आज की जिंदगी
इस कदर टुकड़ों में बंट गई है
कि इंसान की मौत मैं भी,
पूर्णता नहीं रह गई है .
हजारो में से कोई एक
सम्पूर्ण मौत मरता होगा
और मरने के बाद खुद भी,
अपनी मौत पर गर्व करता होगा .
अरे ! आज कल एक साथ
पूरी मौत होती ही कंहा है ?
टुकडे टुकडे मौत को
सहेजे ज़िन्दगी जान ही नहीं पाती
कब मासूमियत की मौत हुई
कब अच्छाई, इमानदारी
पवित्रता और खुद्दारी कल बसी,
कब चल बसा,
बचपन का भोलापन, यौवन का उत्साह
झूठ बोलते है सब,
हर एक को पता है ,
कंहा और कब कितनी मोते हुई,
कब वो चाँदी के टुकड़ो खातिर मरा
कब जान दी, ज़िन्दगी बनाने खातिर
मानव गोस्त और सत्ता वेश्या के लिए तो
रोज ही खुदकशी करता रहा,
दोष किसका ?
बचपन में, सो जा
नहीं तो शेर आ जाएगा से, खंडित विश्वास को
कई हमसफ़र मिलते चले गए और
इस देह मंदिर से मूल्य रिसते चले गए.
जब आस्था और विश्वास ही
मुर्दा हो तो,
इंसान ज़िंदा नहीं होता,
जिस्मों में पानी और आग
न हो तो ,
स्पंदन पैदा नहीं होता
लाशो के समागम से
जीवन पैदा नहीं होता .
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
अति सुंदर विनय जी बहुत बहुत बधाई लेकिन
"बचपन में, सो जा
नहीं तो शेर आ जाएगा"
से विश्वास खंडित हुआ मैं नहीं मानता इसके बाबजूद भी समग्र रूप से इस सुंदर रचना के लिए आपको फिर से बधाई.
वास्तव में आज इंसान थोड़ा थोड़ा हर रोज मर रहा है कभी पूरी मौत आती नही ..पूरी मौत के आने तक उसमें कुछ ऐसी चीज़ बचाती ही नही जिसके नष्ट होने का मरना कहे..बस यह शरीर रह जाता है उसमें जान नही रह जाती बाकी मर तो वो पहले ही जाता है इस संसार में अपनी जीविका पालन करते करते ..एक सुंदर भाव को पिरोती हुई बेहतरीन कविता..बधाई!!
Bhoot Khoob Vinay.
Bachapan ki choothi sei baat ko lekae bahut bada example diya hai aapne. JIn baaton ko hum andekha kar dete hai unko aapnse bahut hi aachi tarah se likha hai....
Bahut khoob.....
विनय जी एक उम्दा रचनाकार हैं |
यह रचना भी अच्छी है लेकिन आपके स्तर से नीचे लगती है | कई वर्तनी की त्रुटियाँ हैं |
आप से और अच्छे रचना की प्रतीक्षा में ...
अवनीश तिवारी
सचाई को आईना दिखाती एक खूबसूरत रचना...बहुत-बहुत बधाई!
कब जान दी, ज़िन्दगी बनाने खातिर
मानव गोस्त और सत्ता वेश्या के लिए तो
रोज ही खुदकशी करता रहा,
दोष किसका ?
बचपन में, सो जा
नहीं तो शेर आ जाएगा से, खंडित विश्वास को
कई हमसफ़र मिलते चले गए और
इस देह मंदिर से मूल्य रिसते चले गए.
जब आस्था और विश्वास ही
मुर्दा हो तो,
इंसान ज़िंदा नहीं होता,
जिस्मों में पानी और आग
न हो तो ,
स्पंदन पैदा नहीं होता
लाशो के समागम से
जीवन पैदा नहीं होता .
very nice .................
bahut achchi prastuti,par kaafi dinon ke baad ???????????
विनय जी
बहुत खूबसूरत रचना
....
बचपन में, सो जा
नहीं तो शेर आ जाएगा से, खंडित विश्वास को
कई हमसफ़र मिलते चले गए और
इस देह मंदिर से मूल्य रिसते चले गए.
....बेहतरीन...
bharat bhushan
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