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Saturday, October 11, 2008

रिफ्यूजी


आधी रात
ट्रेन से उतरकर
दबे पाँव
पसर जाती है प्लेटफॉर्म पर
पूरी की पूरी सभ्यता।

अलसुबह
नीम के पेंड़ से दातून तोड़ते वक्त
चौंककर जागता है---बुधई !
मन ही मन बुदबदाता है-
"कहाँ से आय गयन ई डेरा-तम्बू------
गरीब लागत हैन बेचारे।"

धीरे-धीरे
सहिष्णुता के साए तले
दूध में पानी की तरह
घुलने लगते हैं
रिफ्यूजी

फिर नहीं रह जाते ये विदेशी
बन जाते हैं
पूरे के पूरे स्वदेशी।

समाजशास्त्र कहता है-
बूढ़ी सभ्यता
धीरे-धीरे बन जाती है
देश की संस्कृति।

संस्कृति का ऐसा विस्तार
परिष्कृत रूप
सिर्फ भारत में ही देखने को मिलता है।

इसे यों ही स्वीकार करने के बजाय
अच्छा है खोल दें
जगंह-जगंह
स्वागतद्वार
भूखी नंगी मानवता के लिए

क्योंकि मानवता के नाम पर
धर्म के नाम पर
इन्हें अंगिकृत करने के लिए
दोनो बाहें फैलाए
खड़े हैं
बहुत से बुध्दिजीवी--------!

व्यर्थ ही देश को
सीमाओं में बांधने से भी
क्या लाभ ?

देवेंद्र कुमार पांडेय

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

neelam का कहना है कि -

बड़ी ही ज्वलंत समस्या पर गंभीर चोट ,आपकी कविता के माध्यम से
बेहतरीन है |

seema gupta का कहना है कि -

व्यर्थ ही देश को
सीमाओं में बांधने से भी
क्या लाभ ?
" KITNA SHEE LIKHA HAI AAPNE, BHUT SUNDER ABHEEVYKTEE'

REGARDS

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

क्योंकि मानवता के नाम पर
धर्म के नाम पर
इन्हें अंगिकृत करने के लिए
दोनो बाहें फैलाए
खड़े हैं
बहुत से बुध्दिजीवी--------!

व्यर्थ ही देश को
सीमाओं में बांधने से भी
क्या लाभ ?
आपने सत्य ही लिखा है केवल बुद्धिजीवी ही अव्यवहारिक बातें करके देश की समस्याओं को बढा सकता है.

Harihar का कहना है कि -

धीरे-धीरे
सहिष्णुता के साए तले
दूध में पानी की तरह
घुलने लगते हैं
रिफ्यूजी

बिल्कुल सच बहुत खूब देवेन्द्र जी

Nikhil का कहना है कि -

अच्छी कविता है...आप लगातार अच्छा लिखते हैं...आपकी लोकशैली भी पसंद आती है..
निखिल

दीपाली का कहना है कि -

बहुत अच्छा और सटीक लिखा है अपने.

Smart Indian का कहना है कि -

बहुत सुंदर, सटीक और सामयिक विचार!

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

कविता के बीच में रसतत्व गायब हो जाता है। अच्छा प्रयास ज़रूर कहूँगा।

अभिन्न का कहना है कि -

कविता के माध्यम से बहुत बड़ी समस्या को उठाया है ,
व्यर्थ ही देश को
सीमाओं में बांधने से भी
क्या लाभ ?
कह कर आपने देश चलाने वाली औच्छी और दोगली राजनीतिक सोच पर प्रहार किया है

Anonymous का कहना है कि -

sunder prayaas..safal rahe

Ria Sharma का कहना है कि -

sunder prayaas

Anonymous का कहना है कि -

बहुत ही धारदार रचना.
आलोक सिंह "साहिल"

विश्व दीपक का कहना है कि -

बहुत हीं बड़ी बात बड़े हीं सरल शब्दों में कही गई है।यह शैली पसंद आई।

बधाई स्वीकारें।

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