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Friday, September 18, 2009

कुलटा !


आग-बबूला होकर भी
चुपचाप
बैठी हूँ अपने पुरूष-मित्र के विरह में
भीग रहे मेरे कपोल आँसुओं से
पायल बज रही उस छिनाल की
बेशरम चले जा रहे दोनो
सुख-चैन की पगडंडियों पर
सिहर-सिहर जाती हूँ
उसे लाज नहीं आती
क्यों छिन लिया उसने मेरा मित्र ?
उसकी यह हिम्मत !
कि मुझे उलझा गई कांटों में
सोंचती हूँ तो
खून में
कौंध जाती बिजली
कर देती क्षण भर के लिये
मेरा जीवन-प्रवाह अवरूद्ध
वह दीवाल बन कर आड़े आती कलमुई !
मैं छप्पर बन कर
दोस्त को बचाना चाहती उससे
पर अब बादलों की गड़गड़ाहट में
लय टूट गया
क्या हुआ कि
पलक झपकते
उजड़ गई मेरी दुनियाँ
झगड़ी उससे मैं;
रिश्तों के ड्रेसिंग-टेबल से
कान उमेठ कर
उसे दूर करना चाहा तो
बिखर गया लोशन मेरा
और वह सजाती रही भाल कुमकुम से
कुलटा !
क्यों नहीं समझती कि वह तो पराई है
क्या हक बनता है उसका ?
वह है
सिर्फ़ उसकी पत्नी !

-हरिहर झा

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

संगीता पुरी का कहना है कि -

क्या हक बनता है उसका ?
वह है
सिर्फ़ उसकी पत्नी !

वाह ! क्‍या रचना है .. पर सही है !!

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

जोरदार रचना...एक सुंदर भाव को समेटे हुए...बधाई..

निर्मला कपिला का कहना है कि -

eएक नयी अभिव्यक्ति मे सुन्दर रचना के लिये आभार्

Anonymous का कहना है कि -

एक नई सोच के लिए बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद

विमल कुमार हेडा

Anonymous का कहना है कि -

एक नारी की दर्द भरी अभिव्य्क्ति वह भी एक पुरुश द्वारा वाह भई..बहुत सुंदर। हरिहर जी बधाई ।

Manju Gupta का कहना है कि -

नारी पर प्रखर अभिव्यक्ति की है . बधाई .

Admin का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
Admin का कहना है कि -

काबिल-ए-तारीफ़!

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

वह है
सिर्फ उसकी पत्नी !
--वाह क्या अंत किया है कविता का.
-देवेन्द्र पाण्डेय।

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

विषय अच्छा लगा |
बधाई|

अवनीश तिवारी

jyotishonak का कहना है कि -

ekdum nayae najariyae sae socha hae.bahut hi khoobsoorst prayas hae yae.vah vah vah.dr.jyoti

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