आलोक उपाध्याय "नज़र" हिन्द-युग्म की प्रतियोगिता में पिछले कई महीनों से भाग ले रहे हैं और इनकी कविताएँ लगातार सराही भी जा रही हैं। इनकी एक कविता अगस्त 2009 की प्रतियोगिता में चौथे स्थान पर रही।
पुरस्कृत कविता
नज़र की अन्य कविताएँ
जान बाकी रहे आखिरी उम्मीद तलक होश सामने रहे लम्बी नींद तलक
हालात घर से बेघर कभी करने लगे
हमें हौसला खींच लाये दहलीज़ तलक
वो आने को हैं आज मेरे पहलूँ में
खुदा चंद साँसे बख्श दे दीद तलक
कोई हम सा क्या कभी जलवे में हो
ईद से होली तो होली से ईद तलक
उस हर गुलिस्ताँ ने हमें ठुकरा दिया
जिसकी ज़रूरतें पहुंचाई ख़ुर्शीद तलक
"नज़र" के दायरे को गुरूर न समझो
वो आज भी कायम है तहज़ीब तलक
ख़ुर्शीद- सूर्य, सूरज
प्रथम चरण मिला स्थान- सातवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- चौथा
पुरस्कार और सम्मान- मुहम्मद अहसन की ओर से इनके कविता-संग्रह 'नीम का पेड़' की एक प्रति।
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
हालात घर से बेघर कभी करने लगे
हमें हौसला खींच लाये दहलीज़ तलक
क्या बात है ..अति सुन्दर ग़ज़ल
नजर को यूँ ही नजर आता रहे 'नजर ' का नजराना .चौथे स्थान के लिए बधाई .
खुदा चंद साँसे बख्श दे दीद तलक
कोई हम सा क्या कभी जलवे में हो
ईद से होली तो होली से ईद तलक
उस हर गुलिस्ताँ ने हमें ठुकरा दिया
sunder line
चोथे स्थान के लिए बधाई
रचना
नजर जी को बधाई...बहुत सुंदर गजल से रूबरू कराया..धन्यवाद.
धीर और सुमिता जी को पहले तो यह सादर बता दूं की ये गजल नहीं है
हिन्दयुग्म पर स्तर के हिसाब से ये रचना काफी हल्की है ...........
सादर:
अरुण मित्तल अद्भुत
अद्भुत जी ,मैंने आपकी टिपण्णी के बाद अनेकानेक रचनाएँ पढ़कर हिंद-युग्म के स्तर को जानना चाहा और मुझे लगता है ये रचना हिंद-युग्म के स्तर की है .जहाँ अनेकों रचनाएँ भाव-विहीन हैं और केवल शब्द योजना के कारण प्रशंसा पाती हैं,वहीँ ये रचना (ग़ज़ल तो आप मानते नहीं) मुझे बड़ी संतुलित लगी ..मैं मानता हूँ मुझे ग़ज़ल की बारीकियों का ज्ञान नहीं ..बेहतर होता आप उन कारणों पर प्रकाश डाल देते जिन्होंने इसे ग़ज़ल बनने से वंचित रखा
नज़र जी! मुझे आपकी यह रचना पसंद आई।
लगता है, "गज़ल है या नहीं"- इस प्रश्न के बहाने फिर से हिन्द-युग्म के स्तर का निर्धारण शुरू होने जा रहा है। देखते हैं, इस बार इस दंगल में कौन-कौन उतरता है।
मुझे बस रचना से मतलब है.........एक बात और, युग्म जिन रचनाओं को पुरस्कार से नवाज़ता है, वे रचनाएँ युग्म खुद पैदा नहीं करता, वो उसके पास प्रतिभागियों की ओर से आती हैं। तो विजेता उन्हीं में से कोई होगा, हम और आप नहीं(जो हिस्सा नहीं लेते)।
अच्छा है कि नियंत्रक ने "टिप्पणी नियंत्रण" की शुरूआत कर दी है, नहीं तो अब तक न जाने क्या हो गया होता।
सादर,
विश्व दीपक
उस हर गुलिस्ताँ ने हमें ठुकरा दिया
जिसकी ज़रूरतें पहुंचाई ख़ुर्शीद तलक
"नज़र" के दायरे को गुरूर न समझो
वो आज भी कायम है तहज़ीब तलक
बेहद भाव पूर्ण रचना है ,बहुत बहुत पसंद आई अद्भुत जी की बात से सत-प्रतिशत असहमत हूँ और धीर जी की बात का पूरा पूरा समर्थन करती हूँ
बधाई स्वीकारें हमारी तरफ से भी
अच्छी कविता के लिए बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
"उम्र जलवों में बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं
हर शब-ए-ग़म की सहर हो ये ज़रूरी तो नहीं
चश्मे-साकी से पियो या लब-ए -सागर से
बेखुदी आठों पहर हो ये ज़रूरी तो नहीं "
किसी महान शायर के इन अल्फ़ाज़ों के साथ हमारी
आप सभी लोगों से गुजारिश है की हमें इस मात्रा, लय, बहर, मकता, काफिये के अनमोल दलदल में इस तरह से तो न घसीटें
अभी बच्चे हैं हम ..दम सा घुटने लगता है ....जब अभ्यस्त हो जायेंगे तो ज़रूर आप लोगों का साथ पाने की कोशिश करेंगे ..तब तक के लिए हमें बाहर रखते हुए इस दलदल के गुर और तरीके बताते रहिएगा .....हम सीखने की भरपूर कोशिश करेंगे |
आप सभी लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया
खास तौर पे "अद्भुत जी " का
जनाब नज़र जी, आपकी जानदार लफ्जावली के लिए मुबारकबाद!
रही बात स्तर की तो रास्ते कभी नहीं पूछते की राहगीर कौन है! आसमान में पंछी भी उड़ते हैं और जहाज भी.. स्तर उसी का जो मुकाम तक पहुंचे.. नज़र जी दुआ है कि अगली बार यूनिकवि का खिताब आपको ही मिले...
इस हौसलाअफजाई के लिए
धीर जी , मंजू जी , रचना जी , सुमिता जी, अरुण जी , विश्वदीपक तन्हा जी , नीलम जी , विमल जी , सुनील जी
आप सभी लोगो का तहेदिल से शुक्रिया
aalok
jab ye kavita prakasit huyee thi ,net problem se comment nahi d paya.
per maine vyaktigat mail se hindyugm tak baat pahucha di thi ki yeh rachna har lihaaj ( Katya /silp/pathniyta ) se yugm ke star ki hai.
kuch line to kai stapit rachnakaro se kamter nahi hai.
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