1 आरक्षण
अमावस्या से पंचमी:ग़रीबी रेखा
पंचमी से दशमी:मध्यम वर्ग
दशमी से चौदस:उच्च वर्ग
और पूनम के लिए
टाटा,बिड़ला,अंबानी|
इस तरह तय हुआ..
चाँद का आरक्षण!
2 बढ़ता चाँद
उफ्फ!
ये फूले गाल ..
चेहरे पर बढ़ती उजलाहट
और भरा हुआ तन!
पूनम को विदा होगी|
शादी होने ही वाली है
चाँद की!
3 घटता चाँद
रोज़ हारता है उसे
बेचता है थोड़ा-थोड़ा
जुआरी है
चाँद का पति!
4 काजल
उसके फूटकर रोने से
बह जाता है काजल!
काला हो जाता है तन
लेकिन विज्ञान
कुछ और ही बताता है
अमावस का कारण!
5 तारे
प्यार की कब्र है चाँद..
बिखरे हैं उस पर
तारों के अनगिनत फूल!
आज..
एक चमकीले तारे में दिखा मुझे
वो फूलों सा चेहरा!
6 धूल
चलना ज़िद है या मजबूरी
नहीं जानता!
लेकिन इस पंखे की
पंखुड़ियों पर
जमी है..
बेहिसाब धूल!
7 बात
सुनो..
मैं जब मर जाऊँगा
तब तो मेरी बात मानोगी ना ?
अपनी कब्र पर
खुदवा दूँगा मैं
"यहाँ रोना मना है!"
8 बेवफा
जो वफ़ा का वादा ही ना करे
उसे बेवफा नही कहते
काश..
तुम बेवफा होतीं!
9 ग़रीबी
उसने कहा था
तुम्हारे आँसू
मोतियों-से कीमती हैं!
कम्बख़्त..
ग़रीबी दूर कर गयी!
10 ख़ुदकुशी
पागल था!
बटुआ खो गया
तो ख़ुदकुशी कर ली
कहते हैं.
उसमें किसी की
तस्वीर रखी थी!
11 मामला
पुराने यादों से
कल तबीयत बिगड़ गयी!
मामला दर्ज़ है
उपभोक्ता फोरम में
इल्ज़ाम है..
नहीं बताई उसने
यादों की एक्सपायरी डेट!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
15 कविताप्रेमियों का कहना है :
विपुल जी आप की "क्षणिकाएँ" बहत ही सुन्दर लगी । बढिया लिखा आपने । बधाई
पागल था!
बटुआ खो गया
तो ख़ुदकुशी कर ली
कहते हैं.
उसमें किसी की
तस्वीर रखी थी!
....
बहुत बढ़िया लिखा है.
"आरक्षण,बढ़ता चाँद,घटता चाँद,
काजल"ये तो बहुत ही अच्छे है.क्या सोच है ....
उत्कृष्ट क्षणिकाएं, विपुल जी. धन्यवाद!
बेहतरीन क्षणिकाएँ
पढ़कर तबियत मस्त हो गई
लगता है आज का दिन अच्छा है।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
चाँद शृंखला की क्षणिकाएँ और ग्यारहवीं क्षणिका पसंद आई। पहले से तो कलम में बहुत निखार आया है। अच्छे संकेत हैं।
रोज़ हारता है उसे
बेचता है थोड़ा-थोड़ा
जुआरी है
चाँद का पति!
-------------
पागल था!
बटुआ खो गया
तो ख़ुदकुशी कर ली
कहते हैं.
उसमें किसी की
तस्वीर रखी थी!
पागल था!
बटुआ खो गया
तो ख़ुदकुशी कर ली
कहते हैं.
उसमें किसी की
तस्वीर रखी थी!
सभी बहुत अच्छी है पर ये बहुत अच्छी लगी
सादर
रचना
bahut sahi ..........good job
कुछ क्षणिकाए पसंद आयी कुछ ठीक ठीक लगी
सुमित भारद्वाज
7,8,9,10,11 पसंद आयी
बहुत बढियां विपुल पढ़ कर मज़ा अ गया. बहुत दिनों बाद तुम,हरी रचनायें पढने को मिली बहुत ही अच्छी लिखी है.
majaa aa gaya.......
sabhi uttam hain.......2-4 ati-uttam bhi hain......
badhai sweekaro
बहुत सुंदर और अर्थपूर्ण भाषा का प्रयोग किया है
1. क्षणिकायें !
विस्फोट करती हैं और फिर सन्नाटा
मुझे डर है लोग तुम्हें अराजक
ना समझ बैठें
2. कलम है या सी.एन.जी बन्दूक
धुँआ भी नही और अन्दर तक
घायल कर गयी..
रोज़ हारता है उसे
बेचता है थोड़ा-थोड़ा
जुआरी है
चाँद का पति
y achcha laga .
kshanika mahotsav chalta rahe
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)