हर घर उल्लास बहुत है
ये गम का उपहास बहुत है
उस पर भी यकीन है पूरा
खुद पर भी विश्वास बहुत है
यूँ आँखों से कहा लबों ने
दिल में अब भी प्यास बहुत है
मेरे प्रियतम पास हैं मेरे
हर लम्हा अब ख़ास बहुत है
मिलना जुलना चाहे ना हो
अपनों का अहसास बहुत है
इस कड़वाहट भरे दौर में
ढूंढो अभी मिठास बहुत है
पंख ज़रा फैलाओ "अद्भुत"
उड़ने को आकाश बहुत है
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
मेरे प्रियतम पास हैं मेरे
हर लम्हा अब ख़ास बहुत है
खास लम्हे हमेशा खास ही बने रहे
अच्छी रचना ...शुभकामनायें ..!!
पंख ज़रा फैलाओ "अद्भुत"
उड़ने को आकाश बहुत है
बेहतरीन
इस कड़वाहट भरे दौर में
ढूंढो अभी मिठास बहुत है
पंख जरा फैलाओ अद्भुत
उड़ने को आकाश बहुत है।
-वाह! क्या बात है।
मिलना जुलना चाहे ना हो
अपनों का अहसास बहुत है
अच्छी पंक्तियों के लिए बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
विरह में दग्ध नायिका का सकारात्मक पक्ष अद्भुत परिकल्पना के साथ दर्शाया है . बधाई .
आत्मविश्वास से लबरेज रचना के लिए बहुत_बहुत बधाई...
manju .. lagta hai aap badi hi sheeghrata me rahti hain..plzzz ye samjhe ki comment dena utna jaroori nahi hai jitna sakaratmak comment dena jinse lekhak ya kavi laahanvit ho ..
बेहतरीन ग़ज़ल के लिये बधाई!
हर घर उल्लास बहुत है
ये गम का उपहास बहुत है...
स कड़वाहट भरे दौर में
ढूंढो अभी मिठास बहुत है
पंख जरा फैलाओ अद्भुत
उड़ने को आकाश बहुत है।
ये तीन शे’र खास पसंद आये...
पंख जरा फैलाओ अद्भुत
उड़ने को आकाश बहुत है
सचमुच कुछ तो दम शेयरों में है.. हाँ ऊँची उड़ान अभी बाकी है!
पंख जरा फैलाओ
उडने को आकाश बहुत है।
अरुण जी काफी गहराई मेँ डुबने के बाद ही ऐसी पंक्तियाँ अंर्तमन से निकलती है। इन पंक्तियोँ के लिए काफी शुभकामनाएँ।
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