
सिर भन्ना देते हो..
Chaantein To Kab se maar Raha he
Aur kitne hi maar raahein hain par
Humare tantra ke gaalo ki plastic segery ko bhedne me
asamrtha rahi he ab tak, kaano mein gunjana to door ki rahi...
umeed he ki Kabhi to nishana chukega chaante ka aur ungliya seedha aankho mein ja ghusengi..
Loved It Sunny Boy !!!
.... Waise tumse ye kavita shayad pehle bhi sun chuka hun..lekin .. aaj ise yaahan padhkar betahasha khushi hui ...
God Bless You & Keep Going...
“मेरे बेटे की मौत मुआवज़े लायक है
इनमें से किसी एक में मेरा बेटा मर-खप गया..
दे दो हरामखोरों...
जिससे अपनी बेटी की शादी करा सकूं..” सन्नी जी आपकी कविता देख कर शायद कुछ और लोग भी मुआवजे की मांग करने लगें. कुछ अफ़्रीकी देशों में तो तनख्वाह के साथ लूट मार भत्ता भी दिया जाता है क्योंकि वहाँ सरकार लूट मार को रोक नहीं सकती. जीना मरना तो होता रहेगा मगर मुआवजे का लब्बो लुआब कुछ अलग है. चाहे रियासत हो या सियासत...दोनों ही इसके बिना अधूरे हैं. आपकी कविता ने एक चिंगारी सुलगा कर अपना काम कर दिया है. अब आप देखते रहिये कितने लोग इसकी दरखास्त देते हैं. इस शानदार रचना के लिए साधुवाद.
अश्विनी कुमार रॉय.
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