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Tuesday, July 07, 2009

सब कुछ नहीं होता समाप्त


सब कुछ थोड़े ही सूख जाता है
बच ही जाती है स्मृति की नन्ही बूंद
मिल ही जाता है प्रिय का लगभग खो गया पता
अलगनी में सूखते हुए कपड़ों पर बच ही जाती है
देह गंध की नम आँच
पायंचे के घुटनों पर रेंग ही आती है मुलायमियत

सब कुछ थोड़े ही ख़त्म हो जाता है
मृत्यु के बाद भी बचे रहते है अस्थि फूल
सूखे जलाशय के तलछट में जीवित रहती है एक अकेली मछली
विशाल मरुस्थल की छाती पर सूरज के खिलाफ
लहराता है खेजरी का पेड़

सब कुछ नहीं होता समाप्त
हमारे बाद भी बचा रहता है जीने का घमासान
भूख के बावजूद बच ही जाते है थाली में अन्न के टुकड़े
निकल ही आता है पुराने संदूक से जीर्ण होता प्रेम पत्र
सबसे हारे क्षणों में मिल ही जाता है दोस्त ठिकाना .

सब कुछ थोड़े ही मिट पाता है
उम्र के बावजूद भी बचे रहते है देह पर प्रेम निशान
जीवन के सबसे मोहक क्षणों में भी चिपका रहता है बीत जाने का भय

सब कुछ नहीं होता समाप्त।

कवयिता- मनीष मिश्र

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

निर्मला कपिला का कहना है कि -

सब कुछ थोड़े ही मिट पाता है
उम्र के बावजूद भी बचे रहते है देह पर प्रेम निशान
जीवन के सबसे मोहक क्षणों में भी चिपका रहता है बीत जाने का भय

सब कुछ नहीं होता समाप्त।
बहुत ही सुन्दर और जीवन के सत्य को मुखरित करती एक लाजवाब कविता मनिश जि को बहुत बहुत बधाई और हिन्द युग्म का आभार्

Disha का कहना है कि -

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है आपकी. चंद लाइनें मैंं भी लिख रही हूँ
सब कुछ नहीं होता समाप्त
रह जाते हैं बल रस्सी में जल जाने के बाद
झुका हुआ सर घमण्ड टूट जाने के बाद
यादें अपनों के बिछड़ जाने के बाद
और अतीत गुजर जाने के बाद

धन्यवाद

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

अच्छी रचना के लिए बधाई !
आप ही को समर्पित ........
सब कुछ थोड़े ही मिट पाता है
सम्बन्ध टूटने पर भी रह जाती है एक गांठ
राख के बुझ जाने पर भी रह जाती है एक चिंगारी
लाख छिपाने पर भी रह जाते हैं चेहरे पर कुछ भाव
एक सभ्यता के ख़त्म हो जाने पर भी रह जाते हैं भग्नावशेष

सब कुछ नहीं होता समाप्त
दोस्ती ख़त्म हो जाने पर भी रह जातीं हैं कुछ कोमल भावनाएँ

सादर,
अम्बरीष श्रीवास्तव

Shamikh Faraz का कहना है कि -

सब कुछ थोड़े ही मिट पाता है
उम्र के बावजूद भी बचे रहते है देह पर प्रेम निशान
जीवन के सबसे मोहक क्षणों में भी चिपका रहता है बीत जाने का भय

सब कुछ नहीं होता समाप्त।


कविता का अंत बहुत सुन्दर है. बधाई.

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

सब कुछ थोड़े ही मिट पाता है
उम्र के बावजूद भी बचे रहते है देह पर प्रेम निशान
जीवन के सबसे मोहक क्षणों में भी चिपका रहता है बीत जाने का भय

सब कुछ नहीं होता समाप्त।

in hisson ne kavita me aatma daal di hai .badhai

Unknown का कहना है कि -

sach kaha aapne sab kuch nahi hota samapt ..lekin aapni apni is kavita ka samapan bade hi prabhav purn tareeke se kiya hai ..badhai

rachana का कहना है कि -

मनीष जी
आप की कविता बहुत दिनों के बाद पढने को मिली अच्छा लगा .आप की कविता पर दिशा जी और अम्बरीश जी ने जो लिखा है वो भी बहुत सुंदर
रचना

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

उत्साहवर्धन की लिए धन्यवाद रचनाजी
सादर,
अम्बरीष श्रीवास्तव

मुहम्मद अहसन का कहना है कि -

मनीष मिश्रा जी,
आप की कविता के कोमल भाव बहुत अच्छे लगे , दिल किया कि कुछ को उर्दू अश'आर के मिज़ाज में ढाल दिया जाए. अश'आर बेबहर हैं फिर भी नज़र डाल सकते हैं. बाक़ी मनु साहेब बताएं गे

सतह ए ज़हेन से गो सूख गए दरिया ए माज़ी
नन्ही सी बूँद तेरी याद की अब भी मचल रही है

सूखते तौलिया में गो धूप की खुशबू पसरती है
पैराहन में तेरे, तेरे बदन की आंच बस्ती है

वो सूखी झील की तह में झाँक के देखो
एक मछली है कि अब भी सांस लेती है

वो तपते सहरा में सूरज की सीनाज़ोरी
मगर खेजरी की पत्ती फिर भी लहलहाती है

वो टूटे संदूक से निकले सामां के बीच
ek sadi गली सी बोसीदा चिट्ठी बतियाती है

वो लम्हे जिन्हें सजाने की दुआएं मांगी थी
उन्ही को खोने का गम दिल को सताता है

मुहम्मद अहसन

manu का कहना है कि -

क्या बात है..
सारी कविता को अहसान जी ने बड़ी तबीयत से नए रंग और नए अल्फाज में उतारा है..
उर्दू में क्या सही भाव पिरोये हैं...

वैसे मनीष जी की तरह से लिखी हुयी भी बड़ी अच्छी लगी,,
मेरे लिए तो एक दम नया पन लिए है..

सदा का कहना है कि -

सब कुछ थोड़े ही ख़त्म हो जाता है
मृत्यु के बाद भी बचे रहते है अस्थि फूल

बहुत ही सुन्‍दर भाव बेहतरीन प्रस्‍तुति आभार्

BRAHMA NATH TRIPATHI का कहना है कि -

सब कुछ नहीं ख़तम होता
बची रहती है कुछ यादें
इस कविता की भी यादें बची रहेंगी

Guftugu का कहना है कि -

यह तो कमाल होगया एक कविता ने कितनी कविताओ को
जन्म देदिया तो पहले मनीषजी को इतनी आशाये देने
के लिए साधुवाद.फिर अह्संजी को उर्दू मैं पेश करने पैर
मुबारकबाद 'सूखे तौलिये में गो धुप की खुशबू......अच्छी लगी
स्मिता मिश्रा

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