अगस्त माह की यूनिप्रतियोगिता मे दूसरे स्थान की कविता श्री कैलाश चंद्र जोशी की है। 1970 मे चंपावत (उत्तराखंड) मे जन्मे कैलाश जी समाजशास्त्र मे स्नातकोत्तर हैं और साहित्य की कई विधाओं मे एक साथ सक्रिय रहे हैं। अपनी स्रजनयात्रा के दौरान अपनी कविताओं के लिये राष्ट्रीय युवा कविता सम्मान एवं राष्ट्रीय युवा प्रतिभा पुरस्कार के अतिरिक्त उन्हे लघुकथा, हाइकु व व्यंग्य-लेख आदि के लिये भी अनेको सम्मान मिले हैं। इनकी रचनाएँ विविध पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित होती रही हैं। सम्प्रति औरेया (उ.प्र) मे निवास कर रहे कैलाश जोशी का एक काव्य-संग्रह एवं एक कथा संग्रह भी प्रकाशित है। हिंद-युग्म पर यह उनकी प्रथम प्रकाशित कविता है।
संपर्क-कैलाश चन्द्र जोशी ‘डॅुगराकोटी’
1087, भगत सिंह कुंज गेल गांव दिबियापुर
औरेया , उ. प्र. पिन 206244
दूरभाष-9411990042
पुरस्कृत कविता: जिन्दा दधीचि
चूसा जा रहा है
अनवरत
सदियों से
रक्त जिसका
बह रहा है
निरंतर
खेत-खलिहानों मे
जिसका पसीना
निभा रहा है
तपकर
कर्ज की आग में
जो फर्ज अपना
अपने नौनिहालों की
भीख के कटोरे सरीखी
याचना भरी-ऑखे देखकर
ऑखें फेर लेने के सिवा
उसके पास
कोई चारा नहीं
लोग ही
तमाशा नहीं देखते उसका,
ऊपर वाले को भी
उसके किये पर
पानी फेरते देखा जाता है
इतना ही नहीं
जिसके नाम की योजनाओं से
बाबू लोग करोड़ों उगाह लेते हैं
हड्डियों का ढांचा रहकर भी
वो उगा रहा है -
सबके लिये दाना
दाना नहीं, हजूर !
प्राण कहिये प्राण!
वरना भुख का दानव कब का
मानव को निगल गया होता।
एक वही तो है जिसने
भूख से लड़ने के लिए
लड़ा रखीं हैं-
अपनी हड्डियाँ
जिन्दा दधीचि की तरह
किन्तु बन्धु!
उसके बेमौत मरने की खबर से
कोई तनिक भी नहीं चौंकता
क्योंकि
आटा-दाल के भाव से अनजान,
पिज्जा-बर्गर वाले अब तक
यही समझते हैं कि
दुनिया से इस तरह जाना
उसका कोई नया फैशन होगा।
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पुरस्कार: विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
गहरे छूकर झकझोर गयी आपकी यह रचना...
कविता का भाव और रचना सौंदर्य पक्ष इतना सशक्त है कि प्रशंशा को शब्द नहीं मेरे पास...
बहुत बहुत सुन्दर भावपूर्ण व सार्थक रचना...
अन्नदाता किसानों की स्थिति का मार्मिक चित्रण, साथ ही आधुनिकता पर करारा व्यंग्य भी,....प्रभावशाली कविता।
इतना ही नहीं
जिसके नाम की योजनाओं से
बाबू लोग करोड़ों उगाह लेते हैं
हड्डियों का ढांचा रहकर भी
वो उगा रहा है -
सबके लिये दाना
बिलकुल सही कहा बहुत अच्छी लगी रचना जोशी जी को बधाई।
kisano ki vyatha katha ka sateek chitran ....aur nav dhandhya samaaj par kasa hua sateek nishana bhi....prabhavshali abhivyakti ke liye badhayi
गहरे भावों के साथ्ा, बेहतरीन भावपूर्ण रचना...।
जिन्दा दधीचि की तरह
किन्तु बन्धु!
उसके बेमौत मरने की खबर से
कोई तनिक भी नहीं चौंकता
क्योंकि
आटा-दाल के भाव से अनजान,
पिज्जा-बर्गर वाले अब तक
यही समझते हैं कि
दुनिया से इस तरह जाना
उसका कोई नया फैशन होगा।
kitna marmik kintu sach
badhai
rachana
मै आभार प्रकट करना चाहता हूँ उन सभी टिप्पणीकारों का जिन्होने मेरी कविता को इतनी संजीदगी से पढ़ा और आपने दो शब्दों से मेरा मनोबल बढ़ाया, असे सुधी दुर्लभ पाठकों को मेरा शत शत नमन।
bharat ek krishi pradhan desh hai aur ise desh mein kisano ki marmik dasha ka vastvik chitran kiya gaya hai. shri kailash joshi ji ko badhainya. aur ummeed aage bhi aisi kavitayen padhane ko milengi
Haridas
Rae bareli (u.p)
मजबूर है आज भी दधीचि
भूख से लड़ना हड्डी दान से कम तो नही है
“उसके बेमौत मरने की खबर से
कोई तनिक भी नहीं चौंकता
क्योंकि
आटा-दाल के भाव से अनजान,
पिज्जा-बर्गर वाले अब तक
यही समझते हैं कि
दुनिया से इस तरह जाना
उसका कोई नया फैशन होगा।“ बहरहाल मुझे तो ऐसा नहीं लगता कि कोई “उसके इस दुनिया से जाने के बारे में” कुछ सोचता भी होगा. पिज्जा बर्गर वाले तो ये भी नहीं जानते कि ये किस किस सामान से बना है? आपने एक दरिद्र किसान कि कथा व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है...इसके लिए आपको साधुवाद ! अश्विनी कुमार रॉय
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