हिंद युग्म पर शुभकामनाओं का संदेश देखकर अभिभूत हूं । गज़ल की कक्षायें प्रारंभ करने के लिये शैलेष जी सजीव जी जैसे मित्रों का दबाव लगातार रहा है । और ये दबाव स्नेह से पगा हुआ दबाव है सो ये मन को अच्छा भी लगता है । खैर जल्द ही ग़ज़ल की कक्षायें प्रारंभ होंगीं । कब ये शैलेष जी जानते हैं । आज हिंद युग्म का अनुरोध था कि मैं अपनी एक ग़ज़ल यहां लगाऊं । किन्तु मुझे जो सबसे ज्यादा पसंद है वो एक कविता है । शायद आठ साल पहले ये समर लोक में छपी थी । और सबसे मुख्य बात ये है कि इसमें प्रेम और दर्द दोनों हैं । और जहां ये दोनों होते हैं वहां सब कुछ होता है । कुछ अधिक नहीं कहना चाहता बस ये ही कहूंगा कि ये मेरे मन की कविता है । पढ़ें और बतायें
लिफ़ाफ़ा
तुमने कहा था मेरे सारे पत्रों को जला देना,
मैंने वैसा ही किया,
प्रश्न उस विश्वास का था
जिसके चलते वो पत्र लिखे गये थे
विश्वास करो,
मैंने सारे पत्र जला दिये,
केवल एक लिफ़ाफ़ा बचा लिया है
तुम्हारे पहले पत्र का लिफ़ाफ़ा
इस पर लिखा है मेरा नाम
जो शायद तुमने पहली बार लिखा था
शायद एक दो बार
तुम्हारी उंगालियां लरजीं भी थीं
इसीलिये मेरे नाम के
एक दो अक्षर कुछ टेढ़े मेढ़े हैं
समय ने इस लिफ़ाफ़े में
काग़ज़ी सौंधी गंध भर दी है
यह लिफ़ाफ़ा
जो तुम्हें मेरे जीवन में लाया था
इसे बचाकर
मैँने तुम्हारे विश्वास को तोड़ा नहीं है
तुमने तो पत्र को जलाने को कहा था
यह तो लिफ़ाफ़ा है
इसे बचाकर शायद मैंने बचाया है
जीवन में तुम्हारे पुन: लौट आने की संभावनाओं को
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
pankaj ji,aapki choti si kavita ne rula diya. kavi to vaise bhi bhavuk hote hain.kavita bilkul dil ki gahrai se nikali hai. bdhai. Harkirat 'Haqeer' from Guwahati.
यह तो लिफ़ाफ़ा है
इसे बचाकर शायद मैंने बचाया है
जीवन में तुम्हारे पुन: लौट आने की संभावनाओं को
बहुत खूब पंकज जी !
ek bar fir....''janam din aur pyar ke pehle khat ka lifafa mubarak''
प्रश्न उस विश्वास का था
हर मधुर निश्वास का था
समय की दी हुयी गंध और साथ ढेर सारी स्मृति
लिफाफा रखेगा जीवंत और न होने देगा विस्मृति
जन्मदिन की शुभकामनायें
गुरू जी,
सबसे पहले तो जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाए और गज़ल की कक्षाये पुन शुरू करने के लिए धन्यवाद
आपकी दी गई शिक्षा से मैने भी गज़ल लिखनी सीख ली है अभी बहर पर पकड नही है पर काफिया और रदीफ निभा लेता हूँ
लिफाफा कविता दिल को छू गयी
सुमित भारद्वाज
पंकज जी, जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें।
ग़ज़ल की कक्षाओं का इंतज़ार रहेगा।
वैसे आप समय समय पर अपनी लिफाफा जैसी कवितायें भी प्रकाशित करते रहें..
आपकी ये पोस्ट भी आपके पुन: लौट आने की संभावनाओं को पुख़्ता करती है....
बधाई हो....
निखिल
जन्मदिन की भी ढ़ेरों बधाई....
पंकज सुबीर जी-
आपकी कविता बेहतरीन है। दिल से नकली है-----दिल में समा जाना चाहती है---खास कर इन पंक्तियों ने हृदय को छू लिया---
-शायद एक दो बार
तुम्हारी उंगलियाँ लरजीं भी थीं
इसीलिए मेरे नाम के
एक दो अक्षर कुछ टेढ़े-मेड़े हैं----
इस कविता को पढ़कर एक गीत याद की कुछ लाइने याद आयीं -----
कर दिये लो आज गंगा में विसर्जित
सब तुम्हारे पत्र सारे चित्र तुम निश्चिंत रहना---
---अनुरोध है कि गज़ल के साथ-साथ अपनी कविता भी प्रकाशित कराते रहें--
---जन्म दिन की ढेर सारी बधाइयाँ।
---देवेन्द्र पाण्डेय।
इसे बचाकर शायद मैंने बचाया है
जीवन में तुम्हारे पुन: लौट आने की संभावनाओं को
बढ़िया कविता..
जन्मदिन की ढेरो सुभकामनाये.
अति सुंदर, सुबीर जी!
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाए!
उम्मीद का एक तिनका भी बचा लिया जाय तो भी बहुत है। आपकी कविता ने उसे सिद्ध भी कर दिया। कोटि-कोटि बार सुस्वागतम् कहूँगा। जन्मदिन की ढेरों बधाइयाँ।
कल रात ही इंटरनेट के संपर्क में आया और आपकी पोस्ट पढ़कर मन मयूर नाच उठा। ग़ज़ल लिखना सिखने वाले भी मेरी तरह खुश होंगे।
जन्मदिन की शुभकामनायें !
जन्म-दिवस की हार्द्कि बधाई , संग-हीं-संग खुशखबरी देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
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