डरी सहमी ऑंखें,
चेहरे पर हताशा,
तन पर कपड़े नदारद,
घुटनों को छाती से चिपकाये,
बेडियों में जकड़ी काया,
शून्य को घूरती हुई,
कहीं कुछ ढूँढती है शायद,
निश्ब्द्ता में भी है कोलाहल,
ह्रदय में जारी है उम्र की कवायद,
मगज एक मरघट हो जैसे,
कुछ चिताएँ जल रहीं हैं,
कुछ लाशें सडी हुई सीं,
पडी हुईं हैं, जिन पर,
भिनभिनाती है मक्खियाँ,
जैसे - कुछ अनसुलझी गुत्थियाँ,
कुछ अनुत्तरित सवालों का समूह्गान जैसे,
कैसी विडम्बना है ये,
आखिर हम मुक्त क्यों नही हो पाते...???
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
संजीव जी ! काश हम इस विडम्बना से
मुक्त हो पाते !
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये बधाई
सच्च मी कैसी विडम्बना है यह जिससे हम मुक्त नही हो पाते,न चाहते हुए भी यह कड़वे सच्च का जहर पीना पड़ता है | आपने ऐसा सवाल उठाया है ,जिसके जवाब टू बहुत है ,लेकिन कोई हल नही है.....अच्छी रचना के लिए बधाई ...सीमा सचदेव
ह्रदय में जारी है उम्र की कवायद,
मगज एक मरघट हो जैसे,
कुछ चिताएँ जल रहीं हैं,
कुछ लाशें सडी हुई सीं,
पडी हुईं हैं, जिन पर,
भिनभिनाती है मक्खियाँ
इस घुटन का हल ढूंढने मे जाने कितनी सदिया बीत जायेगी......पर आपने मन मोह लिया...
sunder abhivyakti
सजीव जी
बहुत सुन्दर और गम्भीर भाव लिए है यह कविता-
कुछ अनुत्तरित सवालों का समूह्गान जैसे,
कैसी विडम्बना है ये,
आखिर हम मुक्त क्यों नही हो पाते...???
एक सशक्त अभिव्यक्ति के लिए बधाई।
ह्रदय में जारी है उम्र की कवायद,
मगज एक मरघट हो जैसे,
कुछ चिताएँ जल रहीं हैं,
कुछ लाशें सडी हुई सीं,
पडी हुईं हैं, जिन पर,
भिनभिनाती है मक्खियाँ
बहुत सशक्त अभिव्यक्ति, बहुत बधाई.
क्या बात है सजीव जी, हमेशा की तरह।
अच्छा हा, लेकिन मजा नही आया :(
अवनीश तिवारी
सजीव जी,
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है.. बहुत बहुत साधूवाद
सजीव जी ´
बस एक अनुत्तरित सवाल है,
सचमुच विडंबना है ,
शुभकामनाएँ
^^पूजा अनिल
सजीव जी!
कविता पढकर ऎसा लगा कि मानो आप अपनी बात पूरी तरह से कह नहीं पा रहे हों। कहीं कुछ छूट-सा गया है। लेकिन कविता का विषय आपने बहुत हीं बढिया उठाया है और शब्दों का भी सुंदर जाल बुना है। इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं\
-विश्व दीपक ’तन्हा’
हर एक पंक्ति सीधे दिल में उतर गई. आपकी अभिव्यक्ति को विनम्र अभिवादन !
डा. रमा द्विवेदी...
सच में यह विड़म्बना ही है जिसके जवाब हैं लेकिन उन जवाबों को कोई मानेगा नहीं...इसलिए कोई जवाब नहीं देना चाहता....अच्छी स्तरीय व गंभीर चिंतन की कविता के लिए बधाई....
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