काव्य-पल्लवन सामूहिक कविता-लेखन
विषय - ईद/रमजान/भाईचारा
अंक - अठारह
माह - सितम्बर २००८
काव्य-पल्लवन का अठारहवाँ अंक लेकर हम प्रस्तुत हैं। इस बार हमने विषय को 'ईद/रमज़ान/भाईचारा' को समर्पित किया है। पिछले महीने इस प्रस्ताव पर लम्बी चर्चा हुई थी कि इसे विषय विशेष से बदलकर विधा विशेष कर देना चाहिए, इस चर्चा में लम्बा समय बीता और निर्णय लेने तक कई तारीखें बदल गई थीं। समय कम दिया गया, फिर भी हमें १२ कविताएँ प्राप्त हो गईं। और दो कविताएँ (एक जय कुमार की और दूसरी ) भी प्राप्त हुई थीं, लेकिन उसमें लिखे शब्दों को समझ पाना कठिन था। रचनाकारों को इस बाबत सम्पर्क किया गया, लेकिन हमें उत्तर नहीं मिला, इसलिए हम उन्हें शामिल नहीं कर रहे है।
सबसे अच्छी बात है कि सभी कलमकारों ने सौहार्द और शांति का पैगाम दिया है। इनका पैगाम दुनिया को पहुँचे, हमारी तो यही कामना है।
आपको यह प्रयास कैसा लग रहा है?-टिप्पणी द्वारा अवश्य बतावें।
*** प्रतिभागी ***
| संजीव वर्मा "सलिल" | विवेक रंजन श्रीवास्तव | प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव | सविता दत्ता | महेश कुमार वर्मा | सुरेन्द्र कुमार 'अभिन्न ' | बसंत लाल दास | राजीव सारस्वत | शोभा महेंद्रू | सुनील कुमार 'सोनू' |पंखुड़ी कुमारी |
~~~अपने विचार, अपनी टिप्पणी दीजिए~~~
ईद हो हर दिन हमारा,
दिवाली हर रात हो.
दिल को दिल से जीत लें हम,
नहीं दिल की मात हो.....
भूलकर शिकवे शिकायत,
आओ हम मिल लें गले.
स्नेह सलिला में नहायें,
सुबह से संझा ढले.
आंख तेरी ख्वाब मेरे,
खुशी की बारात हो.....
दर्द मुझको हो तो तेरी
आंख से आंसू बहे
मेरे लब पर गजल
तेरे अधर पर दोहा रहे
जय कहें जम्हूरियत की
खुदी वह हालात हो.....
छोड दें फिरकापरस्ती
तोड नफरत की दिवाल.
दूध पानी की तरह हों एक
ऊंचा रहे भाल.
"सलिल" की शहनाई,
सबकी खुशी के नग्मात हो.....
खुशियों के त्यौहार
ईद दिवाली ओणम क्रिसमस
खुशियों के त्यौहार.
लगकर गले बधाई दें लें
झूमें नाचें यार.
हम सब भारत मां के बेटे
सबके सुख दुख एक.
सभी सुखी हों यही मनाते,
तजें न अपनी टेक.
भाईचारा मजहब अपना
मानवता ईमान.
आंसू पोछें हर पीडित के
बन सच्चे इंसान.
नूर खुदाई सबमें देखा
कोई दिखा न गैर.
हाथ जोडकर रब से मांगें
सबकी रखना खैर
.
दहशतगर्दी से लडना है
हर इंसां का फर्ज.
बहा पसीना चुका सकेंगे
भारत मां का कर्ज
गुझिया सिंवई खिकायें खायें
हों साझे त्यौहार.
अंतर से अंतर का अंतर
मिटा लुटायें प्यार.
--संजीव वर्मा "सलिल"
आसमां में गुफ्तगू है चल रही ,
चाँद की आये खबर तो ईद हुई
अम्मी बनातीं थीं सिंवईयाँ दूध में ,
स्वाद वह याद आया लो ईद हुई
नमाज हो मन से अदा,
जकात भी दिल से बँटे,
मजहब महज किताब नहीं
पूरे हुये रमजान के रोजों के दिन ,
सौगात जो खुदा की, वो ईद हुई
आतंक होता अंधा जुनूनी बेइंतिहाँ ,
मकसद है क्या इसका भला
गांधी जयंती ईद है इस दफा ,
जो अंत हो आतंक का तो ईद हुई
नजाकत नफासत और तहजीब की
पहचान है मुसलमानी जमात,
आतंक का नाम अब और मुस्लिम न हो,
फैले रहमत तो ईद हुई
कुरान को समझें,
समझें जिहाद का मतलब,
ईद का पैगाम है मोहब्बत
दिल मिलें,भूल कर शिकवे गिले ,
गले रस्मी भर नहीं ,तो ईद हुई
रौनक बाजारों की , मन का उल्लास ,
नये कपड़े ,और छुट्टी पढ़ाई की
उम्मीद से और ज्यादा मिले ,
ईदी बचपन , और बड़प्पन को ईद हुई
--विवेक रंजन श्रीवास्तव
ईद के चाँद की खोज में हर बरस ,
दिखती दुनियाँ बराबर ये बेजार है
बाँटने को मगर सब पे अपनी खुशी,
कम ही दिखता कहीं कोई तैयार है
ईद दौलत नहीं ,कोई दिखावा नहीं ,
ईद जज्बा है दिल का ,खुशी की घड़ी
रस्म कोरी नहीं ,जो कि केवल निभे ,
ईद का दिल से गहरा सरोकार है !! १!!
अपने को औरों को और कुदरत को भी ,
समझने को खुदा के ये फरमान है
है मुबारक घड़ी ,करने एहसास ये -
रिश्ता है हरेक का , हरेक इंसान से
है गुँथीं साथ सबकी यहाँ जिंदगी ,
सबका मिल जुल के रहना है लाजिम यहाँ
सबके ही मेल से दुनियाँ रंगीन है ,
प्यार से खूबसूरत ये संसार है !!२!!
मोहब्बत, आदमीयत ,
मेल मिल्लत ही तो सिखाते हैं सभी मजहब संसार में
हो अमीरी, गरीबी या कि मुफलिसी ,
कोई झुलसे न नफरत के अंगार में
सिर्फ घर-गाँव -शहरों ही तक में नहीं ,
देश दुनियां में खुशियों की खुश्बू बसे
है खुदा से दुआ उसे सदबुद्धि दें,
जो जहां भी कहीं कोई गुनहगार है !!३!!
ईद सबको खुशी से गले से लगा,
सिखाती बाँटना आपसी प्यार है
है मसर्रत की पुरनूर ऐसी घड़ी,
जिसको दिल से मनाने की दरकार है
दी खुदा ने मोहब्बत की नेमत मगर,
आदमी भूल नफरत रहा बाँटता
राह ईमान की चलने का वायदा,
खुद से करने का ईद एक तेवहार है !!४!!
जो भी कुछ है यहां सब खुदा का दिया,
वह है सबका किसी एक का है नहीं
बस जरूरत है ले सब खुशी से जियें,
सभी हिल मिल जहाँ पर भी हों जो कहीं
खुदा सबका है सब पर मेहरबांन है,
जो भी खुदगर्ज है वह ही बेईमान है
भाईचारा बढ़े औ मोहब्बत पले ,
ईद का यही पैगाम , इसरार है !!५!!
--प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव
भारत वर्ष में हम भारतीय
सम्भवतः सभी पर्व मनाते हैं।
धर्म निरपेक्षता पहचान इसकी
धरती आनन्द मग्न सदा रहती
अनेक त्यौहार कभी कभार
माह दो माह के भीतर-भीतर
हर धर्म में मनाए जाते हैं।
कभी ईद,दिवाली इकट्ठे हुए
कभी आनन्द चौदस और
गणेश-चतुर्दशी
पोंगल और लोहड़ी हैं
कभी गुरू पर्व क्रिसमस जुड़ जाते हैं।
श्रृंखला बद्ध तरीके से जब
हम बड़े-बड़े उत्सव मनाते हैं।
फूलों की बौछार आसमाँ करते
हृदय आनन्द विभोर हो जाते हैं।
हमारी राष्टीय एकता और अखंडता
इसी सहारे जीवित है
सब धर्म यहाँ उपस्थित हैं
सब धर्म की राह दिखाते हैं
भारत वर्ष को शत-शत नमन
हन तभी भारतीय कहलाते हैं।
--सविता दत्ता
है रमजान प्रेम-मुहब्बत का महीना।
है रमजान मज़हब याद दिलाने का महीना॥
है रमजान ज़श्न मनाने का महीना।
है रमजान ज़श्न मनाने का महीना॥
पाक रखेंगे इसे अल्लाह के नाम।
नहीं करेंगे हम इसे बदनाम॥
है प्रेम का महीना रमजान।
है प्रेम का महीना रमजान॥
आया है ईद प्रेम-भाईचारा का सौगात लेकर।
मनाएंगे इसे वैर व कटुता का भाव भुलाकर॥
मिलजुल मनाएंगे ईद।
नहीं करेंगे मांस खाने की जिद॥
तोड़ेंगे हिंसा का रश्म।
मनाएंगे मिलकर ज़श्न॥
हम सब लें आज ये कसम।
हम सब लें आज ये कसम॥
--महेश कुमार वर्मा
अबके ईद मनाऊँ कैसे
जश्ने ईद मनाऊँ कैसे
दहल गए है कलेजे सब के ,
शोर धमाकों का सुन सुन कर
हैरान हूँ मै क्यों नही मारता,
ये बम हिन्दुओं को चुन चुन कर
वहाँ मुस्लमान भी मरते है
ये बम भेदभाव नही करते है
शोर धमाकों का गूँज रहा है
पटाखे फिर मै चलाऊँ कैसे
अबके ईद मनाऊँ कैसे
जश्ने ईद मनाऊँ कैसे
गले लगो गर लग सको
भुलाके मजहब ईमान सभी
न हिंदू कहो न मुस्लिम कहो
बन जाओ जरा इंसान सभी
सब भारत माँ की संतान है
ये देश तो बड़ा महान है
सदभावना की अजान सुनाऊँ कैसे
अबके ईद मनाऊँ कैसे
जश्ने ईद मनाऊँ कैसे
--सुरेन्द्र कुमार 'अभिन्न'
रमजाने-पैगाम याद रखना।
हर वक्त हो नमाज याद रखना॥
आयतें उतरी जमीं पे जिस रोज,
अनवरे-इलाही आयी उस रोज;
इनायत खुदा की न कभी भूलना।
हर वक्त हो नमाज याद रखना॥
खयानत का ख्याल तू दिल से निकाल दे,
खुदी को मिटा खुदाई में तस्लीम कर दे;
क़यामत के कहर में भी ये कलाम न छोड़ना।
हर वक्त हो नमाज याद रखना॥
अदावत का गुल ना खिल पाये कभी,
हबीबों की हस्ती ना हिल पाये कभी;
जुर्मों की जहाँ से सदा परहेज करना।
हर वक्त हो नमाज याद रखना॥
पीर-फकीर, मौलाना हुए इसी राह पे चलकर,
उतारा आयतों को दिल में जुल्मों-सितम सहकर;
हर मर्ज की दवा है, वल्लाह , ना भूलना।
हर वक्त हो नमाज याद रखना॥
हम हैं नूर खुदा के, सबसे प्यारे हैं खुदा के,
मोमिनों अहिंसक बनो, कह गए पैगम्बर सबसे;
जख्म ना पाये कोई जीव हमसे, सदा रहम करना।
हर वक्त हो नमाज याद रखना॥
--बसंत लाल दास
इक नया इतिहास
अब चलो नया इतिहास लिखें हम
स्नेह, मिलन के अध्यायों का
आपस के संघर्षों की
परम्परा मिटाने का
सुख दुःख साथ निभाने का
युद्ध नहीं हो कोई अब से
सत्ता और किसानों में
द्वन्द्व नहीं हो कोई अब से
धर्म के नाम पर आपस में
मानवता है धर्म सर्वोपरि
सबको गले लगाने का
पग पग नेह लुटाने का
अब चलो नया...
सम्प्रदायगत भावनाओं को
पैरों तले दबाना है
भ्रष्ट जनों के पुण्य कर्म को,
सिर पर नहीं बिठाना है
सबको यही सिखाना है
कि मिलकर बोझ उठाना है
समाधान हो ऐसे अपनी
राष्ट्र समाज की समस्याओं का
अब चलो नया....
--राजीव सारस्वत
भारत माँ की बगिया
रंग-बिरंगे फूलों से मुस्काती है
त्योहारों के मौसम मैं
कुछ और भी महक जाती है.
भाद्र मास आते ही
त्योहारों की बाढ़ सी आजाती है
एक ऐसी हवा चलती है
हर फूल को महका जाती है.
जन्माष्टमी,राखी, पर्व,
साथ-साथ आते हैं
और अपने साथ मैं
रमजान भी ले आते हैं
त्योहारों का साथ-साथ आना
ईश का वरदान है
ये कहती है कुदरत
सब उसी की संतान हैं
मैं रखूं रमजान
तुम नवरात्र रखना
प्रेम का प्रसाद
सब मिलकर चखना
राम को पूजो
या अल्लाह को मानो
पर माता की गोदी के
लाल न उजाडो
त्योहारों पर भी गर
हिंसा फैलाओगे
न राम मिलेगा
न अल्लाह को पाओगे
त्योहरीं ने प्यार की
डोर ये डाली है
बंध जाओ इसमें
ये बड़ी मतवाली है
एक साथ नाचो
और एक साथ गाओ
एकता की बीन बजी
एक हो जाओ
भिन्नता भुलाओ-
भिन्नता भुलाओ
--शोभा महेंद्रू
आनंद-उल्लास से भरा है पलकों का गागर
प्रेम-आश से छलका है धड़कनों का सागर
इस नज़र में उस नज़र में चाहे देखो जिस नज़र से
एक नई खुशी है एक नई है मुस्कराहट
ईद -मुबारक ईद -मुबारक सबको ईद -मुबारक!
आसमान के सुनहरी लाल-लाल किरणें
समायी हुयी है सबके मासूम चेहरे पे.
चांदनी भी कुछ कम नहीं
फलक पे दिख रही निखरी-निखरी से
ये चिड़ियों की चहचहाहट, वो पत्तों की सरसराहट
ईद -मुबारक ईद -मुबारक सबको ईद -मुबारक!
सजदे दुआओं तेरे सहज कबूल हों
रहें जिंदगी में तेरे जलज फूल हों
खुदा की असीम कृपा तेरे साथ रहे
भटकाव न आए कभी लक्ष्य पे तेरे आँख रहे
ये दुआ हमारी तरफ़ से, कही जो अब तक
ईद -मुबारक ईद -मुबारक सबको ईद -मुबारक !
-सुनील कुमार 'सोनू'
रमजान का महीना लाया
ईद की सुंदर सौगात|
सौगात को संजो लेते सब
आड़े न आता हैसियत औ हालात ||
बड़ी मुश्किल से मुझे मालूम पड़ी
ईद मनाने की ये वजह |
दिल ने कहा क्यों इन्सान
खुश नहीं हो सकता बेवजह||
गले मिलते हैं
साथ खाते हैं |
इस दिन दुश्मन को भी
गले लगाते हैं ||
पर इक दिन ही क्यों
हर दिन वैर मिट नहीं सकता |
मीठी सेवईयाँ लेने से
क्या और दिन कोई रोकता ||
कुरान का पाठ
खुदा की इबादत |
रखता जज्बों को पाक
दूर रहती बुरी आदत ||
क्या रोज इबादत से
खुदा ख़फा हो जाएगा |
रोज कुरान पढ़ने से
कोई दफा लग जाएगा ||
क्यों आपसी भाईचारा और प्यार
एक मौके की मोहताज है |
क्यों ईद का मिलाप
बस ईद के दिन की बात है ||
ये रंगीन पल, ये रौशनी
ये रौनक, ये चमक |
क्यों नही रह सकते जेहन में तब तलक
आ न जाए दूसरा ईद जब तलक ||
इस बार ईद पे
कुछ ऐसी ईदी दे दो |
जिससे गले मिला आज
उसे ताउम्र अपना कर लो ||
हर गम और रंजिश को मिटा के दे
सबको ईद की मुबारकबाद |
करे उस अल्लाह को याद
जिसकी हैं हम सब ही औलाद ||
--पंखुडी कुमारी
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
ईद दिवाली ओणम क्रिसमस
खुशियों के त्यौहार.
लगकर गले बधाई दें लें
झूमें नाचें यार.
हम सब भारत मां के बेटे
सबके सुख दुख एक.
सभी सुखी हों यही मनाते,
बहुत सुन्दर सलिल जी
आसमां में गुफ्तगू है चल रही ,
चाँद की आये खबर तो ईद हुई
अम्मी बनातीं थीं सिंवईयाँ दूध में ,
स्वाद वह याद आया लो ईद हुई
नमाज हो मन से अदा,
जकात भी दिल से बँटे,
मजहब महज किताब नहीं
विवेक रंजन जी बहुत खूब लिखा है।
हो अमीरी, गरीबी या कि मुफलिसी ,
कोई झुलसे न नफरत के अंगार में
सिर्फ घर-गाँव -शहरों ही तक में नहीं ,
देश दुनियां में खुशियों की खुश्बू बसे
है खुदा से दुआ उसे सदबुद्धि दें,
जो जहां भी कहीं कोई गुनहगार है
प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव
बहुत सुन्दर लिखा है।
भारत वर्ष में हम भारतीय
सम्भवतः सभी पर्व मनाते हैं।
धर्म निरपेक्षता पहचान इसकी
धरती आनन्द मग्न सदा रहती
अनेक त्यौहार कभी कभार
माह दो माह के भीतर-भीतर
हर धर्म में मनाए जाते हैं।
सविता दत्ता जी आपने बहुत अच्छा संदेश दिया
है।
है रमजान प्रेम-मुहब्बत का महीना।
है रमजान मज़हब याद दिलाने का महीना॥
है रमजान ज़श्न मनाने का महीना।
है रमजान ज़श्न मनाने का महीना॥
पाक रखेंगे इसे अल्लाह के नाम।
नहीं करेंगे हम इसे बदनाम॥
है प्रेम का महीना रमजान।
है प्रेम का महीना रमजान॥
महेश जी
आपने एकदम सही कहा है।
अबके ईद मनाऊँ कैसे
जश्ने ईद मनाऊँ कैसे
दहल गए है कलेजे सब के ,
शोर धमाकों का सुन सुन कर
हैरान हूँ मै क्यों नही मारता,
ये बम हिन्दुओं को चुन चुन कर
वहाँ मुस्लमान भी मरते है
सुरेन्द्र जी
आपकी रचना ने सत्य का आइना दिखा दिया।
दिल को छू गई रचना।
रमजाने-पैगाम याद रखना।
हर वक्त हो नमाज याद रखना॥
आयतें उतरी जमीं पे जिस रोज,
अनवरे-इलाही आयी उस रोज;
इनायत खुदा की न कभी भूलना।
हर वक्त हो नमाज याद रखना॥
बसन्त लाल जी
सही संदेश दिया है आपने।
सिर पर नहीं बिठाना है
सबको यही सिखाना है
कि मिलकर बोझ उठाना है
समाधान हो ऐसे अपनी
राष्ट्र समाज की समस्याओं का
अब चलो नया....
राजीव जी
आपकी सलाह मानने योग्य है।
आनंद-उल्लास से भरा है पलकों का गागर
प्रेम-आश से छलका है धड़कनों का सागर
इस नज़र में उस नज़र में चाहे देखो जिस नज़र से
एक नई खुशी है एक नई है मुस्कराहट
ईद -मुबारक ईद -मुबारक सबको ईद -मुबारक!
सुनील जी
आपने बहुत सुन्दर लिखा है।
रमजान का महीना लाया
ईद की सुंदर सौगात|
सौगात को संजो लेते सब
आड़े न आता हैसियत औ हालात ||
पंखुड़ी कुमारी जी
बहुत सुन्दर चित्र खींचा है आपने।
आंख तेरी ख्वाब मेरे,
खुशी की बारात हो.....
दर्द मुझको हो तो तेरी
आंख से आंसू बहे
मेरे लब पर गजल
तेरे अधर पर दोहा रहे
जय कहें जम्हूरियत की
खुदी वह हालात हो.....
छोड दें फिरकापरस्ती
तोड नफरत की दिवाल.
दूध पानी की तरह हों एक
संजीव वर्मा "सलिल" जी की ये लाइन अच्छी लगी
जो अंत हो आतंक का तो ईद हुई
नजाकत नफासत और तहजीब की
पहचान है मुसलमानी जमात,
आतंक का नाम अब और मुस्लिम न हो,
फैले रहमत तो ईद हुई
कुरान को समझें,
समझें जिहाद का मतलब,
विवेक रंजन श्रीवास्तव |जी ये लाइन दिल को भा गई
ईद के चाँद की खोज में हर बरस ,
दिखती दुनियाँ बराबर ये बेजार है
बाँटने को मगर सब पे अपनी खुशी,
कम ही दिखता कहीं कोई तैयार है
ईद दौलत नहीं ,कोई दिखावा नहीं ,
ईद जज्बा है दिल का ,खुशी की घड़ी
रस्म कोरी नहीं ,जो कि केवल निभे ,
bahut achchhi line
सब धर्म यहाँ उपस्थित हैं
सब धर्म की राह दिखाते हैं
भारत वर्ष को शत-शत नमन
हन तभी भारतीय कहलाते हैं।
ये पंक्तियाँ दिल को भा गई
महेश कुमार वर्मा जी की ये बात
पाक रखेंगे इसे अल्लाह के नाम।
नहीं करेंगे हम इसे बदनाम॥
है प्रेम का महीना रमजान।
है प्रेम का महीना रमजान॥
और सुरेन्द्र कुमार 'अभिन्न 'जी ki ye baat
ये बम हिन्दुओं को चुन चुन कर
वहाँ मुस्लमान भी मरते है
ये बम भेदभाव नही करते है
शोर धमाकों का गूँज रहा है
पटाखे फिर मै चलाऊँ कैसे
अबके ईद मनाऊँ कैसे
बात बहुत सही है
खयानत का ख्याल तू दिल से निकाल दे,
खुदी को मिटा खुदाई में तस्लीम कर दे;
क़यामत के कहर में भी ये कलाम न छोड़ना।
हर वक्त हो नमाज याद रखना॥
अदावत का गुल ना खिल पाये कभी,
हबीबों की हस्ती ना हिल पाये कभी;
जुर्मों की जहाँ से सदा परहेज करना।
हर वक्त हो नमाज याद रखना॥
बसंत लाल दास जी आप ने सही लिखा है
धर्म के नाम पर आपस में
मानवता है धर्म सर्वोपरि
सबको गले लगाने का
पग पग नेह लुटाने का
अब चलो नया...
सम्प्रदायगत भावनाओं को
पैरों तले दबाना है
भ्रष्ट जनों के पुण्य कर्म को,
सिर पर नहीं बिठाना है
राजीव अच्छी लाइन है
त्योहारों का साथ-साथ आना
ईश का वरदान है
ये कहती है कुदरत
सब उसी की संतान हैं
मैं रखूं रमजान
तुम नवरात्र रखना
प्रेम का प्रसाद
सब मिलकर चखना
राम को पूजो
या अल्लाह को मानो
पर माता की गोदी के
लाल न उजाडो
त्योहारों पर भी गर
हिंसा फैलाओगे
न राम मिलेगा
न अल्लाह को पाओगे
बहुत अच्छी पंक्तियाँ है सच्ची और दिल को छूने वाली
सुनील कुमार 'सोनू' |आप की ये पंक्तियाँ अच्छी लगी सजदे दुआओं तेरे सहज कबूल हों
रहें जिंदगी में तेरे जलज फूल हों
खुदा की असीम कृपा तेरे साथ रहे
भटकाव न आए कभी लक्ष्य पे तेरे आँख रहे
ये दुआ हमारी तरफ़ से, कही जो अब तक
ईद -मुबारक ईद -मुबारक सबको ईद -मुबारक !
क्या रोज इबादत से
खुदा ख़फा हो जाएगा |
रोज कुरान पढ़ने से
कोई दफा लग जाएगा ||
क्यों आपसी भाईचारा और प्यार
एक मौके की मोहताज है |
क्यों ईद का मिलाप
बस ईद के दिन की बात है ||
ठीक प्रश्न उठाया है
काव्य-पल्लवन पर इस बार ईद पर कविताये पढ़कर बहुत अच्छा लगा.और साडी कविताये भी बहुत खुबसूरत है.
क्यों आपसी भाईचारा और प्यार
एक मौके की मोहताज है |
क्यों ईद का मिलाप
बस ईद के दिन की बात है ||
यथार्थ लिखा है.
क्यों आपसी भाईचारा और प्यार
एक मौके की मोहताज है |
क्यों ईद का मिलाप
बस ईद के दिन की बात है ||
सच लिखा है.. पर शुक्र है कि हम ईद दिवाली जैसे त्योहार मनाते हैं.. ये भी न हों तो गले मिल ही न पायेंगे।
ईद पर हिन्दी में कम ही लिखा गया है। हिन्दयुग्म का ये आयोजन सफल माना जायेगा, जो कम वक्त में १२ कवितायें आईं।
ग्राफिक्स डिज़ाइनरों का भी इस आयोजन में पूरा योगदान रहा जो सुंदर बैनर बनाया।
ईद मुबारक।
दहशतगर्दी से लडना है
हर इंसां का फर्ज.
बहा पसीना चुका सकेंगे
भारत मां का कर्ज
सुंदर भावः सलिल जी
दिल मिलें,भूल कर शिकवे गिले ,
गले रस्मी भर नहीं ,तो ईद हुई बहुत अच्छे विवेक जी
भाईचारा बढ़े औ मोहब्बत पले ,
ईद का यही पैगाम , इसरार है सी बी साहेब बहुत बढिया
अबके ईद मनाऊँ कैसे
जश्ने ईद मनाऊँ कैसे
दहल गए है कलेजे सब के ,
शोर धमाकों का सुन सुन कर
लाजवाव सुरेन्द्र जी
अदावत का गुल ना खिल पाये कभी,
हबीबों की हस्ती ना हिल पाये कभी;
जुर्मों की जहाँ से सदा परहेज करना।
हर वक्त हो नमाज याद रखना॥ बसंत लाल जी बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति
युद्ध नहीं हो कोई अब से
सत्ता और किसानों में
द्वन्द्व नहीं हो कोई अब से
धर्म के नाम पर आपस में
बधाई राजीव जी
त्योहारों पर भी गर
हिंसा फैलाओगे
न राम मिलेगा
न अल्लाह को पाओगे
शोभा जी पंक्तियाँ दिल को छु लेने वाली हैं
क्यों आपसी भाईचारा और प्यार
एक मौके की मोहताज है |
क्यों ईद का मिलाप
बस ईद के दिन की बात है ||
पंखुडी कुमारी जी बहुत गज़ब लिखा है आपने
और सबसे अधिक बधाई
शैलेश भारतवासी जी को
कभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भीदस्तक दे
manoria.blogspot.com
हिन्द-युग्म हर त्योहार, बड़े मौकों पर सुंदर आयोजन करता रहा है। यह भी उसी की एक कड़ी है। सभी कवियों ने यथासंभव मदद की है। बहुत-बहुत बधाइयाँ।
बधाई सबको |
सभी कविताएँ अच्छी लगी |
निम्न पंक्तियाँ विशेष अच्छी लगी |
गुझिया सिंवई खिलाये खायें
हों साझे त्यौहार.
अंतर से अंतर का अंतर
मिटा लुटायें प्यार.
शोभा जी के सहज शब्द भी अच्छे लगे |
बेहतरीन आयोजन। अच्छी सोच। सकारात्मक कविताएं।
त्योहारों पर भी गर
हिंसा फैलाओगे
न राम मिलेगा
न अल्लाह को पाओगे
बधाई।
रमजान का महीना लाया
ईद की सुंदर सौगात|
सौगात को संजो लेते सब
आड़े न आता हैसियत औ हालात ||
बड़ी मुश्किल से मुझे मालूम पड़ी
ईद मनाने की ये वजह |
दिल ने कहा क्यों इन्सान
खुश नहीं हो सकता बेवजह||
sari kabitaen lajabab he lekin ye panktiyan mujhe bahut hi achchhi lagi.sunilkumarsonus@yahoo.com
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