आलोक उपाध्याय ’नज़र’ हिंद-युग्म की यूनिप्रतियोगिता के नियमित प्रतिभागियों मे रहे हैं। पेशे से सॉफ़्टवेयर इंजीनियर आलोक जी का ग़ज़लों के प्रति विशेष रुझान रहा है। इनकी रचनाएँ अक्सर पाठकों की सराहना प्राप्त करती रही हैं। अगस्त माह मे इनकी एक रचना को चतुर्थ स्थान प्राप्त हुआ था। दिसंबर माह की यूनिप्रतियोगिता मे उनकी ग़ज़ल बारहवें पायदान पर रही है।
ग़ज़ल
शिकवे बारी बारी कर लें
ग़म की साझेदारी कर लें
आखिर हमको जाना ही है
पहले से तैयारी कर लें
हंगामों से सुख मिलता है
जी भर मारा-मारी कर लें
इस जंगल में रहना हो तो
अपनी सोच शिकारी कर लें
हो सकता है तोला जाये
अपना पलड़ा भारी कर लें
इश्क इबादत ठीक है लेकिन
उसको एक बीमारी कर लें
यूँ कतरा-कतरा रूह न बेचेँ
खुल के चोर बाजारी कर लें
ज़ज्बा ज़ज्बा बहुत हुआ अब
इन लम्हों को लाचारी कर लें
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
आखिर हमको जाना ही है
पहले से तैयारी कर लें
बहुत खूब अलोक जी आज के वक्त में बेहद सटीक और सार्थक आभार.
इस जंगल में रहना हो तो
अपनी सोच शिकारी कर लें
यूँ कतरा-कतरा रूह न बेचेँ
खुल के चोर बाजारी कर लें
ज़ज्बा ज़ज्बा बहुत हुआ अब
इन लम्हों को लाचारी कर लें
wah zanaab .. bahut khoob kahe yeh sher aapne..Naman..aapko...
Alok,
Bahut khub badhiya likha hai.....
यूँ कतरा-कतरा रूह न बेचेँ
खुल के चोर बाजारी कर लें
Surinder
यूँ कतरा-कतरा रूह न बेचेँ
खुल के चोर बाजारी कर लें
..वाह! यूँ तो सभी शेर नायब है मगर इसका अंदाज निराला है.
आखिर हमको जाना ही है
पहले से तैयारी कर लें
kitni gahri baat
इस जंगल में रहना हो तो
अपनी सोच शिकारी कर लें
sunder kaha anokhe andaj se
bahut bahut badhai
rachana
बहुत ही गहरे अर्थों में पिरोयी गई एक सुंदर गज़ल...बधाई!
हो सकता है तोला जाये
अपना पलड़ा भारी कर लें
इश्क इबादत ठीक है लेकिन
उसको एक बीमारी कर लें
बहुत सुंदर लगे ये दो शेर..
आखिर के दो शेरो में ज़रा दिक्कत हुयी...
आलोक की गजलो में कहन है उनके शेर बिना किसी मस्कत के जुबान पर चढ़ते है और कभी कभी तो सर पर नाचने लगते है. बहर / मिसरा/ व्याकरण पीच छुट जाते है और कथ्य / कहन इतना तारी हो जाता है की पूरी गजल इक पूरी जिंदगी को सामने खड़ा कर देती है.
उनका लगातार अच्हा लिखना भी दिखाता है की उनके पास कहने को बहुत कुछ बाकी है वो बात
भले दुहरा दे उसके कहने का तरीका कभी नहीं दुहराते , यही उनकी ताकत है.
अखिलेश
वाह आलोक जी क्या खूब लिखते है एक से बढ़कर एक पंक्तियाँ...सुंदर ग़ज़ल..बधाई
App sabi Logo ka bahut Bahut Shukriya ...Alok Upadhyay "Nazar"
छोटी बह्र में सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई
कुछ सलाह अगर नागवार न गुजरे तो देखें
हो सकता है तोला जाये
[ तोला जाये इससे पहले]
अपना पलड़ा भारी कर लें
इश्क इबादत ठीक है लेकिन
उसको एक बीमारी कर लें
[ मत इसको बीमारी कर लें]
यूँ कतरा-कतरा रूह न बेचेँ
खुल के चोर बाजारी कर लें
[खुल कर चोर-बजारी कर लें]
मुहावरा चोर-बजारी है और कहवतें या मुहावरे को तोड़-मरोड़ना गजल में वर्जित होता है]
ज़ज्बा ज़ज्बा बहुत हुआ अब
[जज्बा दो बार आने से प्रभाव कम हो गया है
जज्बातों की कद्र करें,पर
क्यों इनको लाचारी कर लें,]
इन लम्हों को लाचारी कर लें
आशा है अन्यथा न लेंगे
इश्क इबादत ठीक है लेकिन
उसको एक बीमारी कर लें
[ मत इसको बीमारी कर लें]
या ऊपर है की मात्रा गिराने से सकता आ रहा है [लय में बाधा आ रही है]
उसको एक बीमारी कर लें मे एक को इक करना पड़ेगा व भाव को स्पष्ट करने के लिये ? यह लगाना पड़ेगा
उसको इक बीमारी कर लें ?
इश्क इबादत है ठीक मगर
क्या इसको बीमारी कर लें
क्या लगाने से ? की जरूरत स्वयमेव पूरी हो जाती है।
bahut khoob
ye gazal rooh ke andar tak utar jati hai
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