हर माह यूनिप्रतियोगिता के माध्यम से कई नयी काव्य-प्रतिभाएं भी हिंद-युग्म के मंच से जुड़ती रहती हैं। ऐसा ही नया नाम है तरुण का, जिनकी एक कविता प्रतियोगिता के आठवें पायदान पर है। हिंद-युग्म पर पर यह उनकी प्रथम कविता है। इनका पूरा नाम तरुण कुमार मोहन सिंह ठाकुर है। इंदौर (म.प्र.) के रहने वाले तरुण सम्प्रति वेब डेवलपिंग के व्यवसाय से जुड़े हैं तथा ग्राफ़िक्स की वेबसाइट से भी सम्बद्ध हैं।
पुरस्कृत कविता: भारत का हिरोशिमा
हमें जरुरत नहीं है,
किसी
पड़ोसी ताकत की
जो
हमें बर्बाद करने के लिए
खुद बर्बाद हो जाए
हमारे लिए तो
हमारे चुने हुए
प्रतिनिधि ही
किसी
परमाणु बम से
कम नहीं है
ये
किसी एंडरसन को
भोपाल तो दे सकते है
पर
भोपाल को
एंडरसन देना
इनकी औकात नहीं है
वैसे
औकात से पहले
इनकी नियत पे
शक होता है
और
नियत तक तो बात
तब पहुँचे जब
किसी के
इंसान होने की
भी
थोड़ी संभावना हो
भोपाल सबक है
विकास के पीछे
अंधी दौड़ में
शामिल
तथाकथित
विकासशील देशों के लिए
जो
अमेरिका
और
जापान
से
होड़ में
ऐसे कितने
हिरोशिमा
और
नागासाकी
लिए
बैठे है
भोपाल में
गैस अब भी
रिस रही है
तब इसमे
इंसान मरे थे
अब
इंसानियत
मर रही है !
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पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
"हमारे लिए तो
हमारे चुने हुए
प्रतिनिधि ही
किसी
परमाणु बम से
कम नहीं है"
सोयी जनता को जगाने के लिए अच्छी सोच और विचार मगर क्या हम जागेंगे? शायद नहीं, इसलिए इंसानियत यूँ ही मरती रहेगी और हम कहते रह जायेंगे इंसानियत - मर रही है! तरुण जी सुंदर रचना के लिए बधाई.
अच्छे भाव लिए..अच्छी अकविता...
बिल्कुल सच बात कही आपने आज तक भोपाल गैस कांड से ग्रसित लोगों के साथ न्याय का न हो पाना इंसानियत की मृत्यु नही तो और क्या है...बढ़िया भाव..सुंदर कविता...धन्यवाद आठवें स्थान के लिए बहुत बहुत बधाई!!
बहुत सुन्दर तरिके से कही गई है बात ! बधाई !
कविता नहीं है , ऐसा मुझे लगा | लेकिन मुद्दा अच्छा है |
तब इसमे
इंसान मरे थे
अब
इंसानियत
मर रही है !
सुन्दर
अवनीश तिवारी
hamare pratinidhi sahi me aise hi hain...sunder rachana ke liye badhai!
कविता ,अकविता , कही अनकही
सब कविता है ,
दिल ने कही ..दिल ने सुनी
एक वेदना का पहाड़ था
मेरे भीतर जो यु पिघल गया ..बस |
आभार शब्द मात्र नहीं
मेरा भाव भी है
गर पढ़ा जाए बिन आँख
सभी सुधि पाठकों एवं हिंद युग्म को सादर धन्यवाद !
सदा ही आपका
तरुण कुमार मोहन सिंह ठाकुर
तब इसमे
इंसान मरे थे
अब
इंसानियत
मर रही है !
बहुत सुन्दर व्यंग, सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
.... kahnaa jyaada jaruri hai dost! aapke kahne me huasalaa hai aur saarthak vichaar ka nimatntran, kawita ki khwahish aur kya hoti hai!
kahi se koi paribhasha todtee mahsus hui... aaahlaad!
Bahut sahi kaha sir...
esa lagta he hame vikas karne, unnat takneek banane ke sath-sath hi achhe insaan banane ki jarurat bhi bahut hogi aour abhi bhi he !
Par kese ?
kavita me o gahrai hia jis me insan dubta huaa chala gaya. aisa lagata hia har line ke bad ki or aage kya hoga... jo man ko chhu gayi...
Prem Ji protsaahan ke liye dhanyawaad,
Atul aur Mukesh Amntran swikaar kar tippani karane ke liye shubhaashish.
Shesh sabhi ko bahut aabhaar!
aapakaa
Tarun Mohan Singh Thakur.
Tarun Ji aapaki agali rachanaa kaa intejar rahegaa..
bhai bahut badhiya!
Harish Upadhyay
another way to protest for Bhopal Gas Victims...keep it up friend!
Rameshwar Singh,
Bhopal.
bahut hi achchi kavita hai badhai
सभी सुधि पाठकों व कविता प्रेमियों का बहुत आभार !
आपका
तरुण मोहन सिंह ठाकुर
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