मै जब भी हूँ किसी इंसां के करीब जाता ।
अल्लाह तेरा बस तेरा ही वजूद पाता ॥
कितने ही चांद सूरज अंबर में हैं विचरते,
हर कोई ऐसा लगता, चक्कर तेरा लगाता ।
देख जो मैने फूलों को खिलते औ महकते
तुम्हारी बंदगी में, सर है झुका ही जाता ।
देखा जो मैने चिडिय़ॊं को उड़ते औ चहकते,
जर्रा यहां का हर, तेरी याद है दिलाता ।
रख ले मुझे हमेशा अपनी शरण में मौला,
दिल बार बार तुझको आवाज़ है लगाता ।
कवि कुलवंत सिंह
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
देखा जो मैने चिडिय़ॊं को उड़ते औ चहकते,
जर्रा यहां का हर, तेरी याद है दिलाता ।
रख ले मुझे हमेशा अपनी शरण में मौला,
दिल बार बार तुझको आवाज़ है लगाता ।
बहुत सुंदर ख़याल है
बहुत ही सुन्दर गजल है।
मै जब भी हूँ किसी इंसां के करीब जाता ।
अल्लाह तेरा बस तेरा ही वजूद पाता ॥
सुंदर ग़ज़ल,
गहरा एहसास छुपाये ये ग़ज़ल एक मोहक प्रस्तुती है
माफ़ी चाहूँगा ,तसल्ली नहीं मिली सर जी.
आलोक सिंह "साहिल"
कुलवंत जी बहोत ही बढ़िया ग़ज़ल लिखी है आपने इसका मतला तो कमल का बन पड़ा है ...
अन्यथा ना लें तीसरे शे'र में देख के जगह पे देखा होनी चाहिए .. प्रिंटिंग पे कही त्रुटी होगी कृपया इसे सुधार लें ...
ढेरो साधुवाद आपको...
अर्श
रख ले मुझे हमेशा अपनी शरण में मौला,
दिल बार बार तुझको आवाज़ है लगाता ।
बहुत ही अच्छी रचना. बधाई.
आपका
महेश
देखा जो मैने फूलों को खिलते औ महकते
तुम्हारी बंदगी में, सर है झुका ही जाता ।
बहुत सुन्दर!
ये बिना रदीफ की गजल है, काफिया भी अच्छी तरह निभा रखा है
मैने इसे चार पाँच बार पढा मुझे इसमे गजल से ज्यादा सूफी गीतो जैसी बात लगी
सुमित भारद्वाज
एक बार पढने मे समझ नही आया, चार पाँच बार पढने के बाद समझ भी आया और अच्छा भी लगा
सुमित भारद्वाज
aap sabhi ka haardik dhanyavaad..
Nice Kulwant ji!
Isey ghair-muraddaf Ghazal kahenge agar Beher mein hai (I didnt check!).
RC
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