काव्य-पल्लवन सामूहिक कविता-लेखन
विषय - पहली कविता
विषय-चयन - अवनीश गौतम
अंक - पंद्रह
माह - मई 2008
कवि की पहली कविता जैसे किसी का पहला प्यार, दिल से जुडी बात, दिल से जुड़े शब्द। पहली कविता वो सुंदर अहसास है जो मन की नैसर्गिक अवस्थाओं से निकलता है। एक कवि के पहली कविता वे शुरूआती अक्षर हैं जिस पर वो संग्रहों का महल बनाता है। कवि के लिए पहली कविता उसके लेखन का संस्कार हो सकती है। हिन्द-युग्म ने सोचा कि इतना महत्वपूर्ण विषय आखिर अछूता कैसे रह गया। नामचीन से लेकर अनामी कवियों में से किसी ने भी अपनी पहली कविता को अहमियत न दी। न किसी प्रकाशक ने कोई पहल की। इसलिए हमने पहली कविता प्रकाशित करने का विचार बनाया। पाठकों ने जिस तरह की प्रतिक्रियाएँ दी उससे हमारा आयोजन सफल हो गया। यह एक आश्वर्यजनक संयोग रहा कि बहुत से कवियों ने अपनी पहली कविता को बचाकर नहीं रखा, उन्होंने अपनी उपलब्ध कविताओं में से पहली कविता भेजी, यह मानकर कि यहाँ प्रकाशित कविता ही उनकी पहली कविता कहलायेगी।
जिस तरह की उम्मीद थी, हमें बहुत सी कविताएँ प्राप्त हुईं। इसलिए हमने इस संकलन को प्रत्येक वृहस्पतिवार को प्रकाशित करने का निर्णय लिया है। एक बार में हम मात्र २० कविताओं का प्रकाशन कर रहे हैं (जिस क्रम में ये हमें प्राप्त हुई हैं)। जिन कवियों ने अभी तक अपनी पहली कविता नहीं भेजी है, उनसे आग्रह है कि इसके आयोजन से जुड़ी सूचना यहाँ देखें और जल्द से जल्द अपनी पहली कविता और उससे जुड़ी बातें लिख भेजें। हिन्द-युग्म 'पहली कविता' की राह देख रहा है।
हिन्द-युग्म ने यह निर्णय लिया कि इस ख़ास मौके पर सबकुछ ख़ास होना चाहिए। इसलिए www.hindyugm.com और कविता पृष्ठ दोनों के हेडर-चित्र को भी पहली कवितामय बना दिया जाए। हमने अपनी ग्राफिक्स टीम से विशेष आग्रह किया और उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति की शक्ति से इसे ग्राफिक्समय भी किया। http://www.hindyugm.com का हेडर प्रशेन क्यावाल और http://merekavimitra.blogspot.com का हेडर पीयूष पण्डया ने बनाया है।
आपको यह प्रयास कैसा लग रहा है। टिप्पणी द्वारा अवश्य बतावें।
*** प्रतिभागी ***
| ममता पंडित | दिव्य प्रकाश दुबे | सुमित भारद्वाज | सीमा सचदेव | अजीत पांडेय |समीर गुप्ता | प्रेमचंद सहजवाला | पावस नीर | रचना श्रीवास्तव | लवली कुमारी | हरिहर झा |
| राहुल चौहान | सतपाल ख्याल | पीयूष तिवारी | आलोक सिंह "साहिल" | अर्चना शर्मा | रंजना भाटिया | सजीव सारथी | विपुल | कमलप्रीत सिंह
~~~अपने विचार, अपनी टिप्पणी दीजिए~~~
इस कविता को मेरी पहली कविता कहा जा सकता है।यह कविता मेरी दस साल पुरानी डायरी के पहले पन्ने पर लिखी हुई है। विचारों की श्रृंखला कब कविता बन गई पता नहीं चला और ये पहली ऐसी विचार श्रृंखला थी जिसे मैंने कलमबद्ध किया।
बड़े बड़े सुनहरे ख्वाब
और छोटी सी ये ज़िन्दगी
जैसे वह भी एक ख्वाब हो
न जाने कब कौन हमें जगा दे।
हमारी नींद कब टूटे
और सामने हो अंतिम सत्य।
हो इतना सशक्त कि
तोड़ डाले सारे भ्रम
सारे निश्चित कर्म
जो ले जाये हमें बहुत दूर।
जहाँ न कोई बँधन हो
न हो कोई दस्तूर।
बस शून्य में व्याप्त हो
एक अमिट शांति।
वो शांति जो चिरस्थायी
सम्पूर्ण होती है।
और सत्य की तलाश
जहाँ पूर्ण होती है।
इस सत्य को अगर हम
अभी समझ जायेंगे
जीवन हर बँधन से
मुक्त हो जी पायेंगे।
जीव मोक्ष के लिये
भटकते हैं दर दर
वो मोक्ष स्वयं में ही पायेंगे।
--ममता पंडित
क्या लिखूँ
कुछ जीत लिखू या हार लिखूँ
या दिल का सारा प्यार लिखूँ
कुछ अपनो के जज्बात लिखूँ या सपनो की सौगात लिखूँ
कुछ समझूँ या मैं समझाऊँ या सुन के चलता ही जाऊँ
पतझड़ सावन बरसात लिखूँ या ओस की बूँद की बात लिखूं
मै खिलता सूरज आज लिखूँ या चेहरा चाँद गुलाब लिखूँ
वो डूबते सुरज को देखूँ या उगते फूल की साँस लिखूँ
वो पल मे बीते साल लिखूँ या सादियो लम्बी रात लिखूँ
मै तुमको अपने पास लिखूँ या दूरी का ऐहसास लिखूँ
मै अन्धे के दिन मै झाँकू या आँखों की मै रात लिखूँ
मीरा की पायल को सुन लूँ या गौतम की मुस्कान लिखूँ
बचपन मे बच्चों से खेलूँ या जीवन की ढलती शाम लिखूँ
सागर सा गहरा हो जाऊँ या अम्बर का विस्तार लिखूँ
वो पहली -पाहली प्यास लिखूँ या निश्छल पहला प्यार लिखूँ
सावन कि बारिश मेँ भीगूँ या आन्खो की बरसात लिखूँ
गीता का अर्जुन हो जाऊँ या लंका रावण राम लिखूँ
मै हिन्दू मुस्लिम हो जाऊँ या बेबस इन्सान लिखूँ
मै ऎक ही मजहब को जी लूँ या मजहब की आँखें चार लिखूँ
कुछ जीत लिखूँ या हार लिखूँ या दिल का सारा प्यार लिखूँ
--दिव्य प्रकाश दुबे
वो जब हद से गुजर जाते हैं,
दिल से उतर कर निगाहो मे बस जाते है,
मुस्कुराओ तो होंटो पर भी वो ही नज़र आते है।
ना जाने किस राह पे जाता हूँ,
हर वक्त उनको ही साथ पाता हूँ।
वो मुझे हर जगह नज़र आते हैं,
फिर कैसे कह दूँ वो मेरा दिल दुखाते है।
अब तो मुझे हर पल उन्ही की याद आती है,
इस से ज्यादा क्या कहूँ वो ही मेरे सच्चे साथी है।
पर मैं ही नादाँ था उन्हे ना पहचान सका,
खुली आँखो से दुनिया को ना जान सका।
कुछ पल के लिए जो मुस्कुरा लिया,
ऐसा लगा उन्से दामन छुडा लिया,
पर उन्से जुदाई मुझे रास ना आई,
हर कदम पर मैने ठोकर ही खीई।
वो जो कभी मेरे दिल से निगाहो मे आए,
और होंटो पर भी नजर आये,
वो और कोई नही, वो है मेरे दर्द के साये।
अब इससे ज्यादा और कुछ नही कहना चाहता हूँ,
बस अपने सच्चे दोस्त के साथ ही रहना चाहता हूँ।
इसी के साथ अपनी कलम को विराम देता हूँ,
और उन्ही को दिल मे विश्राम देता हूँ।
--सुमित भारद्वाज
मेरे पास मेरी सबसे पहली कविता जो उपलब्ध है, वो है... "आज का दौर" यह कविता मैंने १९८८ में १३ साल की उम्र में लिखी थी | और भी बहुत सी कविताएँ इससे पहले लिखी और पहली कविता आठ-नौ साल की उम्र में लिखी थी |शीर्षक अभी भी याद है "नया पंजाब" लेकिन वो सब कविताएँ संजो कर नहीं रखी और गुम हो गई |हाँ पहली कविता की कुछ पन्क्तियाँ अभी भी दिमाग मे गूँज रही है....
आज का किसान ,पहनता है पैण्ट-कोट
घर मे चाहे कुछ न हो,जेब मे रखता है नोट
आज का किसान ,किसान नही नवाब है
पञ्जाब का जवाब नही, लाजवाब है
यह कविता "सीमा सचदेव" की नही "सीमा मिगलानी" की है | शादी के बाद लडकियो का नाम बदल जाता है , इस लिए अब सीमा सचदेव के नाम से लिखती हूँ |
आज का दौर
आजकल रहती है सबको ही टेंशन
बी पी लोअ हो जाता है, लगते हैं इंजेक्शन
कोई कहता लड़ना है मुझको इलेक्शन
कोई कहे लग जाएगी इस साल पेंशन
किसी को है ख़याल चला है कौन सा फैशन ?
कौन सी पहनू ड्रेस? लेते हैं सुजेशन
कोई कहता पहनूंगा मैं जूते एक्शन
किसी को है चिंता कैसे बनें रिएक्शन?
कोई रहे सोचों में, कैसे बनें रिलेशन?
कोई कहे किसको कितनी दी जाए डोनेशन?
कोई कहे इस वर्ष कैसे होगा एडमिशन?
और कोई कहे हमने तो पूरा करना है मिशन
पर मैं कहूँ सब ठीक ही है डोंट मेंशन
--सीमा सचदेव
यादो से तेरी दूर ना करे .....
वक़्त मुझे इतना भी मजबूर ना करे,
कम से कम यादो से तेरी दूर ना करे.
शोहरते बदल देती है रिश्तो के मायने,
मुकद्दर मुझे इतना भी मशहूर ना करे.
कम से कम यादो से तेरी दूर ना करे.
दौलत ,तरक्की या फिर कामयाबीया मेरी ,
ये वक़्त की ऊंचाईया मगरूर ना करे.
कम से कम यादो से तेरी दूर ना करे.
जुदाई भी दी है उन्होने तौफे में 'शफक' ,
कैसे भला कोई इसे मंजूर ना करे.
कम से कम यादो से तेरी दूर ना करे.
--अजीत पांडेय
एक लम्हा : अन्तिम सांस
अन्तिम सांसे जब ले -लेकर
मई याद कर रहा था हर पल ,
अच्छा या बुरा किया मैंने
वो सब हिसाब कर रहा था हल .
तब एक लम्हा मुझसे बोला ,
सब लेकर बाडों का चोला .
तुम आज नहीं मृत पहले थे ,
सब सच ,तुम झूठ अकेले थे .
सद् सत्य का नाश किया तुमने
तुम झूठ पाप के ठेले थे .
सत् जीवन व्यर्थ किया तुमने
हाँ कुत्सित अहम् के फूले थे .
उस पल की व्यथा का मई मारा ,
जीवन तृन -मूल लगा सारा .
सब देस धाम अब छूट गया
हाँ ! सब जीत गए बस मैं हारा .
......सब जीत गए बस मैं हारा .
.........सब जीत गए बस मैं हारा
--समीर गुप्ता
पत्थरों के बीच से बहती हुई एक नदी बन कर
तुम उतर गयी हो मेरे सीने में
एक तड़प की तरह
और मैं एक नाव बन कर
नदी के तट से जा लगा हूँ
एक लम्बी तपती दोपहरी
ठंडे जल का एक कुआं बन गई है
रात की झोली में एक सितारा गिर कर
चुम्बन बन गया है
मेरी आँखों से
एक जगमगाता शिकारा निकल कर
तैरने लगा है
उस प्यारे से समुद्र में
जो तुम ने रच डाला है
मेरी ज़िंदगी के सूने कैनवास पर
--प्रेमचंद सहजवाला
एक बन्दंरिया पहन घघरिया
धम से गिर गई बीच बजरिया
उधर से आये बन्दर मामा
ले गए उनको दवाखाना
दवाखाने में थे डॉक्टर भाई
उन्होंने दे दी बंदरिया को दवाई
और बोले मत खाना बैंगन आडू
न ही देना घर में झाडू
बैठे बैठे करना आराम
बन्दर से करवाना काम
१० साल की उम्र में लिखी कविता , प्रभात ख़बर में प्रकाशित (१९९७)
--पावस नीर.
मैंने यह कविता ६ साल की उम्र में अपनी बहन के लिए लिखी थी।
साईकिल साईकिल मेरा नाम
चलना रहता मेरा काम
चलूंगी चलाउनगी
बियुटी को घुमाउनगी
दुनिया उसे दिखाउनगी
बियुटी मुझपे बैठेगी
घूम घूम के लौटेगी
बियुटी मुझ पे बैठ के
पहुँच गई चिडिया घर
बन्दर कूदा पिजडे मे
बियुटी उछली साईकिल पर
मुझ पे बैठ के बिटिया
फ़िर लौटी आपने घर
चलते चलते थक गई
फिरभी भी मै न कंही रुकी
क्यों की साईकिल है मेरा नाम
चलना है बस मेरा काम
-रचना श्रीवास्तव
वह पौधा
वह पौधा सुख गया ,जैसे वह रिश्ता टूट गया
मैं उसे सुबह हल्की धुप मे रखती
दोपहर की कड़ी धुप से उसे बचाती,
फ़िर भी वह पौधा मर गया
मैं उसे ह्रदय मे स्थान देती
मैं उसे नाम और पहचान देती,
फ़िर भी वह रिश्ता टूट गया
मैंने उस पौधे को खाद पानी दिया
जैसे मैंने उस रिश्ते को पहचान दी
उस पौधे की बढ़ती पत्तियो को मैं रोज गिनती
जैसे उस रिश्ते के नये आयामों को मैं रोज देखती
फ़िर भी वह रिश्ता टूट गया
जैसे वह पौधा मर गया
मैंने इंतिज़ार किया इस पौधे मे फूल लगेंगे
जो इसकी काँटों वाली छवि को ढंक देंगे
जैसे मैंने इंतिज़ार किया इस रिश्ते की नई परिभाषा बनेगी
जो इसके सारे बुरे पहलुओं से परे होगी
फ़िर भी वह रिश्ता टूट गया
जैसे वह पौधा मर गया
मैंने उस पौधे मे भी अपनी छवि देखि, उस रिश्ते मे भी ख़ुद को देखना चाहा
मैं सोंचती हूँ शायद इसी अति अनुराग को कारण वह रिश्ता टुटा
जैसे बहुत सींचने के कारण जलजमाव से वह पौधा मर गया.
--लवली कुमारी
कविते !
हिमालय !
तू बह जा
इमारत !
तू ढह जा
गंगे !
तू बह जा
ऐसे ही
पांच सात
अटपटे
चटपटे
रसीले
मधुभरे
वाक्य मिल कर
कविते !
तू बन जा
- हरिहर झा
सरंक्षण समय की मांग है,
यह वैकल्पिक नही आवश्यक है|
सरंक्षण करो अपनी उर्जा का,
जो देती है हर क्षण शक्ति आगे बढ़ने की|
सरंक्षण करो इस धरती का
जिसका दोहन करते हो तुम अकूत|
सरंक्षण करो उस जल का,
जिसके बिना जीवन हो जायेगा मरुस्थल सा|
सरंक्षण करो अपने विचारों का,
जिन्हे लग रहा है दीमक अनैतिकता का|
सरंक्षण करो अपनी संस्कृति का,
जिसकी हो रही है क्षति हमारे कुंठित विचारों से|
सरंक्षण करो अपने राष्ट्रवाद का,
जो हो रहा है दास बाजारवाद का|
सरंक्षण करो लोकतंत्र का,
जो हो रहा है विघटित|
सरंक्षण करो अपनी भाषा का,
जो आस लगाये देख रही है तुम्हे अपने सम्मान के लिए|
सरंक्षण समय की मांग है,
क्योंकि घटता जा रहा है मानव जीवन का अभिप्राय|
सरंक्षण वैकल्पिक नही आवश्यक है|
--राहुल चौहान
लो चुप्पी साध ली माहौल ने सहमे शजर बाबा
किसी तूफ़ान की इन बस्तियों पर है नज़र बाबा.
है अब तो मौसमों में ज़हर खुलकर सांस कैसे लें
हवा है आजकल कैसी तुझे कुछ है खबर बाबा.
ये माथा घिस रहे हो जिस की चौखट पर बराबर तुम
उठा के सर जरा देखो है उस पर कुछ असर बाबा.
न है वो नीम, न बरगद, न है गोरी सी वो लड़्की
जिसे छोड़ा था कल मैने यही है वो नगर बाबा.
न कोई मील पत्थर है जो दूरी का पता दे दे
ये कैसी है डगर बाबा ये कैसा है सफ़र बाबा.
--सतपाल ख्याल
ज़िन्दगी कि दौड़
दिन भी मेरे रात से तन्हा यहा है !
फर्क इतना है कि सन्नाटे नही है !!
गूंजती है हर तरफ आवाज लेकिन !
दिल को छुले वो याहाँ बाते नही है !!
दिखते है हर रोज कितने ही चहरे !
पर नजर अपने कोई आते नही है !!
जमती है हर शाम कितनी ही महफ़िल !
दोस्तो कि वो मुलाकते नही है !!
खो गए है दिन मेरे अब सुकू के !
चेन से सोता था वो राते नही है !!
जिन्दगी कि दौड़ मे आगे हु इतना !
लोटतै रस्ते नजर आते नही है !!
फर्क इतना है कि सन्नाटे नही है !!!!
--पीयूष तिवारी
दसवीं में था परीक्षा चल रही थी,पागलपन का दौरा पड़ा और चल पड़ा कवि बनने
१९ मार्च २००२
बस चलता रहा
निर्झर पावन झरने की तरह
वह बहता गया,बहता ही गया
एक पल भी रुका ना वो तो कहीं
बस चलता गया,चलता ही गया
कहीं राह के पत्थर से भी भिंदा
कहीं गली के खड्डे भी यूं मिले
कि शाश्वत पथ पर न जाए
कहीं आग के शोले भी यूं मिले
की वापस फ़िर वो आ जाए
पर ना वो डिगा और ना ही डरा
बस आह भरा और चलता रहा
चलते चलते जैसे कि कहीं
आवाज यूं आयी सुन रे पथिक!
चिंता की लकीरें आ पहुंचीं
आवाज कहाँ से आयी पथिक
हर क्षण मचला हर क्षण विचला
आवाज कहाँ से आयी पथिक
चलता ही रहा उस मृग की तरह
कि काश कस्तूरी मिल जाए
पर न ही मिला कस्तूरी कहीं
बस लगता रहा है यहीं कहीं
वह जान सका ना अटल सत्य
कि वह कस्तूरी अपनी ही है
आवाज जो आई थी रे पथिक
वह कलरव ध्वनि भी अपनी ही है
मदमस्त नदी के ज्वारों सा
वह बहता गया साहिल की तरफ़
साहिल तो मिलेगा उसको कभी
इक आस भी था जो मन में यही
इस आस के चलते ही तो सदा
वह चलता रहा,चलता ही रहा
चलते चलते चलता ही रहा
बस चलता रहा और चलता रहा
--आलोक सिंह "साहिल"
अर्चना शर्मा : ये कविता इन्होंने तब लिखी जब इनकी शादी होने वाली थी.ये दोनों लगभग एक ही साथ लिखी थी, इसलिए इनके लिए यह कह पाना मुश्किल है कि कौन सी पहले लिखी।
1)
एक अनजाना सा एहसास ,
एक अजनबी का साथ ,
ज़िंदगी ले आई है ,
खुशीयों की सौगात ......
जून की हल्की बरसात ,
और मेरे मेहंदी वाले हाथ ,
वो छोटी सी मुलाक़ात ,
हकीक़त थी या ख्वाब ........
जान पाती मैं काश ,
की क्यों दिन और रात ,
मन मेरे रहती है ,
उसकी हर एक प्यारी बात .....
यो ही चलता रहे मेरे साथ ,
ये अनजाना एहसास ,
और वो अजनबी ,
कुछ अलग कुछ ख़ास ..........
2)
नए नए एहसासों में ,
घुलने लगी है ज़िंदगी ,
उस अजनबी की बातों में ,
मिलने लगी है अब खुशी .........
उस अजनबी अनजान से ,
होने लगी है पहचान ,
खुदा करे उसके होठों पे ,
सदा सजी रहे मुस्कान .......
उसी के ख्यालों में ,
उल्ज़ा रहे ये मन ,
छुटने लगा है आजकल,
इन हाथों से बचपन ..........
जुड़ रहा है उसके साथ ,
एक नया बंधन,
उसके ही रंगों में ,
ढलने लगा जीवन ..........
दिखता है जब वो ,
भविष्य का दर्पण ,
बातों -बातों में मुझे ,
आ जाती है शरम .........
यूहीं बजती रहे ,
ये खुशीयों के सरगम ,
सिलसिले ये खूबसूरत ,
कभी हो न खत्म ............
पहली कविता ..बहुत ही अच्छा विषय लिया है इस बार ,..कई यादे याद आ गई इस के बारे में सोचते हुए ...अब पहली कविता जब लिखी थी तब बहुत छोटी थी मैं तो शायद १० साल की ...माँ के जाने के बाद लिखी थी कुछ मौत पर ...फ़िर पापा के डर से फाड़ के फेंक दी ..उसके बाद भी जो लिखी वह कभी किसी कागज पर या स्कूल का होम वर्क करते हुए लिखती रहती थी फ़िर डर के मारे उसको फाड़ के फेंक देती थी ..फ़िर जब ११वी क्लास में आई तो एक लाल रंग की डायरी मिली
पापा की अलमारी से जिसके कवर पर फूल बने हुए थे और अन्दर हर पेज पर खूबसूरत कोटेंशन .वह उनसे मांग ली कि यह मुझे अच्छी लगी है मुझ दे दो उस में फ़िर छिप के लिखना शुरू किया वो डायरी आज भी मेरे पास है और उस पर लिखी पहली कविता ही समझ ले मेरी पहली कविता है ..पढ़ के ख़ुद ही हँसी आती है ..पर कभी कभी उसको पढ़ना मुझे बहुत अच्छा लगता है .उसके बाद कई डायरी भरी होंगी पर वह मेरे लिए आज भी बहुत खास है और इस में एक एक कविता जैसे किसी याद का लम्हा ..उस वक्त जो दिल कहता था वही लिखती थी ..करती तो आज भी वही हूँ :) उस वक्त न जाने क्या सोच के यह कविता लिखी थी ..कोई शीर्षक भी नही दिया है बस कविता जैसा कुछ लिखा हुआ है इस लाल डायरी के पहले पन्ने पर ..
जब देखो तुम चाँद को
तो याद मुझे मत करना
मगर जब देखो चाँदनी बिखरी हुई
तो उसकी हर याद को दिल में भर लेना
जब प्यार मिले किसी से भीख के रूप में
तो तुम उसको आंखो में मत रखना
मगर वही जब मिले हक से
तो उसका कतरा -कतरा बूंद -बूंद
अपने दिल में कर कोने में भर लेना
कभी मिले किसी दायरे में बंधा प्यार
तो उसको तुम मत छूना
पर जब मिले मुक्त गगन
विचरण करता प्यार भरा संसार
तो उस मीठे प्यार के झरने से
अपना तन मन भिगो लेना
चाँद सा प्यार उसकी तरह ही घटता बढता जायेगा
भीख में मिला प्यार दिल की धड़कन नही छू नही पायेगा
और बंधनों में बंधा प्यार हाथो से फिसल जायेगा
मगर चांदनी सा महकता प्यार
बूंद बूंद बरसता प्यार दिल में है ठंडक भरता जायेगा
हक से मिला प्यार कतरा कतरा ..
दिल की गहराई में बस जायेगा
और सभी दायरों से मुक्त प्यार और विश्वास
जीवन भर जीने का सहारा है बन जायेगा !!
-रंजना भाटिया
मुझे पहली बार कविता मिली थी जब २१ वर्ष की आयु में मुझे पहली बार घर से लंबे समय तक दूर जाकर रहना पड़ा था, उन शुरुवाती दिनों में जो अकेलापन खलता था तो माँ की बहुत याद आती थी, कविता की दृष्टि से नहीं कह सकता कितनी ठीक है, पर भाव बिल्कुल खरे सोने से सच्चे है, माँ को समर्पित मेरी इस पहली कविता में -
"माँ"
कितना छोटा मगर
कितना महान है ये लफ्ज़
इस लफ्ज़ में छुपी हैं
वो दो ऑंखें,
जो देखती हैं हमे हर पल,
जिनके सपनो में बसें है
हमीं पल पल ।
इस लफ्ज़ में छुपे हैं
दो हाथ ,
जिन्होंने थाम कर उंगली
चलना सिखाया,
भूख लगी जब निवाला खिलाया,
जब गिरे हम तो बढ कर उठाया,
रातों को थपथपाकर सुलाया,
इस लफ्ज़ में छुपा है बचपन,
ममता का आंगन,
निस्वार्थ प्रेम का दर्पण -
माँ ही तो है,
पूजा का दीप पावन -
माँ ही तो है।
बदनसीब हैं वो जिनसे ये दूर हुईं ,
पर उनकी किस्मत हाय
जो इनसे हुए पराये ।
-सजीव सारथी
इज़हार
सुनो ...मुझे कुछ कहना है..,
अब और नहीं रहा जाता..
दिल मे है बहुत कुछ,
अब और छुपाया नही जाता ।
मुझे प्यार है तुमसे ..
यही बोलना है ,
और आज तुमसे भी मुझे बस यही सुनना है।
जब से देखा ..बैचैन हूँ,
नींद नही आती है..
तुम्हारी ये काली आंखे..,
मुझ पर जादू कर जातीं हैं ।
ये लम्बे बाल..
इनकी छांव में ज़िन्दगी गुज़ार दूँ..
ये गुलाबी होंठ ...
जी करता है कि इनसे थोडी लाली उधार लूँ..
जब से देखा तुम्हे किसी और को नही देखा..
मेरे ह्रदय की स्वामिनी हो तुम.,
मेरे हाथ मे बनी प्रेम की रेखा... !
देखो.....
कल से छुट्टियाँ लग जायेंगी..
फिर में नही मिल पाऊंगा,
तुम्हारी याद सतायेगी...।
ज्वर से तप रहा हूँ मैं आज..
फिर भी आया...सोचा,
तुमसे शायद यह सब कह पाऊंगा ।
मुझे स्वीकार करो.....!
प्रिये ! यह प्रेम की भिक्षा ऐसी है..
जो देता है , वो धनवान हो जाता है..
और जो लेता है ,
उसका तो जनम ही तर जाता है ।
याचक हूँ ..पुकार सुनो..,
मैं तुम्हारा तुम मेरी
आँखें बन्द करके..
यह कल्पना करो..।
सन्नाटा....
वातावरण स्तब्ध,
मैं व्याकुल, अधीर ...
और वो निशब्द ।
उसकी आँखें नीचे झुकी ,
मेरी धड़कनें कुछ तेज़ चली..
ज़िन्दगी का फैसला,
ज़िन्दगी के हाथ ,
मेरी ज़िन्दगी की सबसे अहम घडी....
एक क्षण में फैसला हो जायेगा..
आगे से
संयोग-श्रंगार में डूबी कविता लिखूंगा ..
या फिर दुनिया में ,
एक और विरही कवि बढ जायेगा ।
शीघ्रता करो...
मेरी याचना को मौन नही..
सशब्द स्वीक्रती दो..।
अचानक...
उसके होठों से स्वर फूटे.. ,
पहली बार कुछ अरमाँ जागे थे..
हाय! आज वो भी टूटे..।
नहीं..
मैं ऐसा नहीं कर सकती...!
बकवास है यह प्यार-व्यार ,
फालतू बातों पर विश्वास नही करती ।
मैनें तो सोचा है ,
मुझे ज़िन्दगी भर शादी नहीं करना ,
और तुम भी सुन लो,
आज के बाद मुझसे बात नही करना ।
देखो...
ऐसा नहीं कि तुम "ना" करोगी,
तो मै कुछ आत्महत्या कर जाऊंगा..
बहुत ज़िम्मेदारियाँ है, निभाना होगा ,
पर यदि तुम साथ होगी
तो अच्छे से पूरा कर पाऊंगा ।
प्यार.. क्या होता है ..
एक दिन समझ जाओगी..,
तब मैं याद आऊंगा,
आज इंकार करने के लिये पछताओगी ।
तुम मेरी चाहत हो...
अरमान हो ..
मुझे ऐसे नही ठुकरा सकतीं ,
यह बात आज जान लो..।
कोई वजह कोई कारण नहीं ,
मेरे सपने क्यों टूटे ,
मुझे स्वयं मालूम नहीं ।
वो तो बात भी नही करती..
कोशिश पर मैं बराबर करता हूँ ,
दुनिया उम्मीद पर कायम है ,
सुन ! वो तेरी ज़रूर होगी..
सब्र कर
ऐसा अपने दिल से रोज़ कह्ता हूँ ।
--विपुल शुक्ला
वर्तमान
वर्तमान क्या है आखिर
कल की जुड़ी कुछ कड़ियों का एक सिलसिला सा
या फ़िर भविष्य के भाववाची
भावी क्षणों की कल्पना मात्र
क्यों न आज केवल आज हो
भूत एवम भविष्य के
विचारों से स्वतन्त्र सा !!!
-कमलप्रीत सिंह
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33 कविताप्रेमियों का कहना है :
सभी सौभाग्यशाली कवियों/कवयित्रियों को प्रथम कविता प्रकाशित होने पर हार्दिक बधाई.......सीमा सचदेव
सही है हर किसीकि पहली क़लम से निकली पहली कविता अविस्मरणीय होती है |
हिन्दी युग्म के इस प्रयास की जितनी तारीफ करें कूम है | बहुत अच्छा अंक है पल्लवन का ये |
अपनी पहली कविता प्रकाशित होने का सुख ,बहुत अलग अनुभूति होती होगी |.
सभी कवियों को बहुत बधाई.|
1 . ममता पंडित
वो शांति जो चिरस्थायी
सम्पूर्ण होती है।
और सत्य की तलाश
जहाँ पूर्ण होती है।
इस सत्य को अगर हम
अभी समझ जायेंगे
जीवन हर बँधन से
मुक्त हो जी पायेंगे।
2 . दिव्य प्रकाश दुबे
वो डूबते सुरज को देखूँ या उगते फूल की साँस लिखूँ
वो पल मे बीते साल लिखूँ या सादियो लम्बी रात लिखूँ
मै तुमको अपने पास लिखूँ या दूरी का ऐहसास लिखूँ
मै अन्धे के दिन मै झाँकू या आँखों की मै रात लिखूँ
मीरा की पायल को सुन लूँ या गौतम की मुस्कान लिखूँ
3. .सुमित भारद्वाज
वो जो कभी मेरे दिल से निगाहो मे आए,
और होंटो पर भी नजर आये,
वो और कोई नही, वो है मेरे दर्द के साये।
अब इससे ज्यादा और कुछ नही कहना चाहता हूँ,
बस अपने सच्चे दोस्त के साथ ही रहना चाहता हूँ।
4 . seems sachdev
कोई कहे किसको कितनी दी जाए डोनेशन?
कोई कहे इस वर्ष कैसे होगा एडमिशन?
और कोई कहे हमने तो पूरा करना है मिशन
पर मैं कहूँ सब ठीक ही है डोंट मेंशन
5 . ajeet ji
दौलत ,तरक्की या फिर कामयाबीया मेरी ,
ये वक़्त की ऊंचाईया मगरूर ना करे.
कम से कम यादो से तेरी दूर ना करे.
वाह बहुत ही बढ़िया सब भी की कविता,ये पंक्तियाँ खास पसंद आई,बहुत बधाई.
6. .samir gupta ji
तुम आज नहीं मृत पहले थे ,
सब सच ,तुम झूठ अकेले थे .
सद् सत्य का नाश किया तुमने
तुम झूठ पाप के ठेले थे .
सत् जीवन व्यर्थ किया तुमने
हाँ कुत्सित अहम् के फूले थे .
उस पल की व्यथा का मई मारा ,
जीवन तृन -मूल लगा सारा .
7 . premchand ji
मेरी आँखों से
एक जगमगाता शिकारा निकल कर
तैरने लगा है
उस प्यारे से समुद्र में
जो तुम ने रच डाला है
मेरी ज़िंदगी के सूने कैनवास पर
8 . paavas neer ji
और बोले मत खाना बैंगन आडू
न ही देना घर में झाडू
बैठे बैठे करना आराम
बन्दर से करवाना काम
:):):):)
9 . rachana shrivastav ji
पहुँच गई चिडिया घर
बन्दर कूदा पिजडे मे
बियुटी उछली साईकिल पर
मुझ पे बैठ के बिटिया
फ़िर लौटी आपने घर
चलते चलते थक गई
फिरभी भी मै न कंही रुकी
क्यों की साईकिल है मेरा नाम
चलना है बस मेरा काम
10. .lovely kumari ji
मैंने उस पौधे मे भी अपनी छवि देखि, उस रिश्ते मे भी ख़ुद को देखना चाहा
मैं सोंचती हूँ शायद इसी अति अनुराग को कारण वह रिश्ता टुटा
जैसे बहुत सींचने के कारण जलजमाव से वह पौधा मर गया.
वाह बहुत ही बढ़िया सब भी की कविता,ये पंक्तियाँ खास पसंद आई,बहुत बधाई.
11 . harihar jha ji
पांच सात
अटपटे
चटपटे
रसीले
मधुभरे
वाक्य मिल कर
कविते !
तू बन जा
12 . rahulchauhan ji
सरंक्षण करो अपनी संस्कृति का,
जिसकी हो रही है क्षति हमारे कुंठित विचारों से|
सरंक्षण करो अपने राष्ट्रवाद का,
जो हो रहा है दास बाजारवाद का|
सरंक्षण करो लोकतंत्र का,
जो हो रहा है विघटित|
13 . satpaal khayal ji
ये माथा घिस रहे हो जिस की चौखट पर बराबर तुम
उठा के सर जरा देखो है उस पर कुछ असर बाबा.
न है वो नीम, न बरगद, न है गोरी सी वो लड़्की
जिसे छोड़ा था कल मैने यही है वो नगर बाबा.
14. piyush tiwari ji
जमती है हर शाम कितनी ही महफ़िल !
दोस्तो कि वो मुलाकते नही है !!
खो गए है दिन मेरे अब सुकू के !
चेन से सोता था वो राते नही है !!
15 . alok singh sahil ji
वह कलरव ध्वनि भी अपनी ही है
मदमस्त नदी के ज्वारों सा
वह बहता गया साहिल की तरफ़
साहिल तो मिलेगा उसको कभी
इक आस भी था जो मन में यही
इस आस के चलते ही तो सदा
वह चलता रहा,चलता ही रहा
वाह बहुत ही बढ़िया सब भी की कविता,ये पंक्तियाँ खास पसंद आई,बहुत बधाई.
16 . archana sharma ji
जून की हल्की बरसात ,
और मेरे मेहंदी वाले हाथ ,
वो छोटी सी मुलाक़ात ,
हकीक़त थी या ख्वाब ........
जान पाती मैं काश ,
की क्यों दिन और रात ,
मन मेरे रहती है ,
उसकी हर एक प्यारी बात .....
17 . ranju ji
चाँद सा प्यार उसकी तरह ही घटता बढता जायेगा
भीख में मिला प्यार दिल की धड़कन नही छू नही पायेगा
और बंधनों में बंधा प्यार हाथो से फिसल जायेगा
मगर चांदनी सा महकता प्यार
बूंद बूंद बरसता प्यार दिल में है ठंडक भरता जायेगा
हक से मिला प्यार कतरा कतरा ..
दिल की गहराई में बस जायेगा
18 . sanjeev sarthi ji
भूख लगी जब निवाला खिलाया,
जब गिरे हम तो बढ कर उठाया,
रातों को थपथपाकर सुलाया,
इस लफ्ज़ में छुपा है बचपन,
ममता का आंगन,
निस्वार्थ प्रेम का दर्पण -
माँ ही तो है,
19 . vipul ji
कल से छुट्टियाँ लग जायेंगी..
फिर में नही मिल पाऊंगा,
तुम्हारी याद सतायेगी...।
ज्वर से तप रहा हूँ मैं आज..
फिर भी आया...सोचा,
तुमसे शायद यह सब कह पाऊंगा ।
मुझे स्वीकार करो.....!
प्रिये ! यह प्रेम की भिक्षा ऐसी है..
जो देता है , वो धनवान हो जाता है..
और जो लेता है ,
उसका तो जनम ही तर जाता है ।
20 . kamalpreet ji
वर्तमान क्या है आखिर
कल की जुड़ी कुछ कड़ियों का एक सिलसिला सा
या फ़िर भविष्य के भाववाची
भावी क्षणों की कल्पना मात्र
क्यों न आज केवल आज हो
भूत एवम भविष्य के
विचारों से स्वतन्त्र सा
वाह बहुत ही बढ़िया सब भी की कविता,ये पंक्तियाँ खास पसंद आई,बहुत बधाई.
सभी पाठको और कवियो को बधाई।
काव्य पल्लवन का ये अंक बहुत ही अच्छा है मै अपने दोस्तो को भी पहली कविता भेजने के लिए कहूँगा।
सुमित भारद्वाज।
सभी की कविताएँ पढ़कर बहुत अच्छा लगा। मुझे हरिहर झा, सीमा सचदेव, सजीव सारथी, रचना और विशेष रूप से विपुल की कविता पसन्द आई।
कवित-वरण
या अंतःकरण
प्रथम चरण
या संसमरण
शब्द-छरण
या क्षोभ-हरण
या कल्प-जगत
के ताल-तरण
सुन्दरी प्रेयसी
या परी-परण
या भक्ति भाव
भग्वान सरण
या जीवन-मरण
नही सहज
होती विस्मरण
- सभी कवियों को बहुत बहुत बधाई
सभी की रचनाओं ने मोहित कर दिया..
जो सभी ने अपनी पहली पहली कविता सुनाई
सहेज कर रखा अपनी स्मृतियों मे/ दैनदिनी में
बहुत अचछा लगे आपके अनुभव और अभिव्यक्ति
बनी रहे यही आसक्ति
क्यूकि :
प्रथम के बाद फिर थम नही होता
बढे चलो.......
सबकी पहली कविता सच में अपने में एक मीठा सा एहसास लिए हैं सबकी रचनाये मुझे बहुत मासूम सी और बहुत ही सुंदर लगी
किसी एक का यहाँ लिखना मुश्किल है ..क्यूंकि जिसने भी अपनी पहली कविता लिखी होगी वह दिल के समस्त सुंदर संवेदन शील भाव को ले कर लिखी होगी ..और वह एक नन्हें शिशु सी मासूम है ..इस लिए हर रचना एक प्यारा सा एहसास दिल पर छोड़ गई ..सबको शुभकामना और बीती मधुर यादो के साथ जो इस पहली कविता से सबकी जुड़ी हैं
रंजू
n88सुंदर,अति सुंदर,बिल्कुल बाल सुलभ सहजता झलकती है इस बार के काव्य पल्लवन के इस अंक में,गौतम जी,इतना प्यारा विषय सुझाने के लिए धन्यवाद
बात करें व्यक्तिगत कविताओं की तो किसी की भी कविता को कंकर नहीं आँका जा सकता क्योंकि इन्हें हम कविता न कहकर एक प्यारी सुहानी याद का नाम देना चाहेंगे क्योंकि उस वक्त कोई कवि नहीं था,थे सब बच्चे ही,चाहे ४० साल पहले या फ़िर ४ साल पहले.
सभी को बधाई
आलोक सिंह "साहिल"
हिन्द युग्म का यह एक सराहनीय प्रयास है। और उससे भी अच्छी बात यह है कि लगभग सभी कवियों ने इमानदारी से पहली कविता ही भेजी है।---वाह--मैं भी पहली कविता ढूंढने का प्रयास करता हूँ।
कितनी भी कविताएँ लिख लें हम .. पहली कविता तो हमेशा कुछ ख़ास ही होती है | कला पक्ष सशक्त भले ने हो पर भावों की सांद्रता हमेशा अपने शबाब पर होती है.|
गोपालदास नीरज जी का कहना है ...
"आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य
मानव होना भाग्य है तो कवि होना सौभाग्य "
अब ऐसी बात है तो कितना मुबार्क होता है वह दिन जब हम काव्य-संसार की ओर पहला कदम बढ़ाते हैं!... हिंद-युग्म का यह प्रयास अत्यंत सराहनीय है|
शोभा जी, कविता की प्रशंसा के लिए शुक्रिया...
सारे कवियों की कविताएँ पढ़ने में मज़ा आया आख़िर पहली कविता जो थी... सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद और बधाइयाँ भी!
सबसे पहले इतने अच्छे विषय के लिए बधाई अवनीश गौतम को, और बहुत सुंदर भूमिका भी रची गई है सुंदर प्रस्तुति है, सभी कविताओं में इतनी मासूमियत है की क्या कहने....सभी कवियों को बहुत बहुत बधाई...
ममता जी आपने तो पहली कविता में बहुत गहरी बात कही है....दिव्य मेरा छोटा भाई असमजास में था की क्या लिखूं जब पहली कविता लिखी :)....सुमित जी बहुत भोली सी कविता....सीमा सचदेव तो हमे बहुत प्यारी हैं ही, सीमा मिग्लानी से मिल कर भी बहुत खुशी हुई....अजित भाई पहली कविता में भी काफ़ी गंभीर नज़र आए...समीर जी की पहली कविता भी कुछ गहरी चोट लगने पर निकली लगती है....प्रेम जी क्या बात है बहुत ही सुंदर ..... होनहार बिरबान के होत चिकने पात, साबित करती है यही बात, पावस नीर की कविता, क्या कहें भाई, born talent ........रचना जी मासूम है कविता बहुत....लवली जी गहरे भाव और बिम्ब....हरिहर जी तो दार्शनिक लग रहे हैं....राहुल जी ने सामजिक कविता से शुरुवात की है....सतपाल जी की पहली ग़ज़ल भी काफी दमदार है, ...... फर्क इतना है कि सन्नाटे नही है, पीयूष भाई मज़ा आया.....साहिल अरे तुम भी यहाँ भाई, इश्वर करे ये पागलपन बरकरार रहे शुभकामनाएं :)...... अर्चना जी आपका ख़ूबसूरत एहसास जारी रहे यही कामना है.......रंजना जी आपकी लाल डेयरी के सदके.....विपुल जी पर जो रंग चढा लगता है अभी तक नही उतरा उस पहले इजहार का, और उतरे भी न तो अच्छा है, बुधई के रचनाकार की कलम और बुलंद हो, दुआ है......कम्प्रीत जी वाह बहुत प्यारी छोटी सी कविता आपकी......
एक बार फ़िर बधाई, अगले अंक के इंतज़ार में...
अलग अलग भावनाओं में लिखी २० कवियों की पहली कविता अथवा प्रथम उपलब्ध कविता पढ़ने को मिली , शुरुआत देख कर पता लगता है कि कितने जोश और उत्साह से लिखी गई होगी पहली कविता..... फ़िर बाद में की गई उन्नति और प्रगति उन्हें आज यहाँ तक ले आई , सभी को उत्तरोतर प्रगति करने के लिए शुभकामनाएँ .
हिंद युग्म को काव्य पल्लवन आयोजित करने के लिए साधुवाद
^^पूजा अनिल
शंका है ? क्या यह आप लोगों की पहली रचना है ?
इतनी अच्छी रचनाएं ? एक ही प्रतिक्रिया है - वाह वाह वाह !!!
अवनीश तिवारी
yehi achha laga ki sabki pahli-pahli kavita hai..jiska rang alag hi hota hai.sabko badhai.
पहली कविता के विषय चयन के लिए में सर्वप्रथम अवनीश गौतम जी को धन्यवाद देना चाहूंगी, मुझे अभी तक यकीं नही हो रहा है की मेरी पहली कविता हिंद-युग्म पर प्रकाशित हो चुकी है, हम सभी रचनाकारों की पहली कविता को हिन्दयुग्म ने जो सम्मान दिया हे , उसके लिए हम हिन्दयुग्म के आभारी हैं | सारी कवितायें बहुत अच्छी लगी, आप सभी के प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद |
चंद पंक्तियाँ जो उपजी हैं इस दिल की गहराई से
जो मुझे बचा ले गई हर गम की परछाई से
कुछ आंसू कुछ मुस्काने और साये तन्हाई के
कुछ अफसाने मधुर मिलन के कुछ लम्हे जुदाई के
उतरें हैं जो कागज पर खुनें दिल की श्हाई से
ममता पंडित
सभी की पहली कविता पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा। लग ही नहीं रहा था कि पहली कवितायें इतनी अच्छी होंगी। सभी को बधाई। अगर किसी ने हिन्दयुग्म पर पहली बार कविता भेजी है तो निवेदन है कि आप ये जारी रखें व प्रतियोगिता में शामिल हों क्योंकि जितने लोग होंगे उतनी अच्छी प्रतियोगिता और उतना ही सीखने को मिलेगा। सजीव जी, हरिहर जी, रंजना जी, विपुल जी, पावस जी आप सभी परिपक्व कवि हैं आपकी पहली कविता पढ़कर हम नए कवियों को भी प्रेरणा मिली। धन्यवाद।
एक अच्छा विषय , परिपूर्ण आयोजन और पहले सृजन की सुगंध ...... क्या बात है !
कविताओं के चक्कर में प्रशेन क्यावाल जी और पीयूष जी का धन्यवाद करना तो भूल ही गया जिन्होंने इतने सुंदर बैनर बनाये... आप ऐसे ही आकर्ष्क चित्रकारी करते रहें..धन्यवाद..
डा. रमाद्विवेदीsaid....
सभी प्रतिभागियों ने अपना प्रथम प्यार ’पहली कविता’ के रूप में बहुत ही दिल खोल कर भाव पू्र्ण प्रस्तुत की...यह बहुत ही सरा्हनीय एवं अनुकरणीय भी है।एक खास बात यह भी है कि हिन्द युग्म के इस विशिष्ठ एवं प्रथम विशेषांक में जिन सौभाग्यशाली कवियों/कवयित्रियों को स्थान मिला है वह सदैव चिर-स्मरणीय रहेगा।
सभी प्रतिभागियों को इस उपलब्धि पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं....आप सबकी लेखनी सृ्जन के पथ पर और प्रखर-मुखर हो.... मंगलकामनाऒं सहित....एक बार पुन: सबको मुबारक्बाद..
हर कविता की अपनी खुशबू है...रूप और रंग है...रंग बिरंगे महकते फूलों सी कविताओं की बगिया की निराली छटा दिखाई दी. सब को बधाई ..
पहली कविता हमेशा दिल के बहुत करीब होती है..यहाँ भी कुछ कवितायें पढ़ कर..मुस्कान आ जाती है..जैसे सायकिल --बंदरिया आदि. वाली कवितायें तो कुछ इतनी गंभीर हैं --बताती हैं कि कवि में पहले से ही कितनी गंभीरता रही होगी....सभी को बहुत बहुत बधाई...
sabhi kavi jinki kavita chapi he ve telented he parantu abhi bahut door jana he kyonki kavit sahitya ka dersion he uski aatma he aur kavi ka kaam srajan karna he karte jana he meri subhkamnayen
SANDEEP KUMAR SANJU
Sabhi kavi jinki kavita bhag i me chapi he ve sabhi badai ke patr he meri shubhkamnayen unke sath hai.
SANDEEP SHRIVAS SANJU
"At the existing, a a lot of writers surely don't.!!!. Dunno why?..."
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湾区华人
Also welcome you!
Ek Achhi Kavya Rachna Ka Sangrah Diya Hai Aapne. Aaapki Kavityaen Rochak aur Motivational Hain.
Thank You For Sharing.
hindi kee sbhi kavita padha-https://hindihindustankavi.blogspot.in/?m=1
✍✍✍✍✍✍✍
साहस रखो एक दिन जिंदगी
फिर से हसीन हो जाएगी।।
जिस दिन ट्रैक पर हर व्यक्ति
की ख्वाहिश पूरी हो जाएगी।
एकता से नाता ना तोड़ना
कभी काली रात के बाद
फिर से अच्छी सुबह आएंगी।
कोई दिन किस्मत हमें
फिर से आजमाएगी।।
उस दिन ट्रैकमैन को भी
भी इज्जत दिलवाएगी।
☔☔☔☔☔☔
एकता जब ट्रैक पर जोर
जोर से मुस्कुराएगी।।
उस दिन पूरी दुनिया
ट्रैक के सपने सजाएँगी।
✍✍✍✍✍✍
एकता से नाता ना तोड़ना
कभी काली रात के बाद
फिर से सुबह जरूर आएगी।
उस दिन जिंदगी फिर हसीन
हो जाएगी।
जिस दिन हर ख्वाहिश पूरी
हो जाएगी।
एकता से नाता ना तोड़ना
अब काली रात के बाद
फिर सुबह जरूर आएगी।
आपका साथी
✍ *चेतराम मीणा* ✍
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Subko bhut bhut danyawad wo isliye k aap k team ne mujhe meri pehli poet Yaad dila dii itna saman denay k liye dhanyawad
Aw, this was a really nice post. In idea I would like to put in writing like this additionally – taking time and actual effort to make a very good article… but what can I say… I procrastinate alot and by no means seem to get something done.
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