गमों को जीत मैं आँसू छुपाता .
खुशी के गीत हूँ हर पल सुनाता .
किया है खून मेरा तो उसी ने,
जिसे था मैं कभी अपना बताता .
हुआ मुश्किल है लेना सांस भी अब,
हवा में ज़हर देखो वह मिलाता .
किसे दूँ दोष यह गलती मेरी ही,
सभी को क्यों मैं हूँ अपना बनाता .
जिसे दर्जा दिया मैने पिता का,
वही था आग में मुझको जलाता .
जिसे अपना समझ दिल में बिठाया,
मजे लेकर कलेजा भून खाता .
बनाये क्यूँ भला हैवान उसने,
मजे क्या खेल के लेता विधाता .
कवि कुलवंत सिंह
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
हुआ मुश्किल है लेना सांस भी अब,
हवा में ज़हर देखो वह मिलाता .
सारे शेर बहुत सुंदर - एक से बढ़कर एक - बहुत प्यारी भावपूर्ण ग़ज़ल
मेरे साथियो - मै इस पत्रिका की पाठिका थी और कवयित्री भी , लोगों के सामने अलग चेहरा रखने वाले इस तरह के लोगो से सावधान रखिये यही कहूंगी
अनाम
बनाये क्यूँ भला हैवान उसने,
मजे क्या खेल के लेता विधाता .
सुंदर ग़ज़ल के लिए कवि को बधाई.
फिर से अपनी टिप्पणी इसलिए पोस्ट कर रहा हूँ कि इस पत्रिका की अनाम पाठिका और कवयित्री कृपया स्पष्ट करें कि वो क्या कहना चाहती हैं, लोगों के सामने अलग चेहरा रखने वाले इस तरह के लोग कौन हैं?
किया है खून मेरा तो उसी ने,
जिसे था मैं कभी अपना बताता .
हुआ मुश्किल है लेना सांस भी अब,
हवा में ज़हर देखो वह मिलाता . वाह वाह हर शेर लाजवाब बना है कवि कुलवन्त जी को बहुत बहुत बधाई । आपका धन्यवाद्
acchaa kahane ka rivaj hai hum kah dete hain lekin
जिसे दर्जा दिया मैने पिता का,
वही था आग में मुझको जलाता .
जिसे अपना समझ दिल में बिठाया,
मजे लेकर कलेजा भून खाता .
ye panktiyan ghazal ki komalta par aaghaat de rhin hain kavi ji
anoni ji
kam se kam jinki aur aapka ishaara hai unke chehare to hain aap to....jane kya hain .hain bhi ya nhin yah bhi sochiye aap khud
गमों को जीत मैं आँसू छुपाता .
खुशी के गीत हूँ हर पल सुनाता
yeh khoobsoorat bhav hai aisibaten likhen-sarthk
किसे दूँ दोष यह गलती मेरी ही,
सभी को क्यों मैं हूँ अपना बनाता .
bahut sunder
हुआ मुश्किल है लेना सांस भी अब,
हवा में ज़हर देखो वह मिलाता .
lajawab
saader
rachana
ghazal acchi lagi......
sumit bhardwaj
किया है खून मेरा तो उसी ने,
जिसे था मैं कभी अपना बताता .
आज के दौर में अपनों से ज़्यादा धोखा खाते है हम..बढ़िया रचना..धन्यवाद जी!!
बहुत ही सुन्दर रचना कुलवंत जी बहुत बहुत बधाई
विमल कुमार हेडा
आप सभी का बहुत शुक्रिया...
दर्द था दिल मै वो घुमड कर बरसा,
शब्द कि बुन्दे लिये भावो का अन्धड बरसा
अपनो के धोके रिसते है जख्म बन कर
किया है खून मेरा तो उसी ने,
जिसे था मैं कभी अपना बताता
बहुत अच्छी रचना हे........बधाई
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