फटाफट (25 नई पोस्ट):

Wednesday, September 15, 2010

मेरा सामर्थ्य


प्रतियोगिता की छठी कविता के कवि प्रवीण कुमार ’स्नेही’ हिंद-युग्म से पिछले कुछ समय से ही जुड़े हैं। इनकी एक कविता गुड्डा जून माह की यूनिप्रतियोगिता के अंतर्गत प्रकाशित हो चुकी है। यहाँ प्रस्तुत सारगर्भित कविता एक कवि के सामर्थ्य ही नही बल्कि उसके उद्धेश्यों के बारे मे भी बात करती है।

पुरस्कृत कविता: मेरा सामर्थ्य

जाने क्यों
मेरे पडोसी बनकर
तुम खुश नहीं हो
मेरी ताक-झांक
तुम्हें पसन्द नहीं।
अपने आँगन की दीवारें
ऊॅंची करवाकर
कुछ राहत की साँस
ली थी तुमने
पर मैं
तुम्हारे आँगन में
झाँकने का लालच
नहीं छोड पाया था।
सच में!
तुम्हारी बच्ची
जब क्यारियों में लगे
फूलों पर से
तितलियाँ पकडती है
तो मेरा मन भी
तितली बन जाने को करता है।
जब वह नंगे पैर
आँगन में खेलती है
तो मन करता है
मैं कोमल दूब बनकर
उसके पैंरों तले
बिछ जाऊॅं।

तुम्हें किसी को एक बार
कहते सुना था मैंने-
‘लाइनें चुराते-चुराते
इन कवियों की नज़रें
दूसरों के बच्चों पर हैं।’

पर मैंने बुरा नहीं माना,
जानते हो
ऊॅंची दीवार से
अब तुम्हारा आँगन नहीं दिखता
पर तुम्हारी बच्ची
आजकल मेरी कविताओं में
तितलियाँ पकडती है,
खेलती है,
और तुम्हारी असमर्थता देखो
तुम यहाँ
दीवार नहीं बना सकते।

_____________________________________________________________
पुरस्कार:  विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

12 कविताप्रेमियों का कहना है :

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

Ek kavi ki sachhi abhivyakti...uske sachhe bhav..sachhi sahridayta..sachhi komalta hun..mohit hun is sundarta se...

निर्मला कपिला का कहना है कि -

कलपनाओं के पंख नही होते मगर वो धरती और आकाश से परे तक जाती हैं कवि के दिल के उद्गार अच्छे लगे।। बधाई।

रवीन्द्र शर्मा का कहना है कि -

Khoobsurat bhaavon ki rachna . Badhaayi !!

vineet का कहना है कि -

bahut sundar abhivyakti....kavi se uski prerna chhen paaye...sach mein aisi saamrthaya kisi mein kahan

shubhkamnayen

डॉ. मोनिका शर्मा का कहना है कि -

behad prabhavit karati rachana....
achhi prastuti.... badhai

सदा का कहना है कि -

बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

rachana का कहना है कि -

bahut komal aur sunder bhav
rachana

Nisha का कहना है कि -

aap to chaa gaye ho... badi hi achchi kavita hai.. padosiyon ki nok jhonk ko bhi khub dikhaya hai tumne.
badhaai ho.

M VERMA का कहना है कि -

बेहतरीन रचना

अश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Roy का कहना है कि -

“तुम्हारी बच्ची
जब क्यारियों में लगे
फूलों पर से
तितलियाँ पकडती है
तो मेरा मन भी
तितली बन जाने को करता है।
जब वह नंगे पैर
आँगन में खेलती है
तो मन करता है
मैं कोमल दूब बनकर
उसके पैंरों तले
बिछ जाऊॅं।“ कविता का शीर्षक तो मुझे इसको पढ़ने के लिए आकर्षित नहीं कर पाया परन्तु जैसे ही इसे पढ़ना शुरू किया एक मुस्कान मेरे चेहरे पर अनायास ही फ़ैल गयी. जब पूरी कविता पढ़ चुका तो लगा कि इसका नाम “मेरा सामर्थ्य” शायद उतना ठीक नहीं होगा. मुझे तो सारा सामर्थ्य उस नन्ही और प्यारी सी बच्ची का दिखाई दिया जिसकी हरकतें आपको दीवार के पार दिखाई देने लगी और अंततः आपने ये खूबसूरत कविता लिख डाली. इस सुन्दर कृति के लिए बहुत बहुत साधुवाद. अश्विनी कुमार रॉय

अश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Roy का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
parveen kumar snehi का कहना है कि -

ashwini ji shayad aap uchit kah rhe hai...
vastav me yah kavita likhne ke kai dino baad bhi, ise koi naam n de paya tha.. kai naam soche lekin uchit nhi lge.. is kshetra me naya hoon... kavi chhodiye chhota kavi bhi nahi banaa hoon.. yah kavita hind yugm par bhejni thi.. mujhe lga main apni asamrthta me hi saamarthya kyo na khoju..
so yah naam diya..
aap sab ne kavita ko jo pyar diya hai.. uske liye hridya se dhanyvaad..
dhanyavaad shabd mujhe bahut chhota lag rha hai..

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)