वर्षों से हमारी देह में उग रहा है मौन
जंगली खुभिंयो सा।
हमारे पास-
कुछ रूई सी मुलायम स्मृतियां हैं
और चिनार सी लम्बी यादें
कुछ प्रार्थनाएं है हमारे पास
और कुछ गीत भी।
हमें चाहिए-
प्यार करने के लिए
सताई हुई दो निर्दोष आँखें,
खिलखिलाहटों की दो चार जड़ें
जो उग सके हमारे मौन में।
और-
माँ की जैसी स्नेहिल उंगलियां
जो उभार सकें
हमारे बचपन के हरे-हरे गीत।
हमें नहीं चाहिए-
बरगद जितने बड़े सुख,
समुद्र की ओर खुलने वाली खिड़की,
और-
सड़कों से भी लम्बी उम्र।
हमें बस-
जरूरत है दो परों की
जिन्हें पहना सकें हम
सहेज कर रखे हुए सपनों को
और-
कुछ तीखी कविताओं की,
जिन्हें सुलगा सके हम
धीमी-सी आँच में।
कवि- मनीष मिश्र
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
@ हमें चाहिए-
प्यार करने के लिए
सताई हुई दो निर्दोष आँखें,
क्यों भाई, प्यार करने के लिए केवल निर्दोष होना पर्याप्त नहीं है ? उनका सताया होना आवश्यक है ?
हमें चाहिए-
प्यार करने के लिए
सताई हुई दो निर्दोष आँखें,
खिलखिलाहटों की दो चार जड़ें
जो उग सके हमारे मौन में।
और-
माँ की जैसी स्नेहिल उंगलियां
जो उभार सकें
हमारे बचपन के हरे-हरे गीत।
सुन्दर लगी ये पंक्तियाँ शुभकामनायें
सीमित मनोभावों को दर्शाती और संदेशों को समेटे सुंदर पंक्तियाँ. कवि को शुभकामनाएं.
गिरिजेश राव जी ने जो कहा वह बात मुझे भी खली सताई हुई दो निर्दोष आँखें" ही क्यों.
हमें बस-
जरूरत है दो परों की
जिन्हें पहना सकें हम
सहेज कर रखे हुए सपनों को
sundar-ati sundar
very nice poem...girijesh ji...yahi sachhayi hai....zara dil se poochke dekhen...kavita men kavi ne koi bhi shabd faltu nahi rakha hai...
बहुत ही प्यारी रचना के लिए बधाई मिश्र जी !
जंगली खुशियाँ हैं रूई सी मुलायम स्मृतियाँ हैं
आपके पास चाहतों के समुंदर की सीपीयाँ हैं
--अब और क्या चाहिए इसके सिवा कहना
हमारे पास आपके लिए सिर्फ बधाइयाँ हैं
अच्छी कविता, भावों की नवीनत तो है परन्तु वही त्रुटि है जो आज कल अधिकान्श कवि कर रहे हैं,शायद अर्थवत्तात्मकता को अधिक द्यान में न रखने के कारण--वही जो गिरिजेश राव जी ने कहा--सताई हुई आन्खोंकी ही क्या आवश्यकता है।
सब कुछ मौन है जंहा
वंहा अगर खिलखिलाहट हो
वो कबिता ही तो कबिता है
अच्छी लगी आपकी कबिता हालांकि अनुशीलन की जरुरत है।
फिर भी बधाई हो.
----किशोर कुमार जैन.गुवाहाटी असम
हमें नहीं चाहिए-
बरगद जितने बड़े सुख,
समुद्र की ओर खुलने वाली खिड़की,
और-
सड़कों से भी लम्बी उम्र।
अच्छी रचना। बधाई।
आज के परिवेश में इनका भी मिलना बड़ा मुश्किल हो गया है..बढ़िया कविता ..हमेशा की तरह भाव प्रधान सुंदर कविता..बधाई
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