जून 2010 की यूनिप्रतियोगिता की 11वीं कविता सनी कुमार हैं। सनी कुमार अपने बारे में बताते हुए कहते हैं कि नाम सनी है(जिससे आप लोगों का पहले ही तार्रुफ़ है)। पढ़ाई के नाम पे इग्नू से बी.ए का फॉर्म भर दिया है। ऐसा शायद इसलिए कहना पड़ रहा क्योंकि कॉलेज(रेगुलर) में फेल हुआ, तो कॉलेज छोड़ दिया था। उर्दू ज़ुबान के प्रति लगाव था, सो इसी साल उर्दू में डिप्लोमा(मज़ाक़-मज़ाक़ में) मुक्कमल कर लिया। बारिश में फुटबाल खेलना और भीगना पसंद है। ख़ाली वक़्त में कभी-कभार शतरंज(ग़लती से बचपन में एक दोस्त से सीख लिया था) खेल लेता हूँ। दिल्ली में ही पला-बढ़ा हूँ और पढ़ (हिंदी साहित्य पढने का शौक़ है मुझे) रहा हूँ। मालवीय नगर के एक मोहल्ले (जिसे लोग झुग्गी कहते है) में रहता हूँ। फिलहाल इस कमजात परिचय से ही काम चलाइये। फोटो (जिसमें मेरी शक्लोसूरत थोड़ी सी ठीकठाक हो) कभी आगे भेज दूँगा।
ईमेल- halfmoon_sunny@yahoo.in
पुरस्कृत कविता: धूल, धूप, दोपहर
जल रहीं हैं दोपहरें
तवे-सी तप रहीं हैं सड़कें भी
खौल रहें हैं बी.आर.टी. बस स्टैंड
दिल्ली सरकार के
हवा धूल चखाती चल रही है
इसी नंगी धूप वो में आदमी बेंचता है
धूप के चश्मे
पसीने में तर एक लड़का लग रहा है आवाजें---
"रुमाल ले लो... रुमाल"
यहीं पे बैठा है मोची भी
अपनी छतरी को सूरज की तरफ़ करके
मुँह में बीड़ी दबाए हुए
धुँए से ज़्यादा धूल फाँक रहा है
भगवान जाने सूरज बाबा से
क्या डील हुई है इनकी
गाड़ियों के इंजन आग उगलते चल रहे हैं
जितनी महँगी गाड़ी
उतनी गर्म हवा...
मंटो ने लिखा है कहीं
"बम्बई में इतनी शदीद बारिश पड़ती है कि
आप की हड्डियाँ तक भिगो दे"
दिल्ली की गर्मी आपकी हड्डियाँ तो नहीं पिघलाती
आपकी चमड़ी से धुँआ ज़रूर उठा देती है...
भंवे सिकुड़ आईं हैं
चेहरे चिलचिलाये हुए हैं
लड़कियों की बगलें
और औरतों के ब्लाउज पसीने से परेशान हैं
सूरज आसमान पर नहीं
सब के चेहरे पे उग आया है जैसे
हलक़ में काँटे भी चुभ रहे हैं या यूँ कहूँ कि जैसे
मधुमक्खी ने डंक मारा हो
ब्लू लाइन बस का कंडक्टर
खा के गुटखा
छोड़ रहा है भभका
वो लड़की मुँह बिचकाती है
और दूर जाके खड़ी हो जाती है
बस पीटते हुए कंडक्टर
कान पे चिल्ला रहा सबके---
"आई.टी.ओ...आई.टी.ओ...मटरो...दिल्ली गेट...ऐ बस अड्डा..बस अड्डा..
बैठो.. ऐ आओ..आओ..आओ बस अड्डे वाले...
बस आ रहीं है लाल वाली
ए.सी. वाली है
चढ़ रहे है वो
जिनकी थोड़ा पैसा है जेब में
उतर रहें है दुगनी तेज़ी से
क्यूँकि ए.सी. बस का
ए.सी. ख़राब है
इसी बीच गुज़र रहा
दिल्ली जल बोर्ड का टैंकर
जीभ चिढ़ता हुआ...
पानी बिखेरता हुआ...
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
sunny ji,
mujhe samajh nahi aaya, dilli ki garmi ( jo duniya bhar mein famous hai) ka drishya dikha kar aap kehna kya chah rahe hain, aapki kavita bas ke safar ki tarah shuru to hui par apni destination par nahi pahuchi. :(
दिल्ली की गर्मी और बस-व्यवस्था पर सुन्दर लेख...
बधाई....
Kai sare issues uthaye aapne par kisi se nyay nahi hua..mujhe aisa laga..koshish zari rakhiye.
बहुत खूब
दिल्ली को यथार्थ रूप में चित्रित किया है आपने
ऐसा लगता है कि सारे दृश्य साकार हो उठे हैं
sunny ji,
lagata hai delhi ki aabo hawa se aap achhe -khaase parichit hain,tabhi delhi ke rang-roop ka yatharthtah chitran kiya hai.isi bahane vahan ki jaankaari dene ke liye dhanyvaad.
poonam
मुबारक सन्नी !
बेहद साफ़ और सच्ची तस्वीर है दिल्ली में जून की दोपहरी की..!
इतनी साफ़ की मैंने बम्बई में AC में बैठे हुए
दिल्ली की धूल, धूप, और दोपहर को अपने चेहरे और चमडी़ पे महसूस किया
Blue line के कंडक्टर का शोर मुझे अब भी सुनाई दे रहा है.. फिर से मुबारक!
और उन्हें भी मुबारक जो इस तस्वीर में समस्या और समाधान तलाश रहे है..
दिल्ली की गर्मी की बारे मे सुना था ..महसूस भी हो गया बधाई सनी जी!
मैं कोई न्यायधीश या सुधारक नही हूँ...
इस सफरनामे के ज़रिये मैंने महज़ उस सफ़र(अंग्रेजी वाला) को दिखाया जिसे हर आम दिल्ली वाला रोज़ के रोज़ झेलता है....
यही मेरी और मेरे जैसो की नियति है...ख़ैर
मैं जो कहना चाह रहा हूँ उन्हें भलीभांति समझ आ गया है जिन्होंने दिल्ली की गर्मी को क़रीब से देखा,समझा और महसूस(दूर हो के भी)किया है... उनका बोहोत शुक्रिया !
और आप लोगो का भी
धन्यवाद
बोहोत...बोहोत...
-sunny
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