महक हिन्दी ब्लॉगों को सबसे अधिक पढ़ने वाली पाठिका हैं। आँकड़ों की मानें तो ५००० से अधिक ब्लॉग हैं जिनमें से बहुत से ब्लॉगों में केवल शून्य या १ टिप्पणी देखी जा सकती हैं, वहाँ भी महक पाठिका के रूप में मौजूद दिखती हैं। महक हिन्द-युग्म की यूनिपाठिका भी हैं और अभी भी हिन्द-युग्म को बहुत अधिक पढ़ने वालों में से हैं। कल प्रकाशित 'पहली कविता- विशेषांक भाग १' पर इनके हस्ताक्षर देखे जा सकते हैं। अप्रैल माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में इनकी कविता 'झुर्रियाँ' तीसरा स्थान बनाया है। ये प्रथम बार शीर्ष १० में स्थान बना पाई हैं।
पुरस्कृत कविता- झुर्रियाँ
"डाकिया" आवाज़ सुन
दौड़ के जाना चाहती आँगन
थके हुए कदम रुक-रुक कर ही चलते
थैले से निकलते काग़ज़ देख चेहरा उत्सुक होता
झुर्रियों की हर लकीर मुस्कुरा के कहती
' ला दे हमारी चिट्ठी, पढ़ के भी सुनाइयो
कैसा है लल्ला, तबीयत ठीक, हालचाल बताईयो'
निर्विकार उत्तर 'मनीऑर्डर है, चिट्ठी नहीं'
यंत्रवत उसके हाथ अंगूठा लगाते
हर महीने यही तो होता था
झुर्रियों पर उदासी के बादल मंडराते
सब देखता डाकिया, मन की नम आँखों से
ज़िंदगी के अनेक सपनों से बनी हर झुर्री को
बेबस झुर्रियों के भाव शांत हो जाते
मगर, नीर रुकते नहीं, आस थमती नहीं
व्यस्त होगा लल्ला, शायद अगले माह.....
कुछ शब्द भेज दे...................
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७, ६॰८, ६॰२, ४॰५
औसत अंक- ६॰१२५
स्थान- चौथा
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५, ५॰५, ४, ६॰१२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰१५६२५
स्थान- तीसरा
पुरस्कार- डॉ॰ रमा द्विवेदी की ओर से उनके काव्य-संग्रह 'दे दो आकाश' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
व्यस्त होगा लल्ला, शायद अगले माह.....
महक इस पंक्ति ने टू सच्च मे रुला ही दिया | तीसरे स्थान पर रहने की बधाई स्वीकारें ...सीमा सचदेव
bahut he sunder kavita
बेहद ही संवेदनशील कविता , बहुत अच्छा obsevation है महक जी .|ऐसे ही padhte और लिखते रहिये
दिव्य प्रकाश
बेहद ही संवेदनशील कविता , बहुत अच्छा obsevation है महक जी .|ऐसे ही padhte और लिखते रहिये
दिव्य प्रकाश
वाह् ! मेहक जी वाह !
अतिशय गहरे अतिशय ऊँचे अतिशय भाव पिरोये
तेरे शब्दों की माला हम फेरत फेरत रोये,
सच मेहक जी रुला दिया उस बुजुर्गी आखों की आस ने हो हर माह लगी रहती कुछ पाने की चाह में
व्यस्त होगा लल्ला, शायद अगले माह.....
कुछ शब्द भेज दे...................
बेहद खूबसूरत और संवेदनशील कविता
कविता कहती है कि -बुजुर्गों को सिर्फ पैसा ही नहीं संवेदना के दो बोल भी चाहिए।---महकजी- अपनी कविता के माध्यम से आप समाज को एक अच्छा संदेश देने में सफल रहीं हैं।--बधाई ।
महक जी
बहुत ही भावभरी कविता है। -
झुर्रियों पर उदासी के बादल मंडराते
सब देखता डाकिया, मन की नम आँखों से
ज़िंदगी के अनेक सपनों से बनी हर झुर्री को
बेबस झुर्रियों के भाव शांत हो जाते
मगर, नीर रुकते नहीं, आस थमती नहीं
इन पंक्तियों ने तो दिल को छू लिया। बहुत-बहुत बधाई।
महक जी, बहुत ही भावुक और सच्ची कविता। काश लोग इन झुर्रियों को समझ पायें। आपको बधाई और धन्यवाद जो आप ये विषय हिन्दयुग्म के मंच पर लाईं।
बहुत सही | झुर्रियों के माध्यम से एक व्यथा को कह दिया |
बधाई युग्म पर बतौर रचनाकार के रूप मी आने के लिए |
अवनीश तिवारी
bahut achha chitran kiya hai Mahak ji aapne.
aap sabhi ka tahe dil se shukrana
bahut bahut umda chitran bujurgon ki bebasi ka....bhaavpoorn prastuti.
महक जी,
बहुत ही सुंदर और भाव भरी प्रस्तुति है, बूढी माँ और अपने ही बच्चे से दो शब्द सुनने के लिए तरसती हुई...., कभी कभी लगता है कि कितने असंवेदनशील हो गए हैं हम....!!!,
तृतीय स्थान पाने कि बधाई ,
^^पूजा अनिल
वाह महक, लाजवाब सुंदर कविता, बधाई .....
महक जी,
हृदय को झकझोरने वाली परंतु यथार्थ रचना लिखी है आपने।
तृतीय स्थान प्राप्त करने के लिए बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
महक जी,आख़िर महक ही उठी कविताओं की यह श्रृंखला.लाजवाब
आलोक सिंह "साहिल"
डा. रमा द्विवेदी....
महक जी,
बूढ़ी माँ के हृदय की वेदना को शब्दों में उड़ेल कर रख दिया है..अति मार्मिक,आँख नम कर गई...जीवन की सबसे बड़ी विडम्बना यही है।
आपको तृतीय स्थान प्राप्त होने पर हार्दिक बधाईव बहुत सारी शुभकामनाएँ.....
महकजी,
बहुत बढिया, बधाई हो !
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