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मेरे प्रियतम पास हैं मेरे


हर घर उल्लास बहुत है
ये गम का उपहास बहुत है

उस पर भी यकीन है पूरा
खुद पर भी विश्वास बहुत है

यूँ आँखों से कहा लबों ने
दिल में अब भी प्यास बहुत है

मेरे प्रियतम पास हैं मेरे
हर लम्हा अब ख़ास बहुत है

मिलना जुलना चाहे ना हो
अपनों का अहसास बहुत है

इस कड़वाहट भरे दौर में
ढूंढो अभी मिठास बहुत है

पंख ज़रा फैलाओ "अद्भुत"
उड़ने को आकाश बहुत है

ग़ज़ल


मै जब भी हूँ किसी इंसां के करीब जाता ।
अल्लाह तेरा बस तेरा ही वजूद पाता ॥

कितने ही चांद सूरज अंबर में हैं विचरते,
हर कोई ऐसा लगता, चक्कर तेरा लगाता ।

देख जो मैने फूलों को खिलते औ महकते
तुम्हारी बंदगी में, सर है झुका ही जाता ।

देखा जो मैने चिडिय़ॊं को उड़ते औ चहकते,
जर्रा यहां का हर, तेरी याद है दिलाता ।

रख ले मुझे हमेशा अपनी शरण में मौला,
दिल बार बार तुझको आवाज़ है लगाता ।

कवि कुलवंत सिंह