प्रतियोगिता की सातवीं कविता तरुण ठाकुर की है। युवा कवि तरुण की एक कविता पिछले महीने भी प्रकाशित हुई थी।
पुरस्कृत कविता: अलग अदा से
किसी रुचिका या आरुशी
के मरने पर
प्रतिक्रिया करता समाज
बँट जाता है
कई खानों में
हर खंड से
मगर
एक सी गंध
आती है
पुरुष के
लम्पट
दुराग्रह,
व्यभिचार,
और
अपने अतीत को
न्यायसंगत
ठहराने की ...
अपनी बेटी
बेटी है
औरों की
भोग्या
और
इसी दुर्भाव
को
पुष्ट करते
कराते
माध्यम रूपी
श्वान
हड्डियाँ
निकाल लाते हैं
उपेक्षित कब्रों से
और
हम
अभिशप्त हैं
उनकी
फैलाई गंध में
श्वास लेने और
बीमार होने को
आओं मेरे
बूढ़े देश की
जवान बेटियो
बचा सकती हो
तो बचा लो
भविष्य की
नगरवधुओं को
और
अवसर मत दो
किसी पुरुष को
तुम्हारे
उद्धार का
क्यूँकि
उनकी मलिन
अमर्यादित
अपेक्षाओं और
कुंठाओं
को
तुम ही तो
जमीन देती हो!
इस दुनिया की
सारी सचारित्रता
तुम्हारे आधार ही
खड़ी है
झटक दो ज़रा
अपना कान्धा
इस बार
कुछ
अलग अदा से
कि तुम्हारे साथ
उद्धार हो जाए
मानवता का
जो
कट गयी थी
जन्म से
गर्भनाल की तरह...
पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।
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27 कविताप्रेमियों का कहना है :
9225
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Enquiry ID : 9227
तरुण जी आपकी कविता समसामयिक समस्याओं को उजागर करती मन की गहराई तक उतरने वाली रचना है । लेकिन यह क्या
या तो आप अपनी बात पूरी तरह से समझा नहीं पाए या फ़िर हम आपका अभिप्राय समझ नहीं पाए ।
अवसर मत दो
किसी पुरुष को
तुम्हारे
उद्धार का
क्यूँकि
उनकी मलिन
अमर्यादित
अपेक्षाओं और
कुंठाओं
को
तुम ही तो
जमीन देती हो!
कहीं न कहीं आप नारी को ही पुरुष की बुरी भावना के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं ।
सीमा जी ,
त्वरित व सुलझी हुई प्रतिक्रया का पहले तो आभार स्वीकार करें !
आपकी प्रतिक्रया अपेक्षित थी और ऐसी ही प्रतिक्रियाओं को आमंत्रित व उद्द्वेलित करने का प्रयास किया है यहाँ , और इन पंक्तियों का पुरुष मैं भी हो सकता हूँ , सो पहले ही प्रयास में अपेक्षित प्रतिक्रया ही मेरी रचना की सफलता है !
मैं अक्सर कहता हूँ , कवि केवल समाज की कुरीतियों और मवाद को उघाड़ सकता है , शेष तो प्रतिक्रया / संवाद एवं पीड़ित पक्ष के
सकारात्मक पहल से ही संभव है ..
धन्यवाद !
Prabhavshali rachna...Sarthak prayaas kuritiyon par prahaar karne ki...
aachi kavita..pasand aai...
your poem is so good and updated on current scenario.
So touching lines. Great thought with
some social message.
बहुत अच्छी रचना ,
सामाजिक धरातल को छूता हुआ विषय,
बहुत-बहुत बधाई!
मै नियमित रूप से हिन्दयुग्म को मेल पर पड़ती हूँ, समयाभाव के कारण comments नहीं लिख पाती,
आपकी रचना का प्रभाव यह है की अपने को यहाँ comments लिखने से नहीं रोक पाई,
सरल शब्दों मै सटीक बात, बधाई स्वीकारें
एक सामाजिक कड़वा सच पिरोया है आपने अपनी इस कविता में सच में एकदम लग अंदाज है..बेहतरीन भाव..बढ़िया रचना..
एक ज्वलन्त समस्या को उजागर करती रचना !
नीती सागर जी , आपने सामाजिक सरोकार देखा और सच मानिए ये ही इस कविता की मूल पूँजी है और मेरा मंतव्य भी, बहुत आभार !
विनोद जी आपसे पुन: प्रतिसाद पाकर अत्यंत हर्ष हुवा , आप की टिपण्णी उपलब्धी समान है आपका विशेष आभार !
रंजना जी , अनुपमा जी , प्रिय रणजीत और गोविन्द जी आपने रचना पढ़ी व उत्साह बढाया आपका व हिंद युग्म का बहुत बहुत आभार !
ममता जी , एक स्त्री होने के नाते आपका विषय और साहित्य में वजह ढूँढने की वजह से भी आपकी प्रतिक्रया खून बढाने वाली है , ऐसी प्रतिक्रियाये हमें निरंतर लिखने का हौसला देती है , सादर धन्यवाद !
हिंद युग्म पढ़ते रहें !
हरिहर जी वास्तव में समस्या ज्वलंत है , धन्यवाद !
Bahut achhi kavita sir....
I hope ke ye sirf padne aour tippaniya karne tak hi na rahe... hamara samaj isse kuchh sikhe tab jakar is kavita ki sarthakta siddha hogi.
HI TARUN JI
HUME YEH SAMJH NHI AATA KI HAR JAGAH PHUREH KO KYU DOSH DIYA JATA HAI ?
NAARI K UDHAR K CHAKER MAIN BHUT PICH HOTA JAREHA HAI PHURUSH ?
bahut hi achchi kavita hai ek ek shabd man ko chu jata hai.karve sach ko bahut achchi tarh se prastut kiya hai aapne badhai
amita
सामाजिक सरोकारों से ओत प्रोत कविता किसी हद तक आपसे समत भी हूँ नारी का भी इसमे हाथ है कि वो पुरुश के हाथ का खिलौना बन जाती है। नही तो आज बाज़ार्वाद उसका नाज़ायज़ फायदा न उठा रहा होता। धन्यवाद इस कविता के लिये।
प्रिय अतुल,
बहुत स्वागत है आपकी टिपण्णी का इन्तेजार था !
इन्दर जी ,
हमारी माताओं , बहनों और पत्नियों ने बहुत पीडाए झेली है और जो भी पुरुष ने किया है वह उसके एवज में कुछ भी नहीं और अगर इसका लेखा जोखा किया जाए तो चुकाने की आड़ में लुट की रकम ज्यादा निकलेगी |
बहुत धन्यवाद !
अमिता जी ,
नारी मन को यह रचना अपनी लगी ये मेरी कविता के माध्यम से नारित्वा को महसूस करने का प्रयास सार्थक हुवा,
बहुत धन्यवाद !
निर्मला जी ,
आपकी सहमति ही इस कविता का पारितोषिक है , पढ़ने व उत्साह बढाने के लिए धन्यवाद !
सभीको सादर धन्यवाद एवं हिन्दयुग्म का बहुत आभार की उन्होंने यह मंच दिया !
हिंदी की सेवा एवं हम जैसी अकिंचन प्रतिभाओं को संरक्षण व बढ़ावा देने के लिए बहुत आभार !
waah tarun ji,
bahut badiya, aapki kavita siddhe rhthay mein utrati hai,
bhadhai ho apko
Tikha vyanga hai ye, purush ke do najro me spast bhed bataya hai yaha, jo wo apne aur paryi nari/bala me bhav liye hota hai. Ye un sab logo tak pahunchna chahieye jo aise dristi leye haare aas paas he hai.
सभी सुधि पाठकों व कविता प्रेमियों का बहुत आभार !
आपका
तरुण मोहन सिंह ठाकुर
bahas men bhaag le isi kavitaa par
http://www.orkut.co.in/Main#CommMsgs?cmm=119731&tid=5446854216166176590&start=1
पुरुषों को 67% आरक्षण की बधाई !
स्त्री को पुरुष ने
एक बार फिर छला है
तैतीस का झांसा देकर
सड़सठ का दाव चला है
आरी ओ माया
शक्तिरूपा
तेरी प्रतिनिधि
नायिकाएं भी
कर रही थी
हाथ ऊपर
जब
अहसान जताकर
तेरी
भावी सत्ता को
बता दिया गया
धत्ता
तेरी तरफदारी
मैं क्यों करू
क्यों तेरी फ़िक्र में
मरू
तेरी तकदीर में रोना है
अब मान भी ले
शोषिता !
तू पुरुषों के हाथ का खिलौना है ...
Tarun K Thakur http://whoistarun.blogspot.com
I wonder what Edith has to say with that!
Hey Lloyd, lol.
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