प्रतियोगिता की सातवीं कविता तरुण ठाकुर की है। युवा कवि तरुण की एक कविता पिछले महीने भी प्रकाशित हुई थी।
पुरस्कृत कविता: अलग अदा से
किसी रुचिका या आरुशी
के मरने पर
प्रतिक्रिया करता समाज
बँट जाता है
कई खानों में
हर खंड से
मगर
एक सी गंध
आती है
पुरुष के
लम्पट
दुराग्रह,
व्यभिचार,
और
अपने अतीत को
न्यायसंगत
ठहराने की ...
अपनी बेटी
बेटी है
औरों की
भोग्या
और
इसी दुर्भाव
को
पुष्ट करते
कराते
माध्यम रूपी
श्वान
हड्डियाँ
निकाल लाते हैं
उपेक्षित कब्रों से
और
हम
अभिशप्त हैं
उनकी
फैलाई गंध में
श्वास लेने और
बीमार होने को
आओं मेरे
बूढ़े देश की
जवान बेटियो
बचा सकती हो
तो बचा लो
भविष्य की
नगरवधुओं को
और
अवसर मत दो
किसी पुरुष को
तुम्हारे
उद्धार का
क्यूँकि
उनकी मलिन
अमर्यादित
अपेक्षाओं और
कुंठाओं
को
तुम ही तो
जमीन देती हो!
इस दुनिया की
सारी सचारित्रता
तुम्हारे आधार ही
खड़ी है
झटक दो ज़रा
अपना कान्धा
इस बार
कुछ
अलग अदा से
कि तुम्हारे साथ
उद्धार हो जाए
मानवता का
जो
कट गयी थी
जन्म से
गर्भनाल की तरह...
पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।