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Saturday, October 11, 2008

क्षणिकाओं की रचना...


आज हम प्रकाशित कर रहे हैं तीसरे पायदान की कविता। कवयित्री हैं रचना श्रीवास्तव, जिन्हें हम पहले भी कईं बार पढ़ चुके हैं। ये पहले भी प्रतियोगिता में प्रथम १० में स्थान बनाने में कामयाब रही हैं। जुलाई माह की प्रतियोगिता में आठवें नम्बर पर रहीं और अगस्त में १४वें। और इस बार इन्हें यूनिपाठिका का सम्मान तो मिला ही है। आइये इन्हें फिर पढ़ते हैं इस बार क्षणिकाओं में।

दुआ
-----------
सूखे से तरसी आंखों ने
मांगी दुआ वर्षा की
पानी बरसा और बरसता ही चलागया
सब कुछ बहा गया
कुछ यूँ कबूल होती है
दुआ गरीबों की


बटवारा
---------------
घर, धन, वृद्ध आश्रम के खर्चे
यहाँ तक कि कुत्ते भी बटें
पर पिता के त्याग ,प्यार
माँ के आँसू ,दूध ,और पीडा
का कुछ मोल न लगा
क्योंकि पुरानी,घिसी चीजों का
कुछ मोल नही होता


शोर
---------

चहुँ और है शोर बहुत
भीतर बाहा हर ओर
तभी सुनाई नही देती
हिमखंड के पिघलने की आवाज़
गाँव के सूखे कुंए की पुकार
धरती में नीचे जाते
जल स्तर की चीख

समीकरण
--------------------
माँ पिता पालते हैं
चार बच्चे खुशी से
पर चार बच्चों पे
माँ पिता भारी है
ये कलयुग का समीकरण है


विस्फोट
---------------

दर्द चीखा
लहू बहा
शहर काँपा
दुनिया के नक्शे पे
भारत थरथराया
राम हुआ शर्मिंदा
रहीम ने सर झुकाया

--------------------

लाशों की भीड़ में
खड़ी
माँ भारती रो रही
चिता जलाऊँ किस के लिए
बनाऊँ कब्र किसकी
मानव मानवता
धर्म धार्मिकता
देश देशभक्ति
है कौन यहाँ
हुई हो न मौत जिसकी



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- 8.5, 3.5, 5, 6, 4, 7.3
औसत अंक- 5.7166
स्थान- नौवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- 7, 6.8, 5.7166 (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- 6.50555
स्थान- तीसरा


पुरस्कार- कवि शशिकांत सदैव की ओर से उनकी काव्य-पस्तक 'औरत की कुछ अनकही'

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20 कविताप्रेमियों का कहना है :

शोभा का कहना है कि -

सूखे से तरसी आंखों ने
मांगी दुआ वर्षा की
पानी बरसा और बरसता ही चलागया
सब कुछ बहा गया
कुछ यूँ कबूल होती है
दुआ गरीबों की
वाह! बहुत सुंदर लिखा है.

Nikhil का कहना है कि -

"माँ पिता पालते हैं
चार बच्चे खुशी से
पर चार बच्चों पे
माँ पिता भारी है
ये कलयुग का समीकरण है"

"सूखे से तरसी आंखों ने
मांगी दुआ वर्षा की
पानी बरसा और बरसता ही चलागया
सब कुछ बहा गया
कुछ यूँ कबूल होती है
दुआ गरीबों की"

ये दोनों तो बेहद अच्छी हैं...बाकी भी बहुत पसंद आयीं.....अच्छा निर्णय...

Unknown का कहना है कि -

रचना जी, आपको तीसरा स्थान प्राप्त करने हेतु हार्दिक बधाई. परन्तु आपकी कविता किसी स्थान विशेष प्राप्ति की आकांशा से बहुत ऊपर की रचना है. आपकी प्रत्येक क्षणिका दिल को छू जाती है.

दीपाली का कहना है कि -

(1)
सूखे से तरसी आंखों ने
मांगी दुआ वर्षा की
पानी बरसा और बरसता ही चलागया
सब कुछ बहा गया
कुछ यूँ कबूल होती है
दुआ गरीबों की
(2)
चहुँ और है शोर बहुत
भीतर बाहा हर ओर
तभी सुनाई नही देती
हिमखंड के पिघलने की आवाज़
गाँव के सूखे कुंए की पुकार
धरती में नीचे जाते
जल स्तर की चीख
(3)
माँ पिता पालते हैं
चार बच्चे खुशी से
पर चार बच्चों पे
माँ पिता भारी है
ये कलयुग का समीकरण है

हर एक रचना बहुत उच्च स्तर की है.ये तीन बहुत पसंद आई.हर एक पंक्ति हृदयस्पर्शी है.

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

सूखे से तरसी आंखों ने
मांगी दुआ वर्षा की
पानी बरसा और बरसता ही चलागया
सब कुछ बहा गया
कुछ यूँ कबूल होती है
दुआ गरीबों की..

रचना जी.. एक एक क्षणिका ने दिल को छुई है...

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

चहुँ और है शोर बहुत
भीतर बाहा हर ओर
तभी सुनाई नही देती
हिमखंड के पिघलने की आवाज़
गाँव के सूखे कुंए की पुकार
धरती में नीचे जाते
जल स्तर की चीख
.
रचना जी,
बहुत ही अच्छा लिखा है |
परमार्थी सोच में व्यक्तिगत दर्द से कही अधिक वजन होता है
सादर,
विनय

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

इन्हें पढ़कर लगता है कि शायद आपने क्षणिकाएँ लिखने में पहला कदम बढ़ाया है। अगर सच है तप जिस तरह से कथ्य ने प्रभावित किया है, आपसे बहुत धारदार क्षणिकाओं की उम्मीद की जा सकती है।

Unknown का कहना है कि -

समीकरण
--------------------
माँ पिता पालते हैं
चार बच्चे खुशी से
पर चार बच्चों पे
माँ पिता भारी है
ये कलयुग का समीकरण है

बटवारा
---------------
घर, धन, वृद्ध आश्रम के खर्चे
यहाँ तक कि कुत्ते भी बटें
पर पिता के त्याग ,प्यार
माँ के आँसू ,दूध ,और पीडा
का कुछ मोल न लगा
क्योंकि पुरानी,घिसी चीजों का
कुछ मोल नही होता

ये दोनो ज्यादा पसंद आयी

सुमित भारद्वाज

Unknown का कहना है कि -

समीकरण
--------------------
माँ पिता पालते हैं
चार बच्चे खुशी से
पर चार बच्चों पे
माँ पिता भारी है
ये कलयुग का समीकरण है

बटवारा
---------------
घर, धन, वृद्ध आश्रम के खर्चे
यहाँ तक कि कुत्ते भी बटें
पर पिता के त्याग ,प्यार
माँ के आँसू ,दूध ,और पीडा
का कुछ मोल न लगा
क्योंकि पुरानी,घिसी चीजों का
कुछ मोल नही होता

ये दोनो ज्यादा पसंद आयी

सुमित भारद्वाज

Anonymous का कहना है कि -

आप सभी के स्नेह भरे शब्दों को पढ़ के आँख नम हो गई .आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद .
आप सभी को देखा नही सुना नही पर एक रिश्ता सा लगता है आप अपनी राय और अपना स्नेह इसी तरह बनायें रखियेगा यही विनती है
सादर
रचना

plt08 का कहना है कि -

rachna aapki rachna sach mein bahut gahri hai, pad kar laga ke sabhi ko use padhna chahiye. shayad kisi ko yeh mehsoos ho ke ham aur hamaara desh kahan se kahan ja rahe hain.
"
विस्फोट
---------------

दर्द चीखा
लहू बहा
शहर काँपा
दुनिया के नक्शे पे
भारत थरथराया
राम हुआ शर्मिंदा
रहीम ने सर झुकाया

--------------------

लाशों की भीड़ में
खड़ी
माँ भारती रो रही
चिता जलाऊँ किस के लिए
बनाऊँ कब्र किसकी
मानव मानवता
धर्म धार्मिकता
देश देशभक्ति
है कौन यहाँ
हुई हो न मौत जिसकी"
in aakhri panktiyon ne sach mein man ko choo liya.
Aapko babhut bahut badhai is safalta par aur aap aur bhi aage badhein aisi kaamna hai
Preetika

Anonymous का कहना है कि -

rachna ji ek ek line ek ek shabd anmol hai .mene to kai baar padha hai.pr lagta hai abhi aur na jane kitni baar padhunga
mahesh

Neeru का कहना है कि -

I was not aware of Rachna's this talent. She is a good person by heart thatswhy she understands feelings well and can express in beautiful words. She did marvelous job in these poems especially in dua, sammeekaran and batwaara.
keep it up Rachna

Anonymous का कहना है कि -

सिर्फ़ चार पंक्तियों मैं जिस सुन्दरता से माँ बाप का दुःख और उनका अकेलापन चित्रित हुआ है मैं नही समझता मैंने कभी ऐसा पढ़ा है. समीकरण, दुआ और बटवारा जैसी सुंदर रचनाओं के लिए रचना को बधाई और साथ ही मेरी शुभकामनाएं आगे और सुंदर लिखने के लिए.

अविनाश

Anonymous का कहना है कि -

माँ पिता पालते हैं
चार बच्चे खुशी से
पर चार बच्चों पे
माँ पिता भारी है
ये कलयुग का समीकरण है"
निश्चय ही बेहतरीन.
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

मुझे मेरे दोस्त ने हिंद युग्म का लिंक भेजा .तो मेने आज आप की कवितायें पढ़ी कितना सुंदर लिखा है वाह ...एक एक कविता गागर में सागर समेटे हुए है .दिल को छूने वाली भावनात्मक कवितायें .आप को बधाई देता हूँ और अपने मित्र को धन्यवाद .
गिरीश

Anonymous का कहना है कि -

Very Good Work. Ek Ek baat ma bada sara gyan. I admire your "Rachna"
Rachna Ji ( Shipra Majji)

Unknown का कहना है कि -

दर्द चीखा
लहू बहा
शहर काँपा
दुनिया के नक्शे पे
भारत थरथराया
राम हुआ शर्मिंदा
रहीम ने सर झुकाया
sari hi shadikayen bahut achchi hain, vishesh roop se yeh. Aapke shabdon mein jadoo hai rachna ji,...bahut achche.

Riya Sharma का कहना है कि -

Sabhi tippaniyan bahut hi bhavpoorn hain...Sunder prayaas hai Rachna..likhti rahin

Unknown का कहना है कि -

bhut badiya sahi ho.......
ese hi aur kavitae likhte rehna......

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