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Saturday, January 16, 2010

ढँके जज्बात


प्रतियोगिता की चौदहवीं कविता की रचयित्री सुनीता की यह हिंदयुग्म पर दूसरी कविता है। फ़रीदाबाद से तअल्लुक रखने वाली सुनीता जी अनामिका नाम से लम्बे अरसे से कविताएँ लिखती रही हैं। इनकी पिछली कविता ने अक्टूबर माह की प्रतियोगिता मे ग्यारहवाँ स्थान प्राप्त किया था।

कविता: ढँके जज्बात

अब मै ढाँप लेती हूँ
अपने जज्बातो को तुमसे भी
और ओढ़ लेती हूँ
एक स्वाँग भरी मुस्कान को
छुपा लेती हूँ सारा दर्द
आवाज में भी.
तुम छेद ही नही पाते
इस चक्रव्यूह को,
नही देख पाते
स्वाँग भरी मुस्कान के पीछे
के चेहरे का दर्द.
मेरी आवाज का कंपन
कहीं तुम्हारी ही खनक में
विलीन हो जाता हैं.
तुम स्वयं मे मदहोश हो,
गफलत में हो, कि
मै संभल गयी हूँ
तुम्हारे दिये दर्द से..
किंतु सच....?
सच कुछ और ही हैं.
मै भीतर ही भीतर
पल-पल बिखरती हूँ..
टूटती हूँ.
मगर हर लम्हा
प्रयास-रत रहती हूँ..
अपने में ही सिमटे रहने को..
नही चाहती अब
मै तुम्हे अपनी आहें
सुनांना.
क्युँकि सुना कर भी
देख चुकी हूँ
और बदले में तुम्हारी
रुसवाईयाँ ही पायी हैं.
इसलिये अब मैने
अपने चारो ओर
खडी कर दी हैं
एक अभेद्य दीवार
जिसके भीतर
झांकने की
सबको मनाही हैं
और तुमको भी

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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

तुम छेद ही नही पाते
इस चक्रव्यूह को,
तुम छेद ही नही पाते
इस चक्रव्यूह को,
नही देख पाते
स्वाँग भरी मुस्कान के पीछे
के चेहरे का दर्द.
मेरी आवाज का कंपन
कहीं तुम्हारी ही खनक में
विलीन हो जाता हैं.
तुम स्वयं मे मदहोश हो,
गफलत में हो, कि
मै संभल गयी हूँ
तुम्हारे दिये दर्द से.
एक एक शब्द मन की गहराइयों में उतरता हुआ
नायाब प्रस्तुति. सुनीता जी की कलम को सादर नमन.

Pushpendra Singh "Pushp" का कहना है कि -

बहुत खुबसूरत कविता
बहुत बहुत आभार

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

नही चाहती अब
मै तुम्हे अपनी आहें
सुनांना.
क्युँकि सुना कर भी
देख चुकी हूँ
और बदले में तुम्हारी
रुसवाईयाँ ही पायी हैं.

बेहतरीन भावनात्मक अभिव्यक्ति...सुनीता जी बहुत बहुत बधाई..

zaheenbikaneri का कहना है कि -

सुनीता साहिबा आदाब;
आपकी नज़्म मैंने पढ़ी है और बाक़ायदा फ़न के ऐतबार से पढ़ी है नज़्म बहुत तवील है लेकिन
लफ़्ज़ों कि बंदिश बेहतरीन है रवानी भी ख़ूब है कहीं - कहीं भर्ती के लफ़्ज़ हैं बहरहाल एक अच्छी नज़्म

''ज़हीन'' बीकानेरी 09414265391

Jyoti का कहना है कि -

Bahot Sunder----

isike sath Aapko Nav varsha ki Hardik Shubhkamnaye

डा श्याम गुप्त का कहना है कि -

क्यों????????????????????????????????????

अमिताभ श्रीवास्तव का कहना है कि -

kavitaye kesi bhi ho, mujhe lagtaa he vo apne aap me sampoorna aour avval hoti he jinhe 'sthaan' dekhar toul moul me mujhe jyada ruchi nahi he, isliye aapki kavita chahe 11 ve sthaan par aai ho, kintu shbdo ke jariye artho ko bunanaa hi khaasiyat hoti he, jo is kavita me he, umda.../

ismita का कहना है कि -

kavita achhi lagi....

स्वाँग भरी मुस्कान के पीछे
के चेहरे का दर्द.
मेरी आवाज का कंपन
कहीं तुम्हारी ही खनक में
विलीन हो जाता हैं.

bahut achha.

Atul Kumar का कहना है कि -

दिल को गहराई तक छू लेने वाली कविता !! बधाईयाँ स्वीकार करें !

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