हिंद-युग्म के पाठकों के लिये संगीता सेठी का नाम नया नही है। उनकी कविताएं लभगग हर प्रतियोगिता का हिस्सा होती हैं और प्रकाशित भी होती रहती हैं। अक्सर सामाजिक रूढ़ियों और विषमताओं का विरोध और समय के साथ बदलती रिश्तों की भूमिकाएँ उनकी कविता के केंद्र मे रहती हैं। इनकी पिछली कविता नवंबर माह मे पाँचवें स्थान पर रही थी। प्रस्तुत कविता ने दिसंबर माह की प्रतियोगिता मे बारहवाँ स्थान प्राप्त किया है।
कविता: पिछले दशकों में
पिछले छ: दशक से
महीना-दर-महीना
कमा रहे हैं बाबा मेरे
फिर भी लाखों बाबा
नहीं पहना पा रहे
अपने बच्चों को
पूरे कपड़े
वो फिर रहे हैं नंगे
इन सर्द गलियों में
पिछले पाँच दशक से
व्यंजन-दर व्यंजन
पका रही है रसोई में
मेरी अम्मा
फिर भी लाखों माएँ
नहीं दे पाती है
अपने बच्चों को
भरपेट खाना
पिछले चार दशक से
पारी-दर-पारी
मेरी बड़की बहन
लिख रही है
बच्चों की स्लेटों पर
हाथ पकड़ कर्
फिर भी सैकड़ों बच्चे
नहीं देख पा रहे
स्कूल का मुँह भी
पिछले तीन दशक से
अस्पताल-दर-अस्पताल
मेरा भाई
बाँट रहा है दवाइयाँ
आम आदमी के लिए
फिर भी सैकड़ों लोग
तोड़ देते हैं दम
इलाज के अभाव में
पिछले दो दशक से
किश्त-दर-किश्त
मेरे पति
बाँट रहे हैं ऋण
सरकारी खातों से
ज़रूरतमन्दों को
फिर भी आर्थिक मार से
ना जाने कितने लोग
कर लेते हैं आत्महत्या
पिछले एक दशक से
मेरी भाभी
कानों में
हीरे के झुमके पहन
छम्मक-छल्लो सी
घूम रही है घर में
और सैंकड़ों लोगों के
मुँह तक निवाला भी
मुश्किल से
पहुँचा रही है
ये हीरे की खदानें
पिछले एक वर्ष से
पृष्ठ-दर-पृष्ठ
मैं भी लिख रही हूँ कविता
कम्प्यूटर पर
इंटरनेट के सारे रास्ते
जान गई हूँ
की-बोर्ड दबा-दबा कर
ब्लॉग बनाने की रवायतें
और फेसबुक पर
अच्छे दोस्त तलाशने की
मुहिम छिड़ी है
और मेरे आस-पास की
गृहणियाँ तो दूर की बात है
मेरे पूरे मोहल्ले में
इस कोने से उस कोने तक
इस गली से उस पार तक
नहीं है मुहैया
बच्चों को भी
एक अदद कम्प्यूटर !!
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
औरों की आवश्यकता दिख जाये जब अपने खर्चों में तो मान लें कि जुड़ गये आप विश्व से।
सुंदर रचना, बधाई
सत्य कहा...
यही तो विडम्बना है....
ACHCHHI BAT AUR SACHCHI SOCH
SUNDER KAVITA
BADHAI
RACHANA
sangeeta ji bahut-bahut badhaai aapkikavita "pichle dshko mein" 12ve sthaan par rahee. man ko chu gaye kavitaa mein cupe bhaav.yahee sab ke beech sansaar chal rahaa hai.shubhkaamnaayem.likhte rahiye badhte rahiye aage our aahe.
punita singh
खूब कही
अच्छा लगा !
..............................धन्यवाद
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