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Thursday, February 25, 2010

आओ मेरे बूढ़े देश की जवान बेटियो


प्रतियोगिता की सातवीं कविता तरुण ठाकुर की है। युवा कवि तरुण की एक कविता पिछले महीने भी प्रकाशित हुई थी।

पुरस्कृत कविता: अलग अदा से

किसी रुचिका या आरुशी
के मरने पर
प्रतिक्रिया करता समाज
बँट जाता है
कई खानों में
हर खंड से
मगर
एक सी गंध
आती है
पुरुष के
लम्पट
दुराग्रह,
व्यभिचार,
और
अपने अतीत को
न्यायसंगत
ठहराने की ...
अपनी बेटी
बेटी है
औरों की
भोग्या
और
इसी दुर्भाव
को
पुष्ट करते
कराते
माध्यम रूपी
श्वान
हड्डियाँ
निकाल लाते हैं
उपेक्षित कब्रों से
और
हम
अभिशप्त हैं
उनकी
फैलाई गंध में
श्वास लेने और
बीमार होने को
आओं मेरे
बूढ़े देश की
जवान बेटियो
बचा सकती हो
तो बचा लो
भविष्य की
नगरवधुओं को
और
अवसर मत दो
किसी पुरुष को
तुम्हारे
उद्धार का
क्यूँकि
उनकी मलिन
अमर्यादित
अपेक्षाओं और
कुंठाओं
को
तुम ही तो
जमीन देती हो!

इस दुनिया की
सारी सचारित्रता
तुम्हारे आधार ही
खड़ी है

झटक दो ज़रा
अपना कान्धा
इस बार
कुछ
अलग अदा से
कि तुम्हारे साथ
उद्धार हो जाए
मानवता का
जो
कट गयी थी
जन्म से
गर्भनाल की तरह...


पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।

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27 कविताप्रेमियों का कहना है :

सीमा सचदेव का कहना है कि -

9225
Enquiry ID : 9225
Enquiry ID : 9227




तरुण जी आपकी कविता समसामयिक समस्याओं को उजागर करती मन की गहराई तक उतरने वाली रचना है । लेकिन यह क्या
या तो आप अपनी बात पूरी तरह से समझा नहीं पाए या फ़िर हम आपका अभिप्राय समझ नहीं पाए ।
अवसर मत दो
किसी पुरुष को
तुम्हारे
उद्धार का
क्यूँकि
उनकी मलिन
अमर्यादित
अपेक्षाओं और
कुंठाओं
को
तुम ही तो
जमीन देती हो!
कहीं न कहीं आप नारी को ही पुरुष की बुरी भावना के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं ।

Tarun / तरुण / தருண் का कहना है कि -

सीमा जी ,
त्वरित व सुलझी हुई प्रतिक्रया का पहले तो आभार स्वीकार करें !
आपकी प्रतिक्रया अपेक्षित थी और ऐसी ही प्रतिक्रियाओं को आमंत्रित व उद्द्वेलित करने का प्रयास किया है यहाँ , और इन पंक्तियों का पुरुष मैं भी हो सकता हूँ , सो पहले ही प्रयास में अपेक्षित प्रतिक्रया ही मेरी रचना की सफलता है !
मैं अक्सर कहता हूँ , कवि केवल समाज की कुरीतियों और मवाद को उघाड़ सकता है , शेष तो प्रतिक्रया / संवाद एवं पीड़ित पक्ष के
सकारात्मक पहल से ही संभव है ..

धन्यवाद !

रंजना का कहना है कि -

Prabhavshali rachna...Sarthak prayaas kuritiyon par prahaar karne ki...

Anupama का कहना है कि -

aachi kavita..pasand aai...

Unknown का कहना है कि -

your poem is so good and updated on current scenario.

Ranjeet का कहना है कि -

So touching lines. Great thought with
some social message.

neeti sagar का कहना है कि -

बहुत अच्छी रचना ,
सामाजिक धरातल को छूता हुआ विषय,
बहुत-बहुत बधाई!

ममता पंडित का कहना है कि -

मै नियमित रूप से हिन्दयुग्म को मेल पर पड़ती हूँ, समयाभाव के कारण comments नहीं लिख पाती,
आपकी रचना का प्रभाव यह है की अपने को यहाँ comments लिखने से नहीं रोक पाई,
सरल शब्दों मै सटीक बात, बधाई स्वीकारें

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

एक सामाजिक कड़वा सच पिरोया है आपने अपनी इस कविता में सच में एकदम लग अंदाज है..बेहतरीन भाव..बढ़िया रचना..

Harihar का कहना है कि -

एक ज्वलन्त समस्या को उजागर करती रचना !

Tarun / तरुण / தருண் का कहना है कि -
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Tarun / तरुण / தருண் का कहना है कि -

नीती सागर जी , आपने सामाजिक सरोकार देखा और सच मानिए ये ही इस कविता की मूल पूँजी है और मेरा मंतव्य भी, बहुत आभार !

Tarun / तरुण / தருண் का कहना है कि -
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Tarun / तरुण / தருண் का कहना है कि -

विनोद जी आपसे पुन: प्रतिसाद पाकर अत्यंत हर्ष हुवा , आप की टिपण्णी उपलब्धी समान है आपका विशेष आभार !

Tarun K Thakur का कहना है कि -

रंजना जी , अनुपमा जी , प्रिय रणजीत और गोविन्द जी आपने रचना पढ़ी व उत्साह बढाया आपका व हिंद युग्म का बहुत बहुत आभार !

ममता जी , एक स्त्री होने के नाते आपका विषय और साहित्य में वजह ढूँढने की वजह से भी आपकी प्रतिक्रया खून बढाने वाली है , ऐसी प्रतिक्रियाये हमें निरंतर लिखने का हौसला देती है , सादर धन्यवाद !
हिंद युग्म पढ़ते रहें !

हरिहर जी वास्तव में समस्या ज्वलंत है , धन्यवाद !

Unknown का कहना है कि -

Bahut achhi kavita sir....
I hope ke ye sirf padne aour tippaniya karne tak hi na rahe... hamara samaj isse kuchh sikhe tab jakar is kavita ki sarthakta siddha hogi.

Unknown का कहना है कि -

HI TARUN JI
HUME YEH SAMJH NHI AATA KI HAR JAGAH PHUREH KO KYU DOSH DIYA JATA HAI ?
NAARI K UDHAR K CHAKER MAIN BHUT PICH HOTA JAREHA HAI PHURUSH ?

amita का कहना है कि -

bahut hi achchi kavita hai ek ek shabd man ko chu jata hai.karve sach ko bahut achchi tarh se prastut kiya hai aapne badhai
amita

निर्मला कपिला का कहना है कि -

सामाजिक सरोकारों से ओत प्रोत कविता किसी हद तक आपसे समत भी हूँ नारी का भी इसमे हाथ है कि वो पुरुश के हाथ का खिलौना बन जाती है। नही तो आज बाज़ार्वाद उसका नाज़ायज़ फायदा न उठा रहा होता। धन्यवाद इस कविता के लिये।

Tarun / तरुण / தருண் का कहना है कि -

प्रिय अतुल,
बहुत स्वागत है आपकी टिपण्णी का इन्तेजार था !

इन्दर जी ,
हमारी माताओं , बहनों और पत्नियों ने बहुत पीडाए झेली है और जो भी पुरुष ने किया है वह उसके एवज में कुछ भी नहीं और अगर इसका लेखा जोखा किया जाए तो चुकाने की आड़ में लुट की रकम ज्यादा निकलेगी |
बहुत धन्यवाद !

अमिता जी ,
नारी मन को यह रचना अपनी लगी ये मेरी कविता के माध्यम से नारित्वा को महसूस करने का प्रयास सार्थक हुवा,
बहुत धन्यवाद !

निर्मला जी ,
आपकी सहमति ही इस कविता का पारितोषिक है , पढ़ने व उत्साह बढाने के लिए धन्यवाद !

सभीको सादर धन्यवाद एवं हिन्दयुग्म का बहुत आभार की उन्होंने यह मंच दिया !
हिंदी की सेवा एवं हम जैसी अकिंचन प्रतिभाओं को संरक्षण व बढ़ावा देने के लिए बहुत आभार !

Anonymous का कहना है कि -

waah tarun ji,
bahut badiya, aapki kavita siddhe rhthay mein utrati hai,

bhadhai ho apko

Mani का कहना है कि -

Tikha vyanga hai ye, purush ke do najro me spast bhed bataya hai yaha, jo wo apne aur paryi nari/bala me bhav liye hota hai. Ye un sab logo tak pahunchna chahieye jo aise dristi leye haare aas paas he hai.

Tarun / तरुण / தருண் का कहना है कि -

सभी सुधि पाठकों व कविता प्रेमियों का बहुत आभार !
आपका
तरुण मोहन सिंह ठाकुर

Unknown का कहना है कि -

bahas men bhaag le isi kavitaa par
http://www.orkut.co.in/Main#CommMsgs?cmm=119731&tid=5446854216166176590&start=1

Unknown का कहना है कि -

पुरुषों को 67% आरक्षण की बधाई !
स्त्री को पुरुष ने
एक बार फिर छला है
तैतीस का झांसा देकर
सड़सठ का दाव चला है

आरी ओ माया
शक्तिरूपा
तेरी प्रतिनिधि
नायिकाएं भी
कर रही थी
हाथ ऊपर
जब
अहसान जताकर
तेरी
भावी सत्ता को
बता दिया गया
धत्ता


तेरी तरफदारी
मैं क्यों करू
क्यों तेरी फ़िक्र में
मरू
तेरी तकदीर में रोना है
अब मान भी ले
शोषिता !
तू पुरुषों के हाथ का खिलौना है ...
Tarun K Thakur http://whoistarun.blogspot.com

Anonymous का कहना है कि -

I wonder what Edith has to say with that!

Anonymous का कहना है कि -

Hey Lloyd, lol.

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