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Thursday, December 11, 2008

फिज़ाओं में यूं ही नहीं है हलचल


शिमला के एक छोटे से गांव जुब्बल में १४ सितम्बर १९७१ को जन्मे कवि प्रकाश बादल दैनिक ट्रिब्यून में संवाददाता और दैनिक अजीत समाचार में धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) के रूप में ब्यूरो प्रभारी के रूप में कामकर चुके हैं। आकाशवाणी के आकस्मिक उद्घोषक के रूप में कार्य किया है। हिंदी ग़ज़ल लिखने का शौक रखने वाले प्रकाश की ग़ज़लें अक्सर पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती हैं। वर्तमान में सरकारी क्लर्क की नौकरी में है। नवम्बर माह की प्रतियोगिता में इनकी रचना ने आठवाँ स्थान बनाई थी।

पुरस्कृत कविता- फिज़ाओं में यूं ही नहीं है हलचल


बोलता नहीं लेकिन बड़बड़ाता तो है।
सच होंठ पर लेकिन आता तो है।

अर्श शौक से अब ओले उड़ेल दे,
मूंडे गए सरों के पास छाता तो है।

तेरी मंज़िल नमालूम मिले न मिले,
है तय ये रस्ता कहीं जाता तो है।

फिज़ाओं में यूं ही नहीं है हलचल,
तीर चुपके से कोई चलाता तो है।

दुश्मन व्यवस्था को टुकड़े न समझें,
दिशाओं का आपस में नाता तो है।

खुद ही चप्पु न चलाओ तो क्या बने,
वक्त कश्ती में तुम्हें बिठाता तो है।

कोई भी संवरने को यहां नहीं राज़ी,
वक्त सब को आईना दिखाता तो है।

हमारी जिद कि हम तमाशा न हुए,
हँसना ज़माने को वरना आता तो है।



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७, ७॰३५
औसत अंक- ७॰१७५
स्थान- प्रथम


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४, ५॰५ (पिछले चरण का औसत
औसत अंक- ५॰५५८३३
स्थान- पाँचवाँ


पुरस्कार- कवि गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल' के काव्य-संग्रह 'पत्थरों का शहर’ की एक प्रति

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

Straight Bend का कहना है कि -

Umda ...!! Bahut achcha likha hai. Kaii She'r bahut achche hain.
Badhai!

RC

Nikhil का कहना है कि -

नाम तो बताईए जनाब....

Nikhil का कहना है कि -

अच्छा, प्रकाश है इनका नाम....बाद में दिखा....गज़ल पहले दिखी और अच्छी लगी..
हिंदयुग्म पर स्वागत...

हरकीरत ' हीर' का कहना है कि -

सभी शे'र अच्‍छे लगे ...
लेकिन ये दो ज्‍यादा बेहतर हैं-

खुद ही चप्पु न चलाओ तो क्या बने,
वक्त कश्ती में तुम्हें बिठाता तो है।

कोई भी संवरने को यहां नहीं राज़ी,
वक्त सब को आईना दिखाता तो है।

मैं समझती हूँ इसे और ऊपर स्‍थान मिलना चाहिए था।

Anonymous का कहना है कि -

aap to bahut sare pratibhaon se labdh hain,kya khub hota gar apna nam bhi likh diya hota,vaise achhi rachgna,badhai swikar karein...........
ALOK SINGH "SAHIL"

Riya Sharma का कहना है कि -

प्रकाश जी
शुक्रिया इतनी सुंदर ग़ज़ल से मुलाकात कराने का.
उम्मीद है आगे भी ऐसी उम्दा रचना मिलती रहेगी

सादर !!

Anonymous का कहना है कि -

जहाँ अंक लिखा है वहां पाचवां लिखा है और उपर आठवां शायद गलती से लिख गया होगा .
ग़ज़ल में जीवन की बात है और आशावादी भी है येही मुझको अच्छा लगा
खुद ही चप्पु न चलाओ तो क्या बने,
वक्त कश्ती में तुम्हें बिठाता तो है।
सच कहा है आप ने

manu का कहना है कि -

हर शेर मजेदार...
असरदार...मज़ा आ गया
.....और हकीर जी से भी मैं सहमत हूँ

"अर्श" का कहना है कि -

बहोत खूब लिखा है आपने प्रकाश भाई ... ढेरो बधाई आपको...

Anonymous का कहना है कि -

दोस्तों न तो ये ग़ज़ल है,और जब ग़ज़ल ही नहीं है तो शे`र कहाँ हुए
अनाम
बोलता नहीं लेकिन बड़बड़ाता
२१२ १२ २२ २१ 22
तो है।
२ 2
सच होंठ पर लेकिन आता तो
२ २१ २ २२ २२ २ २
है।
नहीं बोलता पर कभी [ पर कभी -देखिये ] बड़बड़ाता तो है
१२२ १२२ १२२ १२२ १२
निकल मुंह से सच दोस्त नाहक यूँ आता तो है
अगर यूँ कहते तो ग़ज़ल हो जाती बादल जी

Unknown का कहना है कि -

गजल का हर शे'र अच्छा लगा

ये शे'र सबसे अच्छा लगा

कोई भी संवरने को यहां नहीं राज़ी,
वक्त सब को आईना दिखाता तो है।
अनाम जी,
बहर की जानकारी प्रदान करने के लिए शुक्रिया, आप रचना के भाव देखिये आपको भी रचना पसंद आयेगी
काफीया, रदीफ दोनो ठीक है
सुमित भारद्वाज

manu का कहना है कि -

एनी माउस जी
अपने मिसरे को किसी दूसरे मिसरे के साथ गुनगुनाएं,
पता चल जायेगा
बाकी हर शायर १२१२ १२१२ करे ज़रूरी नहीं है
"देखा तेरा जूनून तो हैरान रह गयी,
अब बहर का अकल से तारुफ़ नहीं रहा "
j

दिगम्बर नासवा का कहना है कि -

वाह्ह वाह्ह......क्या बात है
बहुत ही खूब सूरत ग़ज़ल, एक एक शेर लाजवाब है, गुनगुनाने को मन करता है

Anonymous का कहना है कि -

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Anonymous का कहना है कि -

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