सब कुछ थोड़े ही सूख जाता है
बच ही जाती है स्मृति की नन्ही बूंद
मिल ही जाता है प्रिय का लगभग खो गया पता
अलगनी में सूखते हुए कपड़ों पर बच ही जाती है
देह गंध की नम आँच
पायंचे के घुटनों पर रेंग ही आती है मुलायमियत
सब कुछ थोड़े ही ख़त्म हो जाता है
मृत्यु के बाद भी बचे रहते है अस्थि फूल
सूखे जलाशय के तलछट में जीवित रहती है एक अकेली मछली
विशाल मरुस्थल की छाती पर सूरज के खिलाफ
लहराता है खेजरी का पेड़
सब कुछ नहीं होता समाप्त
हमारे बाद भी बचा रहता है जीने का घमासान
भूख के बावजूद बच ही जाते है थाली में अन्न के टुकड़े
निकल ही आता है पुराने संदूक से जीर्ण होता प्रेम पत्र
सबसे हारे क्षणों में मिल ही जाता है दोस्त ठिकाना .
सब कुछ थोड़े ही मिट पाता है
उम्र के बावजूद भी बचे रहते है देह पर प्रेम निशान
जीवन के सबसे मोहक क्षणों में भी चिपका रहता है बीत जाने का भय
सब कुछ नहीं होता समाप्त।
कवयिता- मनीष मिश्र
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
सब कुछ थोड़े ही मिट पाता है
उम्र के बावजूद भी बचे रहते है देह पर प्रेम निशान
जीवन के सबसे मोहक क्षणों में भी चिपका रहता है बीत जाने का भय
सब कुछ नहीं होता समाप्त।
बहुत ही सुन्दर और जीवन के सत्य को मुखरित करती एक लाजवाब कविता मनिश जि को बहुत बहुत बधाई और हिन्द युग्म का आभार्
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है आपकी. चंद लाइनें मैंं भी लिख रही हूँ
सब कुछ नहीं होता समाप्त
रह जाते हैं बल रस्सी में जल जाने के बाद
झुका हुआ सर घमण्ड टूट जाने के बाद
यादें अपनों के बिछड़ जाने के बाद
और अतीत गुजर जाने के बाद
धन्यवाद
अच्छी रचना के लिए बधाई !
आप ही को समर्पित ........
सब कुछ थोड़े ही मिट पाता है
सम्बन्ध टूटने पर भी रह जाती है एक गांठ
राख के बुझ जाने पर भी रह जाती है एक चिंगारी
लाख छिपाने पर भी रह जाते हैं चेहरे पर कुछ भाव
एक सभ्यता के ख़त्म हो जाने पर भी रह जाते हैं भग्नावशेष
सब कुछ नहीं होता समाप्त
दोस्ती ख़त्म हो जाने पर भी रह जातीं हैं कुछ कोमल भावनाएँ
सादर,
अम्बरीष श्रीवास्तव
सब कुछ थोड़े ही मिट पाता है
उम्र के बावजूद भी बचे रहते है देह पर प्रेम निशान
जीवन के सबसे मोहक क्षणों में भी चिपका रहता है बीत जाने का भय
सब कुछ नहीं होता समाप्त।
कविता का अंत बहुत सुन्दर है. बधाई.
सब कुछ थोड़े ही मिट पाता है
उम्र के बावजूद भी बचे रहते है देह पर प्रेम निशान
जीवन के सबसे मोहक क्षणों में भी चिपका रहता है बीत जाने का भय
सब कुछ नहीं होता समाप्त।
in hisson ne kavita me aatma daal di hai .badhai
sach kaha aapne sab kuch nahi hota samapt ..lekin aapni apni is kavita ka samapan bade hi prabhav purn tareeke se kiya hai ..badhai
मनीष जी
आप की कविता बहुत दिनों के बाद पढने को मिली अच्छा लगा .आप की कविता पर दिशा जी और अम्बरीश जी ने जो लिखा है वो भी बहुत सुंदर
रचना
उत्साहवर्धन की लिए धन्यवाद रचनाजी
सादर,
अम्बरीष श्रीवास्तव
मनीष मिश्रा जी,
आप की कविता के कोमल भाव बहुत अच्छे लगे , दिल किया कि कुछ को उर्दू अश'आर के मिज़ाज में ढाल दिया जाए. अश'आर बेबहर हैं फिर भी नज़र डाल सकते हैं. बाक़ी मनु साहेब बताएं गे
सतह ए ज़हेन से गो सूख गए दरिया ए माज़ी
नन्ही सी बूँद तेरी याद की अब भी मचल रही है
सूखते तौलिया में गो धूप की खुशबू पसरती है
पैराहन में तेरे, तेरे बदन की आंच बस्ती है
वो सूखी झील की तह में झाँक के देखो
एक मछली है कि अब भी सांस लेती है
वो तपते सहरा में सूरज की सीनाज़ोरी
मगर खेजरी की पत्ती फिर भी लहलहाती है
वो टूटे संदूक से निकले सामां के बीच
ek sadi गली सी बोसीदा चिट्ठी बतियाती है
वो लम्हे जिन्हें सजाने की दुआएं मांगी थी
उन्ही को खोने का गम दिल को सताता है
मुहम्मद अहसन
क्या बात है..
सारी कविता को अहसान जी ने बड़ी तबीयत से नए रंग और नए अल्फाज में उतारा है..
उर्दू में क्या सही भाव पिरोये हैं...
वैसे मनीष जी की तरह से लिखी हुयी भी बड़ी अच्छी लगी,,
मेरे लिए तो एक दम नया पन लिए है..
सब कुछ थोड़े ही ख़त्म हो जाता है
मृत्यु के बाद भी बचे रहते है अस्थि फूल
बहुत ही सुन्दर भाव बेहतरीन प्रस्तुति आभार्
सब कुछ नहीं ख़तम होता
बची रहती है कुछ यादें
इस कविता की भी यादें बची रहेंगी
यह तो कमाल होगया एक कविता ने कितनी कविताओ को
जन्म देदिया तो पहले मनीषजी को इतनी आशाये देने
के लिए साधुवाद.फिर अह्संजी को उर्दू मैं पेश करने पैर
मुबारकबाद 'सूखे तौलिये में गो धुप की खुशबू......अच्छी लगी
स्मिता मिश्रा
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